scriptबढ़ती महंगाई और सरकारी आंकड़ों की भूलभुलैया | Patrika News
ओपिनियन

बढ़ती महंगाई और सरकारी आंकड़ों की भूलभुलैया

मुद्रास्फीति का आकलन: हाल ही में भारत सरकार द्वारा जारी किए आंकड़ों के अनुसार पिछले कुछ महीनों में देश में खुदरा महंगाई में कमी हुई है, जबकि थोक महंगाई में वृद्धि हुई है। एक आम व्यक्ति के लिए यह एक पहेली है। वह इन आंकड़ों के आधार पर यह निर्णय नहीं कर पाता कि मुद्रास्फीति की यह दर उसके लिए प्रतिकूल है अथवा अनुकूल।

जयपुरJun 20, 2024 / 07:25 pm

Gyan Chand Patni

प्रो. सी.एस. बरला
कृषि अर्थशास्त्री, विश्व बैंक और योजना आयोग से संबद्ध रह चुके हैं
पिछले दो वर्षों में किए गए अध्ययनों से ज्ञात होता है कि 2022-23 के बीच विश्व में भूख से पीडि़त लोगों की संख्या 69 करोड़ से बढ़कर 78.3 करोड़ हो गई। इसका यह अर्थ हुआ कि 2023 में विश्व की लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या भुखमरी से पीडि़त थी। इसी के विपरीत भारत में राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन यानी एनएसएसओ द्वारा उपभोक्ता व्यय पर एकत्रित आंकड़ों से ज्ञात हुआ था कि 2011—12 तथा 2022—23 के बीच शहरी तथा ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में परिवारों का उपभोग पर किया जाने वाले व्यय का जिनी गुणांक कम हुआ है। इसका अर्थ यह है कि इस अवधि में ग्रामीण तथा शहरी दोनों ही क्षेत्र में उपभोक्ता व्यय की विषमताओं में कमी हुई है।
उपभोक्ता व्यय के तथ्य : जिनी गुणांक विभिन्न वर्गों के बीच उपभोक्ता व्यय की विषमताओं का प्रतीक है। यह गुणांक जितना अधिक है उसका आशय यह है कि कुछ ही व्यक्ति उपभोक्ता व्यय का अधिक भाग व्यय करते हैं। परोक्ष रूप में यह देश में व्याप्त गरीबी के उच्च स्तर का प्रतीक है। अन्य शब्दों में, उपभोक्त व्यय का जिनी गुणांक यदि कम है तो यह गरीबों के कम स्तर का परिचायक होगा। भारत के नीति आयोग के प्रमुख इसी आधार पर यह निष्कर्ष देते हैं कि 2011-12 तथा 2022-23 के बीच भारत में गरीबों का अनुपात 5त्न से कम हो गया। 2011-12 में शहरी क्षेत्र में उपभोक्ता का जिनी गुणांक 0.363 था और 2011-़१2 में ग्रामीण क्षेत्र में उपभोक्ता व्यय का जिनी गुणांक 0.283 था। 2022-23 में शहरी क्षेत्र का जिनी गुणांक 0.314 था और 2022-23 में ग्रामीण क्षेत्र का जिनी गुणांक 0.२८6 था। इस प्रकार दोनों ही क्षेत्रों में उपभोक्ता व्यय में कमी हुई है। राष्ट्रीय सैंपल सर्वे से यह बात सामने आई कि आलोच्य अवधि में उपभोक्ता परिवारों में निचले 50 प्रतिशत परिवारों की उपभोक्ता व्यय के अनुपात में अपेक्षाकृत अधिक तेजी से वृद्धि हुई है। यह एक अच्छा संकेत भी माना जा सकता है क्योंकि उपभोक्ता परिवारों में हम जितनी नीचे की पायदान पर जाएंगे हमें निर्धन लोग ही अधिक दिखाई देंगे।
राज्यवार उपभोक्ता व्यय में अंतर: इस तथ्य को एनएसएसओ ने स्वीकार किया है कि खाद्य पदार्थों की कीमतों तथा उपभोक्ताओं की आदतों में पर्याप्त अंतर होने के कारण सारे राज्यों के परिवारों के उपभोक्ता व्यय की तुलना करने में कठिनाई होती है। इसका एक समाधान प्रति व्यक्ति मासिक उपभोक्ता व्यय की तुलना द्वारा हो सकता है। इन स्तरों में भी विभिन्न राज्यों में काफी विषमताएं हैं। उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ में प्रति व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र में उपभोक्ता व्यय 2468 रुपए है जबकि शहर में इसका स्तर 4462 रुपए है। इसके विपरीत केरल में ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय 2920 रुपए तथा शहरी क्षेत्र में 8175 रुपए है।
अस्तु, उपभोक्ता व्यय के जिनी गुणांक में कमी या वृद्धि से यह तो ज्ञात हो सकता है कि उपभोक्ता व्यय के वितरण में विषमताएं बढ़ीं या कम हुईं लेकिन इसकी सार्थकता कितनी है तथा नीति निर्धारण में यह कहां तक उपयोगी है, यह कहना संभव नहीं हैै। परिवारों के लिए महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों का स्तर कितना है तथा उसकी आय के स्तर में अनुपात कितना है। यह भी उल्लेखनीय है कि उपभोक्ता व्यय के आंकड़े हमारी नीतियों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं, इसकी भी समीक्षा जरूरी है।
मुद्रास्फीति का आकलन: हाल ही में भारत सरकार द्वारा जारी किए आंकड़ों के अनुसार पिछले कुछ महीनों में देश में खुदरा महंगाई में कमी हुई है, जबकि थोक महंगाई में वृद्धि हुई है। एक आम व्यक्ति के लिए यह एक पहेली है। वह इन आंकड़ों के आधार पर यह निर्णय नहीं कर पाता कि मुद्रास्फीति की यह दर उसके लिए प्रतिकूल है अथवा अनुकूल। वस्तुत: खुदरा तथा थोक मूल्य सूचकांकों की गणना करते समय न केवल वस्तुओं की संख्या में अंतर है और न ही मूल्य में समरूपता है। इस कारण स्थिति के बारे में सटीक जानकारी नहीं मिलती। आवश्यकता इस बात की है कि सैद्धांतिक पृष्ठभूमि में समरूपता लाई जाए जिससे आम व्यक्ति किसी प्रकार के भ्रम में ना रहे ।

Hindi News / Prime / Opinion / बढ़ती महंगाई और सरकारी आंकड़ों की भूलभुलैया

ट्रेंडिंग वीडियो