गांव उजड़ गए, खेत-खलिहान उजड़ गए, संस्कृति लुप्त हो गई। खान-पान, पहनावा, परम्पराएं लुप्त हो गईं। हरियाली उजाड़ दी, कहीं कच्ची जमीन तक नहीं छोड़ी, पशु-डेयरी सब शहर से बाहर हो गए। मेले-खेले, हाट-हटवाड़े, ढोल-गेरे-नगारे-वाकये किताबों में रह गए। जो था सब लुट गया। जो अफसरों को सुहाता है, वह रह गया। गांव- मोहल्ले, कच्चे मकान, तांगों के साथ घोडों की टापें छीन ली पहले नगर परिषद ने, बाद में जयपुर विकास न्यास/प्राधिकरण ने। अब चौमूं-बगरू-चाकसू को देखो, ये जयपुर लगते हैं क्या? उनको किसी ने जयपुर बनाने का प्रयास किया क्या? जयपुर के नियम-कायदे इन पर लागू कर-करके इनका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया, उनको जो सब्जबाग दिखाए थे, वे उजड़ गए।
क्या विकसित देशों में शहरों के विस्तार नहीं होते? होते रहे हैं- होते रहेंगे। आप लंदन-न्यूयार्क को भी देखें। सबर्ब (उपनगर) हर शहर में हैं। यहां नहीं हैं। अफसरों से पूछो क्यों नहीं है। क्या इन क्षेत्रों को जयपुर की तर्ज पर विकसित नहीं किया जा सकता था? इनको छोटे टाउन (सेटेलाइट) बना सकते थे। बसों-रेलों से जोड़ते, शहरी सुविधाएं देते, कुछ सरकारी विभाग/अफसरों के वहां रहने की योजना बनाते-बहुमंजिला इमारतें होतीं, पार्क होते, मनोरंजन के साधन- होटल-रेस्टोरेंट होते तो क्या वे शहर आने की सोचते? उनको रोजगार वहीं मिल जाता-स्वास्थ्य-शिक्षा-खेलकूद सब उपलब्ध होते। क्यों नहीं किया गया? और, इस प्रश्न का उत्तर कोई देगा क्या? आज तो आस-पास के कस्बों में कार्यरत अधिकारी भी जयपुर आकर रात्रि विश्राम करने का प्रयास करता है। अपने विकास से स्वयं ही असंतुष्ट है।
खुली चर्चा हो
आज जिस बेढंग से, क्षुद्र स्वार्थों के कारण जयपुर का बदहाल हुआ है उसे देखकर खून के आंसू टपकते है। विकास के लिए जिम्मेदार मस्त हैं। इस बदहाली के समय-समय पर भागीदार रहे कई नेता-सरपंच- अधिकारी में से आज अधिकांश तो संसार से विदा भी हो गए। क्या दे गए-क्या ले गए। जयपुर शहर को 2940 वर्ग किलोमीटर में फैला गए-मैला कर गए। आज तक भी इतने बड़े क्षेत्र का विकास करने की क्षमता सरकार में नहीं है। भले ही भू-माफिया से मिलकर जमीनों पर कब्जा कर लें, विकास कर पाने की क्षमता इनमें नहीं है। इनका अहंकार इनको स्वीकार भी नहीं करने देता।
आज भी एक हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र खाली पड़ा है। कूड़े के ढेर, सीवरेज लाइनें, जलमहल, द्रव्यवती, गंदे नाले, कच्ची बस्तियां इनका मुंह चिढ़ाती हैं। ये सब शहर के ‘आभूषण’ बने हुए हैं। हजारों- करोड़ का बजट खाकर ये भी शहर का मैला ही बढ़ाते हैं। नई सरकार से अनुरोध है कि इस अंग्रेजी विकास को बत्ती लगाओ। नए सिरे से 2940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का पुनः नियोजन कराया जाए। क्षेत्र के पारम्परिक स्वरूप के प्रति गंभीर होने की भी आवश्यकता है। जिनके पेट भर गए, उनकी संतानें तो यहां रहनी नहीं हैं। शहर को रहने वालों के लिए पुनः बसाया जाए। नई आवश्यकताओं के अनुरूप। पहला कानून तो यह बने कि जयपुर का फैलाव आगे नहीं बढ़ेगा।
सारा विकास ऊर्ध्वमुखी होगा। जो भी पूर्व स्वीकृति के बिना निर्माण करेगा वह और क्षेत्र का जिम्मेदार अधिकारी भी दण्डित होगा। जिस क्षेत्र में अवैध निर्माण चल रहा है, उस क्षेत्र के अधिकारी को बर्खास्त करने का कानून बने। रंगे हाथों पकड़े जाने पर का अर्थ है-स्वयं जांच करने की भी ‘जांच कराएंगे’ बात करने वाला भी इसमें शामिल है। सम्पूर्ण प्रांत आज ऐसे लुटेरों के हवाले नजर आता है। नेता भी कई क्षेत्रों में शामिल रहते हैं। इनको सजा क्यों नहीं होती? ? समय दूर नहीं है जब एक सीमा बाद जनता इनको चौराहों पर जलील करने से नहीं चूकेगी। सरकारी भवनों, कार्यालयों, खुले स्थानों पर मास्टर प्लान के अनुरूप नक्शे पास हों। इसका उल्लंघन ही भ्रष्टाचार है। नया मास्टर प्लान इसी क्षेत्र में विकास की गारंटी देने वाला हो। अतिक्रमण अवैध निर्माण टूटें। केवल सड़कें चौड़ी करना ही निर्माण ध्वस्त करने का कारण नहीं हो सकता। अवैध तो अवैध ही है। बड़े-बड़े भूखण्डों पर बहुमंजिला इमारतों का निर्माण किया जाए। नए बंगले शहर के बीच नहीं बने। नेता-अफसरों को आवास के लिए बड़े मकान देने के स्थान पर बहुमंजिला इमारत की एक मंजिल दे दें।
सवाल यह है कि शहर की हरियाली किसने चुराई? पेड़ों को कौन काट ले गया? फल-फूलदार पेड़ों की जगह कांटे जंगली बबूल और बोगनवेलिया किसने बिछाए, भू-जल का अनावश्यक दोहन कौन करा रहा है? हर तरह के भ्रष्ट तंत्र के केन्द्र में कौन है? बजरी, शराब, मादक पदार्थ में यदि नेता-अधिकारी नहीं जुड़ते तो क्या ऐसी दुर्दशा होती? राजस्थान के रास्ते अकेले गुजरात में प्रतिदिन कितनी अवैध शराब जाती है-कौन जाने देता है और क्यों? इसी तरह कई प्रकार के अवैध सामग्री भर-भरकर ट्रक चौकियों के सामने से निकलते हैं। आप किसी एक का पीछा करके दिखा दें। सिपाही साथ जाकर चौकी पार कराता मिल सकता है। इनका ध्यान शहर के विकास की ओर कौन ले जा सकता है। ये ही जनता के सेवक हैं।
अब तो चुनौती है नई पीढ़ी की अपेक्षाओं के अनुकूल 2940 वर्ग किलोमीटर का स्वरूप तैयार करना। नकारा लोगों को घर बैठे वेतन भले ही भेज दें। उनके हाथों में महत्वपूर्ण कार्य नहीं सौंपें। बड़े पद पर बड़ा वेतन दो, कार्य भी दक्षता के अनुकूल हो। अभी पुराने मास्टर प्लान से वेंटिलेटर हटाना है। जब तब मौजूदा प्लान को शत प्रतिशत मूर्तरूप नहीं दिया जाए तब तक नया मास्टर प्लान नहीं बनाया जाए। नए क्षेत्र जोड़ना तो प्रदेश का सत्यानाश ही होगा।
पहले सभी कस्बों का स्वरूप-व्यवस्था जयपुर जैसी की जाए। सैटेलाइट टाउन बनें, जो सुविधा युक्त हों। कस्बे के लोग कस्बे में रहें। कच्ची बस्तियों का पुनःस्थापन किया जाए। यातायात स्वतः ही ठीक हो जाएगा। बाहरी लोगों के कारण जो अपराध बढ़ रहे हैं, उन पर नियंत्रण किया जाए। पुलिस पर अपराधों घुसपैठियों के मामलों में विश्वास नहीं रहा। पुलिस भी गंभीर नहीं है। माफिया से गठजोड़ के चर्चे भी कम नहीं है। सरकार को दृढ़ इच्छाशक्ति दिखानी पड़ेगी। अभी तो अफसर राज कर रहे हैं। नई योजनाओं पर पहले जनता से खुली चर्चा होनी चाहिए।