वर्षों से चली आ रही नीतियां हैं कारण
द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में घरेलू विनिर्माण कंपनी ‘वत्स’ के प्रबंध निदेशक लोकेश वत्स कहते हैं कि खेल बाजार में चीन की 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी है। उन्होंने कहा कि हम कहते हैं कि ‘वोकल फॉर लोकल’ (Vocal for local), लेकिन दशकों से सरकार की चली आ रही नीतियों के कारण चीनी उत्पाद ने हमारे बाजार पर कब्जा करते चले जा रहे हैं।
टेबल टेनिस गेंदों पर चीन का एकाधिकार
टेबल टेनिस स्टार साथियान गणशेखरन (Sathiyan Gnanasekaran) का कहना है कि रैकेट और टेबल के मामले में भारत आत्मनिर्भर है, लेकिन जब बात गेंदों के निर्माण की आती है तो इस पर चीन का लगभग एकाधिकार है। वह कहते हैं कि विश्व और एशियाई चैंपियनशिप के अलावा, विश्व भर के सभी टूर इवेंट के लिए चीन की डबल हैप्पीनेस इंडेक्स कंपनी ही गेंदों की आपूर्ति करती है। इस गेंद की स्पिन और उछाल से अभ्यस्त होने के लिए भारतीय खिलाड़ी भी इसी के सेट से अभ्यास करते हैं। गणशेखरन ने कहा कि अगर आप अन्य स्तरों पर, आप विभिन्न ब्रांड नाम वाले गेंदों को जैसे स्टिगा (स्वीडन) या स्टैग (भारत) को खरीदते हैं तो पाएंगे कि उसका उत्पादन भी चीन में ही हुआ है।
बहुत सारे ब्रांडों की यही स्थिति है
ऐसा सिर्फ टेबल टेनिस बॉल के साथ नहीं है। बहुत सारे ब्रांडों के साथ यही स्थिति है। बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (Boxing Federation of India) के महासचिव जय कोवली (Jay Kowli) का कहना है कि भारतीय मुक्केबाजों के बीच एक लोकप्रिय ब्रांड ऑस्ट्रेलियाज स्टिंग है। लेकिन ये सभी चीन में बने हैं। हालांकि उन्होंने जोर देकर यह भी कहा कि घरेलू स्तर पर केवल भारत निर्मित उपकरणों का उपयोग किया जाता है। बॉक्सिंग उपकरणों के लिए भारत में मजबूत विनिर्माण होता है और इनका पर्याप्त बिजनेस भी है। इसलिए वह बॉक्सिंग के अंतरराष्ट्रीय महासंघ से सर्टिफिकेटेशन की प्रक्रिया से नहीं गुजरे हैं। इस कारण हमें बड़े प्रशिक्षण केंद्रों और शीर्ष मुक्केबाजों के लिए उपकरण आयात करने ही होंगे। बता दें कि 2018-19 के लिए बॉक्सिंग तीन करोड़ रुपए का बॉक्सिंग उपकरण का आयात किया गया था। इनमें से चीन से किए गए आयात का बिल 1.38 करोड़ रुपए का था।
तैयार उत्पादों के अलावा भी चीन पर निर्भरता
जालंधर के स्पोर्ट्स एंड टॉयज एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन इन मैन्युफैक्चरिंग के सदस्य प्राण नाथ चड्ढा, जो विनिर्माण हैं, का कहना है कि चीनी निर्माता मैट और अन्य खेल संबंधी सुरक्षात्मक उपकरणों के अग्रणी निर्यातक हैं। अधिकारियों और खिलाड़ियों का कहना है कि तैयार उत्पादों के आयात के अलावा भी चीन पर भारत की निर्भरता है। घरेलू निर्माता, खासकर हॉकी स्टिक और बॉल, क्रिकेट बैट और बॉल, बॉक्सिंग उपकरण, शतरंज बोर्ड और अन्य वस्तुओं के अलावा, चीन से कच्चे माल के निर्यात पर भी बहुत हद तक निर्भर हैं।
भारत में कच्चे मालों की गुणवत्ता अच्छी नहीं है
फुटबॉल, वॉलीबॉल, बास्केटबाल और रग्बी बॉल्स के ‘वेक्टर’ ब्रांड के निर्माता जालंधर स्थित एक्सपोर्ट हाउस सॉकर इंटरनेशनल के विकास गुप्ता ने बताया कि वे अपने उत्पादों के लिए चीन से पॉलीयूरेथेन और एथिलीन-विनाइल एसीटेट फोम का आयात करते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में कच्चे माल की गुणवत्ता अच्छी नहीं है। हम अपने उत्पादों को यूरोप और अमरीका के प्रमुख बाजारों में निर्यात करने लायक जरूरी मानक तक फिलहाल नहीं पहुंचा सकते हैं। चीनी निर्माता हमें उच्च गुणवत्ता वाले कच्चे माल के साथ एक बहुत ही प्रतिस्पर्धी मूल्य भी प्रदान करते हैं।
चीन के सामान होते हैं सस्ते
वत्स, जिनकी फर्म और एक अन्य विनिर्माण केंद्र मेरठ में है का कहना है कि चीन ‘डाइंग और इंजीनियरिंग में बहुत आगे है’। इसके साथ-साथ आयरन रड, बेंच, कर्लिंग और जिम में दिखने वाले मल्टी स्टेशंस का आयात चीन से होता है, क्योंकि वे काफी सस्ते होते हैं। इसके अलावा ट्रैकसूट्स के लिए उपयोग की जाने वाली लगभग सारी सामग्री चीन से आती है। यह भी काफी सस्ती होती है। मूल्य और बेहतर तकनीक चीन से खेल सामग्री के आयात के अन्य प्रमुख कारण हैं। जैसे भारत में बेचे जाने वाले अधिकतर मशीन सिले हुए फुटबॉल चीन में बनाए जाते हैं। इसके साथ ही कृत्रिम टर्फ भी। उन्होंने कहा कि हमें अनुसंधान और विकास में निवेश करना होगा और साथ में मूल्य के कीमत की समस्या का भी हल ढूंढ़ना होगा। इसके बाद ही हम चीनी खेल उत्पादों का बहिष्कार कर सकते हैं। हम अचानक चीनी उत्पादों का बहिष्कार शुरू नहीं कर सकते।
चीन से यह खेल के सामान होते हैं आयात
सामान | कुल आयात, करोड़ रुपए में | चीन से आयात, करोड़ रुपए में |
जिम और एथलेटिक्स उपकरण | 130.31 | 42.27 |
टेबल टेनिस | 17.77 | 11.54 |
फुटबॉल | 18.57 | 12.84 |
दूसरे उपकरण | 357.32 | 197.25 |