सीकर और बालोतरा में हुए ताजा सड़क हादसों ने एक दर्जन से ज्यादा लोगों को लील लिया। जहां एक ओर सीकर में बस अनियंत्रित होकर पुल की दीवार से टकरा गई जिसमें कई लोग काल का ग्रास बन गए और कई घायल हो गए, वहीं बालोतरा में तेज रफ्तार बस आगे खड़ी बस से टकरा गई जिसमें तीन जनों की मौत हो गई। दोनों ही मामलों में देखा जाए तो गंतव्य तक जल्दी पहुंचने की होड़ में सवारियों की जिंदगी से खिलवाड़ करने का काम हुआ है। एक ओर हाईवे, एक्सप्रेस वे और मेगा हाईवे जैसे विकासात्मक कदम उठाए गए हैं, वहीं इन मार्गों की निगरानी और सुरक्षा के लिए आवश्यक ढांचे की कमी साफ नजर आती है।
बड़ा कारण यह भी है कि हम केवल बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, लेकिन सुरक्षा मानकों की पालना और इसकी निगरानी का सिस्टम कहीं नजर नहीं आता। यह सुनिश्चित करना होगा कि ट्रैफिक पुलिस और अन्य जिम्मेदार विभाग तेज रफ्तार वाहनों पर लगाम लगाने का काम करें। ट्रैफिक कैमरे और स्पीड गवर्नर का सही तरह से उपयोग भी आवश्यक है। इसके जरिए मॉनिटरिंग करने के साथ ही सख्त कानून के जरिए सजा दिलाना भी आवश्यक है। खास तौर पर राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्यों के प्रमुख शहरों को जोडऩे वाली उन सड़कों पर निगरानी ज्यादा जरूरी है, जहां वाहनों का दबाव ज्यादा रहता है। दिल्ली—मुंबई एक्सप्रेस भी हादसों से अछूता नहीं है।
सड़क हादसों की रोकथाम के नाम पर सड़क सुरक्षा सप्ताह मना लेना ही काफी नहीं है। जरूरत इस बात की भी है कि आम जनता को यातायात नियमों के प्रति तो जागरूक किया ही जाए, वाहन चालकों को लाइसेंस देते वक्त सावधानी बरतने की जरूरत है। सरकारी तंत्र सड़क सुरक्षा को लेकर इसी तरह से बेपरवाह रहा तो आने वाले दिनों में सड़कें और खूनी हो सकती हैं।