रियो पैरालंपिक : पाक से युद्ध में गोली खाकर भी जीता देश का पहला स्वर्ण
पैरालंपिक ही नहीं ओलंपिक इतिहास में भारत को पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जिताने वाले मुरलीकांत पेटकर की जिंदगी के बारे में जानेंगे तो आप उनको सलाम किए बिना नहीं रह पाएंगे।
नई दिल्ली। रियो पैरालंपिक में हाईजंप में भारतीय पैरा एथलीट मरियप्पन ने देश को तीसरा स्वर्ण जिताकर इतिहास रच दिया। लेकिन क्या आपको देश के लिए पहला व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण जीतने वाले का नाम याद है। शायद आपको अभिनव बिंद्रा ही याद आएंगे, लेकिन उनसे भी 36 साल पहले यह कारनामा मुरलीकांत पेटकर ने कर दिखाया था। हां, मुरली का स्वर्ण ओलंपिक नहीं पैरालंपिक में आया, लेकिन इस स्वर्ण विजेता की जिंदगी के बारे में जानेंगे तो आप उनको सलाम किए बिना नहीं रह पाएंगे। तो आइए बताते हैं आपको देश को पैरालंपिक में पहला स्वर्ण जिताने वाले मुरलीकांत पेटकर के बारे में।
पाकिस्तान से युद्ध के वक्त गंवाया था पैर
मुरलीकांत पेटकर सेना में जवान थे। बात 1965 की है, पाकिस्तान से युद्ध के समय मुरलीकांत ने अपना पैर गंवा दिया था। मुरलीकांत भारत के प्रोफेशनल बॉक्सर थे, उन्हें 1968 ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करना था। लेकिन पैर गंवाने के बाद उनका 1968 ओलंपिक में भाग लेने का सपना टूट गया। हालांकि जीवटता के धनी पेटकर ने इसके बावजूद 1968 के पैरालंपिक में उतरकर अपना सपना पूरा किया।
खुद को मजबूती से उभारा
विकलांग होने के बाद भी मुरलीकांत ने अपने को मजबूती से उभारा। उन्होंने पैरालंपिक खेलों में जगह बनाने के लिए जीतोड़ मेहनत की। उन्होंने टेबिल टेनिस में 1968 पैरालंपिक में भाग लिया और दूसरे राउंड तक भी पहुंचे। बाद में उन्होंने स्वीमिंग और दूसरे खेलों की ओर ध्यान लगाया। उन्होंने इंटरनेशनल स्वीमिंग में 4 मेडल तक जीत लिए।
1972 में मिला स्वर्णिम मुकाम
1972 पैरालंपिक में आखिरकार मुरलीकांत को मुकाम मिल गया। उन्होंने जर्मनी में आयोजित हुए इन पैरालंपिक में स्वीमिंग के 50मी फ्री स्टाइल में रिकार्ड 37़33 सैकेंड में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। आपको बता दें कि मुरलीकांत ने जैवलीन थ्रो और सलालोम में भी भाग लिया। खास बात ये है कि इन तीनों ही खेलों में मुरलीकांत फाइनलिस्ट रहे थे।
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