scriptनकली सशक्तीकरण | Patrika Group Editor In Chief Gulab Kothari's Article 14 Oct 2023 | Patrika News
ओपिनियन

नकली सशक्तीकरण

व्यक्ति पहले स्वयं से झूठ बोलता है, फिर वही झूठ दूसरों से बोलता है। यही बात महिला सशक्तीकरण पर अक्षरश: लागू होती है। महिला, सशक्तीकरण चाहती है-अपने पुरुष के आगे खड़ी होने को-दूसरे पुरुष से? क्या पुरुष-प्रकृति का सम्बन्ध इतना सरल है।

Oct 14, 2023 / 02:39 pm

Gulab Kothari

photo1697274164.jpeg

गुलाब कोठारी
व्यक्ति पहले स्वयं से झूठ बोलता है, फिर वही झूठ दूसरों से बोलता है। यही बात महिला सशक्तीकरण पर अक्षरश: लागू होती है। महिला, सशक्तीकरण चाहती है-अपने पुरुष के आगे खड़ी होने को-दूसरे पुरुष से? क्या पुरुष-प्रकृति का सम्बन्ध इतना सरल है। क्या अज्ञानता इसका कारण है अथवा निर्धनता है? इसका पहला कारण तो अहंकार ही है-पुरुष का। आजादी के 75 वर्षों बाद भी आदिवासी-दलित महिला वहीं खड़ी है। आरक्षण भी उनका रक्षण कहां कर पाया! आज तो संसद में एक तिहाई सीटों को महिला आरक्षण में लाने की बात हो रही है। क्या इन महिलाओं की विधायक/सांसद के रूप में भूमिकाएं देश को नई सदी की ओर ले जा सकेंगी!

अभी तो महिला अपने पति की सांकलों से ही मुक्त नहीं हो पा रही है। कानून में उसे आरक्षण तो है, आरक्षित पद पर कार्य करने की गारण्टी नहीं है। चुनी वह जाती है। पर अकसर काम परिजन करते हैं। मतदाता इस बात से बेखबर है कि उसके वोट से महिला चुनी जाएगी या पुरुष। कानून की पालना में सीटें स्थायी रूप से तय कर दीं। यह दूसरा अन्याय है। होना तो यह चाहिए कि आपकी सूची में एक तिहाई महिला प्रत्याशी हों, कहीं से भी, किसी के सामने भी चुनाव लड़ें। कानून अंधा होता है। उसे देशहित से पहले सबूतों की चिन्ता होती है। ऐसे में महिला को उचित अधिकार कैसे मिलेगा। तब महिला का शोषण क्यों नहीं होगा! बल्कि कहना चाहिए कि लोकतंत्र का तमाशा क्यों नहीं होगा? इस व्यवस्था का प्रभाव यह हुआ कि महिला के सशक्त होने की आवश्यकता ही नहीं रही। उसका महिला होना ही पर्याप्त है। अब तो नए पद ‘सृजित’ हो गए-सरपंच पति, मेयर पति, विधायक पति…। मैं पिछले दिनों तीनों प्रान्तों राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ का चुनावी माहौल देखने निकला तो ऐसे पीठासीन (पत्नियों की पीठ पर लदे) लोगों से अच्छा परिचय हुआ। ज्यादातर से तो मैंने बात करने तक से मना कर दिया। जीन्स-टीशर्ट में मूंछों पर ताव देते ये सरपंच पति-अध्यक्ष पति क्या लोकतंत्र के लिए नासूर नहीं हैं? जनता ने इन पतियों को तो नहीं चुना, फिर इनको सहन कैसे कर लेती है?

यह भी पढ़ें

कबीरा खड़ा बाजार में



पति को इस बात पर गर्व ही नहीं होता कि जनता ने वोट देकर उसकी पत्नी का सम्मान किया है। उसे आगे बढ़ने का, लोकतंत्र में भागीदारी का अवसर दिया है। पति को लगता है कि वह नासमझ कमाई कैसे कर पाएगी। पत्नी के सम्मान को वह अपना सम्मान ही नहीं मानता। उसके पैर काट रहा है, ताकि न वह कुछ सीख सके, न ही आगे बढ़े। जनता को ही आगे आना होगा। यह उनके मतदान का अपमान है। जिसको वोट दिया वह कार्य न करे और उसके अधिकार कोई अहंकारी ले उड़े-जिसे चुना ही नहीं! कई महिलाएं तो चुनने के बाद भी घर पर घूंघट में बैठी रहे तो आश्चर्य नहीं होगा। कानून की अपेक्षा भी गौण और मतदाता की अपेक्षा भी गौण! इससे अच्छा दृश्य ‘महिला सशक्तीकरण’ का क्या हो सकता है? लोकतंत्र 75 वर्ष से मुख्य रूप से पुरुषों के हवाले है, इसलिए यह संवेदनाशून्य होता जा रहा है। क्योंकि पुरुष बुद्धि के धरातल से काम करते हैं, जिससे अहंकार पोषित होता है।

यह भी पढ़ें

तीसरा पड़ाव : भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा




गारंटी किसकी
दूसरी ओर, महिलाएं मन के धरातल से सबको जोड़ती हैं। समाज को संस्कारवान बनाती हैं। इसलिए लोकतंत्र को संवेदनाओं के साथ आगे बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि इसमें महिलाओं की भागीदारी बढ़े। ऐसी महिलाओं की जो मन के धरातल पर काम करती हों। बुद्धि के आधार पर काम करने वाली महिलाएं पहले ही राजनीति में बहुत काम कर चुकी हैं। उनका शरीर ही नहीं, मन भी महिलाओं जैसा होना चाहिए। बुद्धि के धरातल पर राजनीति में आने वाली महिलाओं का अहंकार तो पुरुषों को भी पीछे छोड़ देता है। पुरुष ने अपने अहंकार से अब तक देश को तोड़ा ही है। अब महिलाओं से उम्मीद हैं कि वे फिर से जोड़ेंगी। क्योंकि वे ही समाज को संस्कारवान और संवेदना युक्त करती हैं।

दूसरा बड़ा प्रश्न है महिला सुरक्षा का। क्या आज के अपराधयुक्त खुले वातावरण में, जहां हत्याएं-गैंगरेप आम बात होने लगी हैं, महिला सुरक्षित है? इसके लिए शिक्षा का कोई प्रभाव-समझदारी काम नहीं आती। अमरीकी संसद में भी महिला सांसद सुरक्षित नहीं मिली। सर्वाधिक शिक्षित वर्ग-आइटी सेक्टर तक में यौन शोषण के मामले की शिकायतें 84 प्रतिशत बढ़ गई हैं। अधिकांश समृद्धि प्राप्त संस्थाओं में यही हाल है। 50 प्रतिशत से कहीं कम नहीं हैं। सत्ता में बैठे लोग भी सशक्तीकरण के स्थान पर शोषण पर ही केन्द्रित हैं। फिर दलित-आदिवासी-पिछड़े वर्ग की महिला को संसद-विधानसभा तक ले जाना है। सुरक्षा की, शिक्षा की, सम्मान की गारण्टी कौन देगा? क्या संसद भवन में भी सांसद-पति बैठेंगे?

Hindi News/ Prime / Opinion / नकली सशक्तीकरण

ट्रेंडिंग वीडियो