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दोगे तो ही मिलेगा

बिहार के लोकसभा चुनाव में इस बार रोचक बात यह है कि मुकाबला लालू यादव के रहने या न रहने का बन गया है। लालू के दोनों बेटों के अलावा दो बेटियां भी सत्ता की लड़ाई में उतरी हुई हैं।

जयपुरJun 01, 2024 / 11:14 am

Gulab Kothari

गुलाब कोठारी

बिहार के लोकसभा चुनाव में इस बार रोचक बात यह है कि मुकाबला लालू यादव के रहने या न रहने का बन गया है। लालू के दोनों बेटों के अलावा दो बेटियां भी सत्ता की लड़ाई में उतरी हुई हैं। दोनों बेटे तेजस्वी व तेजप्रताप विधायक हैं तो मीसा भारती राज्यसभा सदस्य हैं। भारती पहले भी पाटलिपुत्र से दो चुनाव हार चुकी हैं। इस बार तो स्वयं लालू उसके लिए वोट मांगने निकल पड़े हैं। चूंकि सामने भी यादव ही है अत: उनको मनाने का रास्ता बन्द ही है। सारा आश्रय मुस्लिम मतदाताओं पर ही टिका है। लालू यादव ‘बेटी बचाओ’ अभियान में मुस्लिम समुदाय से याचना कर रहे हैं।
मुस्लिम समुदाय की गणित भी इस बार बदलती जान पड़ती है। किशनगंज सीट मूलत: मुस्लिम बहुल है। इस बार पास की कटिहार सीट पर भी (ओवैसी ने कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया) मुस्लिम प्रत्याशी के जीतने की बात बन सकती है। वहां कांग्रेस से तारिक अनवर लड़ रहे हैं। साथ ही इस बार तीनों मुख्य बाहुबली परिवार भी चुनाव मैदान में चुनौती दे रहे हैं। शिवहर से आनन्द मोहन की पत्नी लवली आनन्द, दिवंगत शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब सिवान से तथा राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव पूर्णिया से। न तो ये जीतने वाले, न ही राजद को जीतने देंगे, कोशी, पूर्णिया व सिवान क्षेत्र में नजारा रोचक होने वाला है। मानो यादव ही आपस में लड़ेंगे।
कहीं न कहीं लगता है कि इंडिया गठबंधन की स्थिति में सुधार हुआ है। यह सुधार तीसरे राउंड के मतदान के बाद होता दिखा है। शुरुआत के दो राउंड में स्थिति सुधरी हुई नहीं लगती थी। बिहार में पहले इस गठबंधन के पास एक ही सीट थी। इस बार यही कोशिश है कि कितनी सीटें तोड़ सकते हैं एनडीए से। कांग्रेस भले ही यहां सिर्फ 9 सीटों पर है पर उसे लगता है कि तीन-चार सीटें उसके हाथ में आ ही जाएंगी। पटना साहिब जैसी सीट पर तो लगता है कि कांग्रेस ने भाजपा उम्मीदवार रविशंकर प्रसाद को वॉक ओवर दे दिया। यहां कांग्रेस से लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष मीरा कुमार के पुत्र सर्वजीत कुमार मैदान में हैं। मीरा कुमार खुद अपनी परम्परागत सीट सासाराम से चुनाव क्यों नहीं लड़ीं इसकी भी चर्चा है।
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बिहार में ब्राह्मण और क्षत्रिय ही सवर्ण हैं। वैश्यों को राजनीति के चक्कर में अति पिछड़ी जातियों में मिला दिया गया, जिनमें तेली, हलवाई जैसी जातियां शामिल हैं। अब यादव-कुर्मी भी जागरूक जातियों में माने जाने लगे। वंचित जातियों को भी टिकट मिलने लगे हैं। अत: किसी को भी एक-मुश्त वोट किसी समुदाय से नहीं मिलने वाले। कटिहार में 45 प्रतिशत मुस्लिम हैं। अब 14-15 प्रतिशत यादव भी जुड़ गए। जहानाबाद की जंग भूमिहारों के हाथ में है। जिधर गया-वही जीता। एनडीए में शामिल राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा भी कांटे की टक्कर में हैं काराकाट से।

मैं और मेरा

आरजेडी ने दुर्दांत अपराधी अशोक महतो की पत्नी अनिता को मुंगेर से उम्मीदवार बनाया है। अशोक महतो खुद चुनाव लड़ने योग्य नहीं था इसलिए आरजेडी ने उसकी पत्नी को टिकट दिया।
चिराग पासवान को भी पांच सीटें मिली हैं। वह खुद निकल जाए या फिर एक और। भाजपा की सभी सीटें सुरक्षित लग रही हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने चार स्तंभों (के.के पाठक, दीपक कुमार, आनन्द किशोर, प्रत्यय अमृत) पर टिके हैं। इसकी कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी। नीतीश की जेडी-यू के पास 16 सीटें हैं। जो बड़ा उतार-चढ़ाव है, वह इसी क्षेत्र में होने वाला है। बिहार की 40 सीटों में से 39 तो पहले ही एनडीए के हाथ में हैं। सिर्फ एक सीट किशनगंज से कांग्रेस जीती थी। एवरेस्ट पर पहुंचकर और ऊपर कहां जाएंगे? कुछ खोना ही पड़ेगा। कुशवाहा (सम्राट चौधरी) को उपमुख्यमंत्री बनाया, फिर भी साध नहीं पाए। पिछले वर्षों में जो काम हुआ, वह ठेकों का था। सड़कें और पुल बनाने के। गंगा नदी को शहर से पांच किलोमीटर दूर कर दिया। शहर को देखकर नहीं कहा जा सकता कि पटना, बिहार जैसे बड़े राज्य की राजधानी है। चारदीवारी तो आज भी आजादी पूर्व की लग रही है।
बिहार में लालू शासन के डर से न कोई बड़ा उद्योग आया, न ही कोई बड़ा होटल। वह राज भारत के इतिहास का काला-पन्ना रहा है। आज लालू सत्ता में भले न हो, किन्तु उनकी नीयत किसी अन्य को पार्टी की कमान देने की नहीं है। राजद के माध्यम से उनके सभी रिश्तेदार प्राथमिकता के आधार पर सत्ता में बने रहना चाहते हैं। जनता उनके परिवार को वोट देकर सत्ता में रखे। वे सत्ता में आकर अपनी झोली भरें। क्या आज का युवा इतना भोला है-? पहले मियां-बीवी, अब बच्चे राज करना चाहते हैं। जैसे राहुल गांधी, वैसे ही तेजस्वी! पहले परिवार खड़ा हो, राष्ट्र बाद में-पार्टी बाद में। लगता है दोनों ही सत्ता के बाहर रहेंगे। लालू यादव चाहते तो इस परिस्थिति को टाल सकते थे। उन्हें दो बेटियों की जगह पार्टी के लोगों को ही टिकट देना था। चूक गए। जनता शायद ही अवसर दे। इसकी मार तेजस्वी को भी पड़ेगी।
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जनता को, आपके परिवार ने ऐसा क्या दे दिया कि वह पुन: आपको प्रतिष्ठित करेगी-? लालू की नीयत जनता के पक्ष में दिखाई नहीं देती। उनको बिहार के बाहर देश भी दिखाई नहीं देता। मैं और मेरा बिहार! मैं और मेरा यूपी! मैं और मेरा दिल्ली! इन पर देश की जिम्मेदारी डालेगी जनता-? मुझे तो सुनाई नहीं दिया।
हमारा एक ईगो (अहंकार) है। हम मर्जी से तो बोते हैं, फिर काटने से पीछे हट जाते हैं। जो हमने बोया है, वह तो काटना ही पड़ेगा। कांटे बोए हैं, तो हमारे ही चुभेंगे भी। आज रस्सी जल गई, बळ अभी नहीं गया। सत्ता का मद होता है। उसे जाने में समय लगता है। तेजस्वी के पास क्या ‘मद’ है- लालू का बेटा हूं। अखिलेश का मद- मुलायम सिंह का बेटा हूं। राहुल का मद-मैं इंदिरा गांधी के परिवार का हूं। इनके पास जनता को देने के लिए इस ‘मद’ के सिवा है क्या-? इसी मद के लिए इनको सीएम/पीएम बना देना चाहिए-? इनके परिजनों को राज-सभा की कुर्सी दे देनी चाहिए-? पिछले पांच वर्षों में इन्होंने जनता को जो दिया, वही तो लौटकर इनके पास आने वाला है।

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