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PATRIKA OPINION: इमोशनल इंटेलिजेंस से चुनौतियों के समाधान की निकलती है राह

नेतृत्व : लीडर में समझ की गहराई बढ़ाने में मददगार

जयपुरMay 20, 2024 / 02:28 pm

विकास माथुर

पिछले आलेखों में भावनात्मक बुद्धिमत्ता (ईआइ) की चर्चा की गई। इसे विकसित करने में लीडरों को अक्सर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस प्रक्रिया में हर स्थिति उनके संकल्प और अनुकूलनशीलता का परीक्षण करती है। भावनात्मक परिदृश्य को समझना और उसमें महारत हासिल करने में तार्किक सोच की भी सीमा होती है।
एक आम चुनौती स्वयं की भावनाओं को पहचानने और समझने की है। कई लीडरों को वर्षों तक संज्ञानात्मक कौशल पर ध्यान केंद्रित करने और भावनात्मक पहलुओं को कमतर आंकने से एक बाधा महसूस हो सकती है। इससे आत्म-जागरूकता की कमी हो सकती है और दूसरों के साथ सहानुभूति रखने में कठिनाई हो सकती है। इससे प्रभावी ढंग से नेतृत्व करने की उनकी क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है। यह माना जाता कि भावनाएं व्यक्त करना या भावनात्मक होना, विशेषकर कार्यस्थल पर कमजोरी का संकेत है। यह अवधारणा भी एक बाधा है। इन चुनौतियों का समाधान भावनाओं को समझने और महत्व देने के तरीके में आमूल-चूल बदलाव में निहित है।
स्वीकार करें कि भावनाएं मानवीय अनुभव का एक अभिन्न अंग हैं और प्रभावी नेतृत्व के लिए उन्हें समझना महत्त्वपूर्ण है। आत्म-जागरूकता के विकास के लिए माइंडफुलनेस और चिंतनशील अभ्यास जैसी तकनीकें लाभकारी हो सकती हैं। ये लीडरों को एक पल के लिए रुक कर आत्मनिरीक्षण करने और उनकी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को पहचानने में मदद करती हैं, जिससे अभ्यास के साथ बेहतर आत्म-प्रबंधन का मार्ग प्रशस्त होता है। लीडर न केवल संघर्ष या निर्णय लेते समय, अपितु नियमित रूप से स्वयं को दूसरों की स्थिति में रख कर उनके विचारों और भावों को समझने का प्रयास कर सकते हैं। इससे उनके अधीनस्थों से एक गहरा संबंध विकसित होता है और विश्वास में वृद्धि होती है, जिससे लीडर की भावनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास होता है। इसके साथ ही, कार्यस्थल पर वरिष्ठों और सहकर्मियों से प्रतिक्रिया को स्वीकारना और भावनात्मक प्रवृत्तियों के बारे में सीखने के लिए तैयार रहना मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है।
ईआइ पर कार्यशालाएं और प्रशिक्षण सत्र भी संरचित शिक्षण और विकास के अवसर प्रदान कर सकते हैं। ईआइ विकसित करने में चुनौतियों पर काबू पाने का अर्थ भावनाओं को मानवीय अंत:क्रिया के एक प्राकृतिक और शक्तिशाली घटक और नेतृत्व में एक महत्त्वपूर्ण तत्व के रूप में अपनाना है। यह अधीनस्थों को आदेश देने और नियंत्रित करने से अपना ध्यान हटाकर, उनके साथ सम्बन्ध जोडऩे और उन्हें समझने पर केंद्रित है, जो गहरे, अधिक मानवीय स्तर पर स्वयं को व्यक्त करता है।
यह स्पष्ट है कि ईआइ केवल नेतृत्व का सहायक उपकरण नहीं है; यह इसका सार है। इसमें सब सम्मिलित है – किस तरह से लीडर खुद को समझते हैं और अपनी टीम के साथ जुड़ते हैं और किस तरह से वे संगठनात्मक गतिशीलता की जटिलताओं को पार करते हैं। ईआइ अधिक संवेदनशील, सहानुभूतिपूर्ण और प्रभावी नेतृत्व का मार्ग प्रशस्त करता है। यह कार्यस्थल पर सद्भाव उत्पन्न करता है जो पारंपरिक नेतृत्व प्रतिमानों से परे है। ईआइ से प्रबंधक और लीडर की समझ की गहराई बढ़ती है। इससे उनमें निर्णय लेने का कौशल बढ़ता है, उनमें संचार बढ़ता है और टीम के साथ उनके संबंधों मेंमजबूती आती है।
नेतृत्व विकास में ईआइ आवश्यक प्रतीत होता है। जैसे-जैसे व्यापार जगत तेजी से जटिल हो रहा है और परस्पर जुड़ाव बढ़ रहा है, उससे ऐसे प्रबंधकों और लीडरों की मांग बढ़ेगी जो भावनात्मक ज्ञान और बुद्धिमत्ता के साथ इस परिदृश्य को पार कर सकें। ईआइ का विकास संभवत: नेतृत्व पाठ्यक्रम का एक अभिन्न अंग बन जाएगा, जिसमें कम उम्र से ही इन कौशलों को विकसित करने पर अधिक जोर दिया जाएगा। भविष्य में सफल लीडर वे होंगे जो भावनात्मक कौशल को रणनीतिक अंतर्दृष्टि के साथ मिश्रित कर सकेंगे, संगठनों को संवेदनशीलता और समझ के साथ संचालित कर सकेंगे और जो गहरे मानवीय स्तर पर जुड़ सकेंगे।
— प्रो हिमांशु राय, निदेशक आईआईएम, इंदौर

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