चुनाव प्रचार को डिजिटल रैलियों तक सीमित करने से राजनीतिक दलों को उसी तरह की समस्याओं से दो-चार होना पड़ सकता है, जो स्कूलों की ऑनलाइन पढ़ाई-लिखाई में महसूस की जा रही हैं। डिजिटल क्षमताओं के मामले में राजनीतिक दलों के बीच काफी असमानता है।
सिर्फ भाजपा सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों के मामले में सबसे मजबूत है। उसके पास ब्लॉक स्तर तक आइटी सेल हैं और वॉट्सऐप पर भी वह बड़ा नेटवर्क तैयार कर चुकी है। जबकि बाकी दल बहुत पीछे हैं। चुनाव आयोग को इन तथ्यों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी है कि दलों की बात लोगों तक और लोगों की बात दलों तक पहुंचे।
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