इंटरनेट पर बढती निर्भरता ने युवा वर्ग को पंगु बना दिया है। मनुष्य की शारीरिक सक्रियता घटी है। इस वजह से वह अनेक प्रकार की शारीरिक और मानसिक बीमारियों में बढ़ोतरी हुई है। सामाजिक रूप से भी इसके व्यापक प्रभाव देखने में आ रहे हैं। परिवार के सदस्यों के बीच में संवाद कम हुआ है। सामाजिक मेल जोल कम हुआ है। आपसी रिश्तों में दूरियां बढी है।
— ललित महालकरी, इंदौर
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बच्चों में मोबाइल का नशा सिर चढ़कर बोल रहा है। इंटरनेट पर हर तरह की जानकारी मौजूद है। इससे किसी भी समस्या के हल के लिए युवा इंटरनेट से सर्च कर रहे हैं। जिससे इस पर निर्भरता बढ़ी है। इससे सामाजिक सरोकार धूमिल हो रहा है, बच्चों का बचपन बिगड़ रहा है, परिवार बिखर रहा है। इंटरनेट पर अश्लीलता परोसी जा रही है जो बच्चों की मानसिकता बिगाड़ रही है।
— अशोक कुमार शर्मा, जयपुर।
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इन्टरनेट की बढ़ती निर्भरता से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। बच्चों को जब कोई जानकारी चाहिए होती है तो वे किताबों में खोजने की बजाय इंटरनेट का सहारा लेते हैं। आज के बच्चे तो पुस्तक से ज्यादा इंटरनेट पर समय व्यतीत करते हैं। इससे उनकी पढ़ने व समझने की क्षमता पर भी लगातार असर पड़ रहा है। पहले बच्चों को अगर किसी विषय पर कुछ लिखना होता था तो वे उसकी खोज करते थे। इसके लिए दर्जनों पुस्तकें खंगालते थे। इससे उनका ज्ञान बढ़ता था।
— प्रकाश भगत, कुचामन सिटी, नागौर
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इंटरनेट पर अधिक समय बिताने से व्यक्ति सामाजिक संबंधों से दूर होता जा रहा है और तनाव, बेचैनी, अकेलेपन का शिकार हो रहा है| आज बच्चे से बूढ़े तक को किसी भी सवाल का जवाब चाहिए तो खुद सोचने से पहले इंटरनेट पर खोजते है जिससे सोचने का दायरा भी कम हो रहा है| असल में इंटरनेट का उपयोग उतना ही होना चाहिए जितनी उसकी आवश्यकता हो| अधिक उपयोग व्यक्ति के जीवन के लिए हानिकारक है|
— प्रियंका महेश्वरी, जोधपुर
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इंटरनेट से ढेरों जानकारियां जल्दी और आसानी से मिल जाती हैं। बहुत से कार्य कम समय में घर बैठे ही हो जाता है। इससे जुड़े रहने से सबसे ज्यादा नुकसान मानसिक स्वास्थ्य को हुआ है। व्यक्ति की सोचने और समझने की क्षमता में तेजी से कमी आई हैं। ज्यादातर समय गुजारने से लोग इसके एक तरह से साइबर एडिक्ट हो गए।
—निर्मला देवी वशिष्ठ, राजगढ़ अलवर
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व्यक्तिगत गोपनीयता में कमी, फेक न्यूज़, फेक वीडियो, साइबर अपराध आदि में बढ़ोतरी हो रही है। अनेक सुविधाएं भी बढ़ी हैं जैसे कुछ कार्यालयों के काम घर बैठे हो जाना, सभाएं हो जाना, विद्यार्थियों का घर बैठे पढ़ना और अध्यापकों पढ़ाना आदि।
—मुकेश भटनागर, भिलाई, छत्तीसगढ
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इंटरनेट पर आवश्यकता से अधिक निर्भरता बढ़ने के कारण बच्चे,युवा और बड़े, शारीरिक और मानसिक बीमारियों से घिर गए हैं। स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के कारण चिड़चिड़ापन बढ़ गया है। इसके कारण पारिवारिक और समाजिक ताना- बाना भी टूट चुका है। इंटरनेट अनेक कार्यों में भी उपयोगी है लेकिन अधिक निर्भरता जीवन मूल्यों के लिए खतरा भी बन चुका है। इसे संतुलित रूप में लेने की आवश्यकता है।
— हरिप्रसाद चौरसिया,देवास , मध्यप्रदेश
अत्यधिक इंटरनेट उपयोग, विशेष रूप से सोशल मीडिया, सामाजिक अलगाव और वास्तविक जीवन की बातचीत को कम कर रहा है। इंटरनेट सोशल नेटवर्किंग साइट्स के ज़रिए समुदाय बनाने में मदद तो कर रहा है, लेकिन असल ज़िंदगी में सामाजिक मेलजोल को सीमित कर रहा है। ऑनलाइन पर अधिक समय बिताने से व्यक्ति वास्तविक जीवन के सामाजिक संबंधों से दूर हो रहे हैं। इससे अकेलेपन और वैराग्य की भावनाएं बहुत अधिक बढ़ गई हैं।
— डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर