एक वाक्य में कहूं तो रूप चौदस के निहितार्थ हैं – जागरण की नीति, स्वच्छता से प्रीति और मुक्ति की रीति। सर्वप्रथम, इस बात पर विचार करते हैं कि रूप चौदस जागरण का निर्देश है। प्रश्न उठता है कि जागरण क्यों? जागरण कब? जागरण किसका? इसका उत्तर है कि जागरण दरअसल आलस्य के कटघरे तोड़ता है और व्यक्ति को चेतना से जोड़ता है। कहा भी जाता है कि जो जागृत है वह चुस्त है और जो सुप्त है वह सुस्त है। पुरुषार्थ की पैड़ी है चुस्ती। आलस्य की आसंदी है सुस्ती। जागने का अभिप्राय है पाना। सोने (निद्रा) का आशय है खोना। ‘जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है सो खोवत है’ की उक्ति जागरण की महत्ता को ही रेखांकित करती है। जागा हुआ व्यक्ति, सोए हुए व्यक्ति से सदैव बेहतर होता है। यह तो इस प्रश्न का उत्तर हुआ कि जागरण क्यों? अब हम दूसरे प्रश्न पर आते हैं कि जागरण कब? इसका उत्तर है कि सूर्योदय के पूर्व अर्थात ब्रह्ममुहूर्त में जागरण हो जाना चाहिए यानी निद्रा का त्याग कर देना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त में जागरण, ऊर्जा का कारक होता है। अब प्रश्न उठता है कि जागरण किसका? तो इसका उत्तर है कि जागरण स्वयं का। ब्रह्म मुहूर्त में व्यक्ति दूसरों को जगाकर फिर से स्वयं सो जाता है तो यह तो वैसा ही हुआ कि सोते हुए आदमी ने नींद में ‘डकार’ ले ली हो जिसकी ‘आवाज’ से अन्य तो जाग गए हैं लेकिन डकार लेने वाला स्वयं बेखबर है। स्वयं का जागना ही सच्चा जागना है। इस प्रकार रूप चौदस जागरण का निर्देश देता है अर्थात ब्रह्म मुहूर्त में व्यक्ति को सचेत और सक्रिय करता है। रूप चौदस जागरण के निर्देश का निनाद करता है अर्थात चेतना से संवाद करता है।
अब मैं इस बात का खुलासा करता हूं कि रूप चौदस स्वच्छता का संदेश है। यहां यह समझ लेना जरूरी है कि ‘स्वच्छ तन’ में ही ‘स्वच्छ मन’ का निवास होता है। ब्रह्म मुहूर्त में जागा हुआ व्यक्ति स्वयं को स्वच्छ कैसे करे? इसका स्पष्ट उत्तर है कि सूर्योदय से पूर्व अभ्यंग अर्थात स्वयं की तेल मालिश करके स्नान करे। स्नान स्वच्छता का सेतु है। लेकिन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात है सूर्योदय से पूर्व स्नान करके स्वयं को संवार लेना चाहिए। इस प्रकार रूप चौदस स्वच्छता के संदेश के माध्यम से स्वयं को संवारने की यानी व्यक्तित्व को निखारने की क्रिया है, प्रभु-प्रार्थना जिसकी प्रक्रिया है। इसको यों समझें कि स्वच्छता दरअसल ‘तन को संवारना’ है और उसके बाद प्रार्थना ‘मन को निखारना’ है। दरअसल, रूप चौदस का यही निहितार्थ है। सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से स्वच्छता तन का ‘तंत्र’ है और ध्यानादि से प्रार्थना मन का ‘मंत्र’ है। एक वाक्य में कहूं तो यह कि स्नान से तन और ध्यान से मन स्वच्छ होता है। स्वच्छता संकेत है तंदुरुस्त तन का। प्रार्थना पर्याय है पवित्र मन का। पर याद रखने योग्य बात यह है कि जैसे स्नान के लिए जल की शुद्धता आवश्यक है, वैसे ही ध्यान के लिए भावना की शुद्धता जरूरी है। तात्पर्य यह कि रूप चौदस सूर्योदय से पूर्व स्नान अर्थात स्वच्छता के सूत्र से तन-मन के सौंदर्य का समीकरण रचती है।
अब मैं आता हूं उस बिंदु पर कि रूप चौदस मुक्ति का आदेश है। दरअसल, पौराणिक आख्यान का संदर्भ-धरातल मुझे रूप चौदस की नई व्याख्या की दृष्टि दे रहा है। मेरी दृष्टि में इसका अर्थ यह है कि जहां कहीं भी बेटी/कन्या/महिला पर अत्याचार होते हुए देखें, उसका विरोध करें और उसे क्रूरता की कैद से मुक्ति दिलाएं। जैसे कि नरकासुर की कैद से योगेश्वर श्रीकृष्ण ने सोलह हजार एक सौ कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। आधुनिक संदर्भों में इसकी व्याख्या यही है कि महिला सशक्तीकरण की नींव मजबूत हो। इसका तात्पर्य है बेटियों की सुरक्षा और सम्मान का परचम लहराना।