यह भी पढ़ें – Patrika Opinion: राजनीतिक दलों को खुद के विचारों पर नहीं भरोसा यह नीति दस्तावेज अधिक पठनीय, अंतर्दृष्टिपूर्ण और व्यावहारिक होता, यदि पाकिस्तान ने अतीत के गलत फैसलों और उनके नतीजों पर चर्चा की होती और देखा होता कि समस्या के हल के लिए उसके पास क्या संसाधन हैं।
चाहे जो भी हो, पाकिस्तान दुनिया का एक प्रमुख देश है। उसकी भू-रणनीतिक स्थिति का महत्त्व, पाकिस्तान के ही समर्थन से खड़े हुए संगठनों के विरुद्ध होना जैसे अफगानिस्तान में तालिबान और फिर अमरीका के खिलाफ अप्रत्यक्ष तालिबान का साथ देना, इन कारणों से उसे कमतर नहीं आंका जा सकता है। चिंताजनक मुद्दे तेजी से बढ़ रहे हैं। उसकी अर्थव्यवस्था लगभग ढहने के कगार पर है और इसके पटरी पर लौटने के लिए संसाधनों की कमी है।
सबसे बढ़कर उसे यह नहीं मालूम कि पड़ोसी देशों, विशेषकर भारत के साथ कैसे व्यवहार किया जाए। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में एक बुनियादी नियम है – किसी भी देश को अपूर्ण मुद्दों पर दोस्ती व वार्ता से प्रतिफल की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। भारत के खिलाफ दुश्मनी कायम रखना पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है।
अगर यह बात है तो क्यों पाकिस्तान के तहरीक-ए-तालिबान, जिसने पाकिस्तानी धरती पर कई हमले किए और कई सुरक्षाकर्मियों को मार डाला, पर अंकुश के लिए तालिबान के साथ अच्छे रिश्तों पर उसकी नजर है। इन तोड़े-मरोड़े गए तर्कों से परिदृश्य नहीं बदलेगा। पाकिस्तान की सुरक्षा के संरक्षक अपने ही लोगों से झूठ बोलना जारी रखेंगे तो स्थिरता दूर की कौड़ी ही रहेगी। अनिष्ट संकेत है कि पाकिस्तान आत्म-विनाश की ओर अग्रसर है और दुनिया चिंतित है।