कोचिंग में छात्रों के तनाव, चिंता और असफलता से जुड़ी भावनात्मक समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता। कोचिंग संस्थानों में काउंसलर्स नहीं होते। यदि होते हैं तो नाममात्र के ही होते हैं। छात्रों में जागरूकता की कमी है। छात्र खुलकर बात नहीं कर पाते। परिवार और समाज भी मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से नहीं लेते।
— राजेन्द्र गौड, जोधपुर
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इसके लिए शिक्षा प्रणाली का अत्यधिक दबाव, अभिभावकों की अत्यधिक अपेक्षाएं और कोचिंग संस्थानों का व्यावसायिक दृष्टिकोण जिम्मेदार है। छात्रों पर केवल अंकों और प्रतिस्पर्धा का बोझ डाला जाता है। उनके मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा की जाती है। इस समस्या के समाधान के लिए संवेदनशील शिक्षा प्रणाली, मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन और अभिभावकों द्वारा बच्चों पर अनावश्यक दबाव कम करने से हो सकता है। छात्रों को जीवन के मूल्यों और संतुलित दृष्टिकोण के लिए प्रेरित करना आवश्यक है।
—संजय माकोड़े, बैतूल, मध्यप्रदेश
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कोचिंग संस्थानों को छात्रों की मानसिक और भावनात्मक जरूरतों के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए। संस्थानों में काउंसलिंग और तनाव प्रबंधन कार्यक्रम अनिवार्य रूप से हों। “टॉपर्स” के अति प्रचार प्रसार पर जोर देने से अन्य छात्रों में हीन भावना उत्पन्न होती है। सरकार को कोचिंग उद्योग के नियमन के लिए सख्त कानून बनाने चाहिए। छात्रों के लिए सुरक्षित और सहयोगात्मक माहौल सुनिश्चित करना चाहिए।
— मुकेश भटनागर, भिलाई, छत्तीसगढ़
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प्रतिस्पर्द्धा के युग में ये जानना बहुत अहम है कि आखिर विद्यार्थियों की आत्महत्या के लिए कौन जिम्मेदार है। इसके लिए समाज, माता पिता और स्वयं विद्यार्थी जिम्मेदार प्रतीत होते हैं। बच्चे मशीन नहीं बल्कि इंसान हैं। सभी की पृष्ठभूमि, सामाजिक ताना बाना, मस्तिष्क की कार्यक्षमता अलग अलग होती है। कोचिंग में सफलता हासिल कैसे की जा सकती है, बताया जाता है, लेकिन जरूरी नहीं कि हर बालक—बालिका उस पर अमल भी करे। विद्यार्थी पर अच्छे अंक लाकर सफलता हासिल होने का अत्यधिक दबाव रहता है। दबाव को न झेल पाने की वजह से वह आत्महत्या की ओर प्रेरित होता है।
— गजेंद्र चौहान कसौदा, जिला डीग
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उपभोक्तावादी संस्कृति, भविष्य की चिंता एवं पारिवारिक परेशानियों के चलते युवा अत्यधिक दबाव में रहते हैं। फीस का दबाव, प्रतिस्पर्धा एवं अनुकूल माहौल ना मिलने के कारण वे तनावग्रस्त हो जाते हैं और आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं।
विनायक गोयल , रतलाम, मध्यप्रदेश
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कोचिंग विद्यार्थी हमेशा एक दबाव में जीता है। यह दबाव उसके अभिभावकों का हो सकता है, रिश्तेदारों का हो सकता है, दोस्तों का, आस पड़ोस के लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा का, सीमित समय का आदि हो सकता है। इसी के साथ कुछ घरेलू जिम्मेदारी भी हो सकती है। इस तरह विद्यार्थी असफल होने पर मानसिक रूप से अपना संतुलन खो देता है। यही कारक विद्यार्थी की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार होते हैं।
दिवांशु समाधिया, धनवाड़ा, भरतपुर
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कोचिंग क्लासेस में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की आत्महत्या के लिये अभिभावक जिम्मेदार हैं। वे बच्चों को वहां भेजने और फीस देने के बाद उम्मीद कर लेते हैं कि बच्चा सफल ही होगा। लेकिन किन्हीं कारणों की वजह से जब वह मां बाप की उम्मीदों पर खरा उतरता नहीं नजर आता तो वह आत्महत्या जैसे अपराध कर बैठता है।
-नरेश कानूनगो ‘शोभना’, देवास, म.प्र.
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विद्यार्थियों की आत्महत्या का दोष किसी एक के माथे नहीं मढ़ा जा सकता । इसके कई कारक हो सकते हैं। इसमें दोषी हैं— परिवार द्वारा अंतहीन अपेक्षाएं, समाज में सफलता के अप्राप्य मानदंड ,बड़े शहरों का ऐसा अकेलापन जो जीवन का रस समाप्त कर देता है, कोचिंग की अंधी होड़ ओर निराधार आश्वासन । ये सभी कारण विद्यार्थियों के जीवन की सरसता को संघर्ष में बदल चुके हैं, जिससे असफलता का भय मृत्यु से अधिक हो चुका है । समाज के हर अंग को इसे गंभीरता से विचारने की आवश्यकता है।
नितिन मीणा, खाचरियावास, सीकर
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कोचिंग छात्रों की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार हैं पेपर लीक व भ्रष्टाचार जैसी घटनाएं।
पेपर लीक होने से युवाओं को तैयारी का अमूल्य समय खराब हो जाता है। इससे उनका मनोबल टूट जाता है। जिससे वह गलत कदम उठाते हैं। सरकार, शिक्षण संस्थान, व पुलिस को इस पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए।
—मुकेश सोनी, जयपुर राजस्थान
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