scriptपत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – दुनिया की व्यथा | Patrika Group Editor In Chief Gulab Kothari Special Article 1st August 2024 The Suffering Of World | Patrika News
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पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – दुनिया की व्यथा

फ्रांस में ओलंपिक खेलों के उद्घाटन से एक दिन पहले आतंककारियों ने रेल को निशाना बनाया। पेरिस चाक-चौबंद व्यवस्था में छावनी बना हुआ है।

जयपुरAug 01, 2024 / 10:43 am

Gulab Kothari

गुलाब कोठारी

फ्रांस में ओलंपिक खेलों के उद्घाटन से एक दिन पहले आतंककारियों ने रेल को निशाना बनाया। पेरिस चाक-चौबंद व्यवस्था में छावनी बना हुआ है। फिर भी सुरक्षित कहां हुआ! हमास प्रमुख इस्माइल हानिया की ईरान की राजधानी तेहरान में हत्या हो गई। कहा जा रहा है कि इजरायल ने हमास से बदला लिया है। समझा जा सकता है कि अलग-अलग स्थानों-देशों में आतंकवाद के नाम-रूप भिन्न हैं। क्या हमास-हिजबुल्ला-हूती आतंकवादी संगठन नहीं हैं? तीनों को ही ईरान का प्रश्रय प्राप्त है, यह भी जगजाहिर है। सबकी हथियार-प्रशिक्षण व्यवस्था भी ईरान करता है। तीनों संगठनों ने प्रमाणित भी कर दिया कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। युद्ध में पुरुषों के मारे जाने पर उनके परिवार (स्त्रियों एवं बच्चों) पर किसी को रहम नहीं आता। अफगानिस्तान का तालिबानी संगठन किस प्रकार अपने ही देशवासियों के साथ बन्दूक की नोंक पर बात करता है। पाकिस्तान में तो ऐसे कई संगठन काम कर रहे हैं।
दूसरी ओर यूरोप पर दृष्टिपात करें। जिन लोगों पर दया कर कभी शरण दी थी, जीने का अवसर दिया था, वे ही विद्रोही बनकर आतंक फैला रहे हैं। सत्ता हथियाने की मुहिम कई देशों में चरम तक पहुंचने लगी हैं। सोशल मीडिया आग में घी डाल रहा है। मध्य-पूर्व का काला सोना (तेल) अपनी हुकूमत फैलाने को उतावला हो रहा है। इजराइल जैसे छोटे देश को केन्द्र में रखकर आज कितने देश इस युद्ध में भाग ले रहे हैं।
मध्य-पूर्व का धन ही एशिया में भी आतंक को उकसा रहा है। एक ओर जिहादी भेजे जा रहे हैं, दूसरी ओर धन और हथियार उपलब्ध कराए जा रहे हैं। जानवर और आदमी के मरने में उनको कोई अंतर नजर नहीं आता। गाजापट्टी से बड़ा उदाहरण क्या होगा! वहां सब हाथियों की लड़ाई है। लोग कहते हैं कि अब यह ईसाई-इस्लाम का युद्ध है। होगा। शेष विश्व के लिए तो आतंकवाद ही है। आज उधर से निकलने वाले प्रत्येक मालवाहक जहाज पर आक्रमण कर उसे जलमग्न किया जा रहा है। चाहे वह किसी भी देश का हो। यह तो वहशीपन है। पिछले साल अक्टूबर से चल रहा यह युद्ध आज अनियंत्रित हो गया है।
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तब भारत जैसे अहिंसा प्रधान देश की क्या बिसात है? पेरिस में हमला हो या फिर हमास प्रमुख के मारे जाने की घटना-चारों ओर आतंक बरस रहा है। बरसों से बरस रहा है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव चाहे मित्र हों या शत्रु आतंक में सहायक तो हैं ही । नेपाल के रास्ते -बर्मा के रास्ते भी खुले हैं। आज भारत में कितने लोग अवैध तरीके से आए, कितने अवैध हथियार, कितना अवैध धन और मादक पदार्थ नियमित आ रहा है, कौन नहीं जानता।

भविष्य का प्रश्न

सत्ता के लालची देश बेचने तक को तैयार रहते हैं। कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से ही हमारे देश में सुरक्षा के मोर्चे पर बहुत सी बातें होती हैं। सुरक्षा का क्या मतलब होता है यह देखने के लिए पेरिस जाना चाहिए। ताकि यह समझा जा सके कि दुनिया के विकसित कहे जाने वाले हिस्सों में भी नागरिक स्वतंत्रता कितनी सीमित हो सकती है। ऐसे में सीमाओं को सुरक्षित रखना भारत के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती है।
आतंकवाद का नियमित और योजनाबद्ध प्रशिक्षण दिया जाना भी आज की वास्तविकता है। अपहरण-बलात्कार-लव जिहाद भी इसी का हिस्सा बनता जा रहा है। इससे बड़ा खतरा ध्रुवीकरण का हो रहा है। साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण युवा शक्ति को देश के विकास से भटका रहा है। मादक पदार्थों का आक्रमण युवाओं के लिए पहले ही बड़ी चुनौती बन रही है। यहीं से वह आतंककारी संगठनों की गोद में जा रहा है। नशा उसके लिए सर्वोपरि है।
हमें मुम्बई-जयपुर के आतंकी हमले याद हैं। भारत में कसाब को फांसी हो गई, लेकिन पाकिस्तान में चल रहा केस एक इंच आगे नहीं बढ़ा। कानून व्यवस्था अपराधियों के लिए जन्नत है। साथ ही मुफ्त का खाना-पीना। उदयपुर में कन्हैया के हत्यारों का क्या हुआ? कौनसा सबूत चाहिए? पूरा देश एक तरफ और न्याय व्यवस्था -कानून- एक तरफ। हिजबुल मुजाहिद्दीन के हमले में सात मार्च को शोपियां (जम्मू-कश्मीर) में तीन जवान और पिछले वर्ष 20 अप्रेल को पुंछ में सेना के ट्रक पर हमले में पांच जवान शहीद हो गए। दूसरे हमले की जैश-ए-मोहम्मद ने जिम्मेदारी ली।
वर्ष 2022 में सोपोर हमला हुआ। 2021 में नागरोटा में जैश-ए-मोहम्मद ने हमला किया। लश्कर-ए-तैयबा ने 2020 में हंदवाड़ा में जवानों पर हमला किया। पुलवामा में 14 फरवरी 2019 के हमले को कौन भूलेगा? जैैश-ए-मोहम्मद के हमले में हमारे 40 जवानों की शहादत हो गई थी। वर्ष 2018 में श्रीनगर और सुंजवां में हमले हुए थे। वर्ष 2017 में अमरनाथ यात्रा पर हमला हुआ-सात यात्री मारे गए। पठानकोट हवाई अड्डे पर भी सात जवान शहीद हुए थे। 2016 में उरी सैक्टर हमले में 19 जवान शहीद हुए। उधमपुर और गुरदासपुर के हमले भी स्मृति में ताजा हैं।
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यह व्यथा अकेले भारत की ही नहीं है। पाकिस्तान के पेशावर स्कूल पर हमले में लगभग 150 बच्चे मारे गए थे। आतंकवादी तहरीक-ए-तालीबान के थे। आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) की आतंकी कारगुजारियों की भी लम्बी फेहरिस्त है। पेरिस के बम ब्लास्ट सीरीज में मारे गए 130 लोगों व ब्रसेल्स में रेल के स्टेशन पर हुए धमाके में मारे गए 32 जनों की जिम्मेदारी भी आईएसआईएस ने ली थी। फ्रांस में उत्सव की भीड़ पर हमले में इसी संगठन ने 86 लोगों की जान ली। ब्रिटेन में एक कार्यक्रम के दौरान हुए हमले ने 22 लोगों की जान भी आईएसआईएस ने ही ली थी। लॉस बेगास (अमरीका) में भी एक उत्सव में हुए हमले में 58 लोग मारे गए थे। इण्डोनेशिया के तीन चर्चों के हमले में वर्ष 2018 में 28 लोग मारे गए थे। श्रीलंका में 2019 में ईस्टर बम धमाके में 250 लोग मारे गए थे। ये भी आईएसआईएस के हमलों में ही मौत के शिकार हुए।
वर्ष 2022 में सोपोर हमला हुआ। 2021 में नागरोटा में जैश-ए-मोहम्मद ने हमला किया। लश्कर-ए-तैयबा ने 2020 में हंदवाड़ा में जवानों पर हमला किया। पुलवामा में 14 फरवरी 2019 के हमले को कौन भूलेगा? जैैश-ए-मोहम्मद के हमले में हमारे 40 जवानों की शहादत हो गई थी। वर्ष 2018 में श्रीनगर और सुंजवां में हमले हुए थे। वर्ष 2017 में अमरनाथ यात्रा पर हमला हुआ-सात यात्री मारे गए। पठानकोट हवाई अड्डे पर भी सात जवान शहीद हुए थे। 2016 में उरी सैक्टर हमले में 19 जवान शहीद हुए। उधमपुर और गुरदासपुर के हमले भी स्मृति में ताजा हैं।
यह व्यथा अकेले भारत की ही नहीं है। पाकिस्तान के पेशावर स्कूल पर हमले में लगभग 150 बच्चे मारे गए थे। आतंकवादी तहरीक-ए-तालीबान के थे। आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) की आतंकी कारगुजारियों की भी लम्बी फेहरिस्त है। पेरिस के बम ब्लास्ट सीरीज में मारे गए 130 लोगों व ब्रसेल्स में रेल के स्टेशन पर हुए धमाके में मारे गए 32 जनों की जिम्मेदारी भी आईएसआईएस ने ली थी। फ्रांस में उत्सव की भीड़ पर हमले में इसी संगठन ने 86 लोगों की जान ली। ब्रिटेन में एक कार्यक्रम के दौरान हुए हमले ने 22 लोगों की जान भी आईएसआईएस ने ही ली थी। लॉस बेगास (अमरीका) में भी एक उत्सव में हुए हमले में 58 लोग मारे गए थे। इण्डोनेशिया के तीन चर्चों के हमले में वर्ष 2018 में 28 लोग मारे गए थे। श्रीलंका में 2019 में ईस्टर बम धमाके में 250 लोग मारे गए थे। ये भी आईएसआईएस के हमलों में ही मौत के शिकार हुए।
वर्ष 2020 में काबुल विश्वविद्यालय के दो नवम्बर के हमले में 35 लोगों की मौत व 26 अगस्त 2021 को काबुल हवाई अड्डे के धमाके में 183 लोगों की मौत की जिम्मेदारी भी आईएसआईएस ने ही ली थी। 2022 में नाईजीरिया के चर्च धमाके में 50 से अधिक लोग मारे गए थे। वर्ष 2023 इस्तांबुल धमाके में 6 लोगों को मारने की जिम्मेदारी कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी ने ली थी। इसी प्रकार 2024 का अजूबा हमला (नाइजीरिया) 50 से ज्यादा जानें ले गया। बोको हराम नामक संगठन का इसमें हाथ रहा था।
ये आंकड़े कुछ दुर्दांत आतंकी घटनाओं के हैं। पूरा विश्व आतंकित है। स्वयं आतंकियों के देश भी इनसे आतंकित हैं। शायद इनको भी नहीं मालूम कि किनके इशारों पर ये अपनी जान जोखिम में डालते हैं? मध्य-पूर्व धधक रहा है। आतंक की आंच एशिया-यूरोप तक फैल रही है। सरकारें मौन हैं। कानून की अपनी ही चाल है। राजनीति भी अब आतंकवाद की चपेट में भी आ रही है, तो कहीं आतंकवाद की आग को हवा भी देती दिखाई दे रही है। अवैध तरीके से लोगों को बसाने वाले बिचौलिए और नेता पुलिस से छिपे नहीं हैं। संगठित व्यापारी-भिखारी-पुलिस और सरकारें मिलकर इस अग्नि-ज्वालामुखी-को फैला रहे हैं। जनसंख्या का मुद्दा भी इसी से जुड़ा है।
आतंक का मुकाबला तो करना है और देखना है कि जिन पर हम भरोसा कर रहे हैं कहीं वे ही तो देश के दुश्मन नहीं बन रहे। घर का भेदी लंका ढाहे! आने वाली पीढ़ियाें के भविष्य का प्रश्न है। शिक्षा में राष्ट्र प्रेम, धरती माता एवं देशहित के पाठ प्राथमिकता से जुड़ने चाहिए। युवा संकल्प और स्वप्न देश से जुड़ जाने चाहिए। सौहार्द का एक नया अभियान चलना चाहिए। संविधान के तीनों पायों को भी पुन: संविधान रक्षा का संकल्प हर हाल में दोहराना पड़ेगा। जोत जगानी है-युवा संगठनों को घर-घर जाकर।

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