scriptनिर्भया को न्याय तो मिला, इंसाफ का तकाजा अभी बाकी | Nirbhaya got justice but, something is still missing | Patrika News
ओपिनियन

निर्भया को न्याय तो मिला, इंसाफ का तकाजा अभी बाकी

क्या वाकई महिलाओं के खिलाफ आपराधिक मानसिकता वाले किसी शख्स पर इस फांसी का कोई असर होगा? लंबी न्याय प्रक्रिया के बाद जो बात सबसे ज्यादा खलने वाली है, वह है किसी अपराधी या उसके परिजन का पश्चाताप सामने न आना। इसलिए निर्भया के अपराधियों को फांसी देने के बाद अब कहीं ज्यादा बड़ी चिंता पर विचार करने का समय है।

Mar 20, 2020 / 06:34 am

MUKESH BHUSHAN

insaf.jpg
दिल्ली की निर्भया को न्याय मिल गया। उसके छह दोषियों को अपने कर्मों का आखिरी मुकाम हासिल हो गया। देश को झकझोर देने वाले सामूहिक बलात्कार-हत्याकांड के आखिरी चार अपराधियों ने फांसी की सजा के लिए चौथी बार मुकर्रर समय से चंद घंटों पहले तक कानूनी पेचीदगियों पर अपना भरोसा कम नहीं होने दिया। एक दिन पहले गुरुवार सुबह से लेकर शुक्रवार तड़के तक, पटियाला हाउस कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक करीब आठ याचिकाएं लगाई। हालांकि निचली से लेकर शीर्ष अदालत तक ने यही माना कि उनके सभी कानूनी विकल्प समाप्त हो चुके हैं। आखिरकार तय समय 20 मार्च (शुक्रवार) सुबह 05.30 बजे तिहाड़ जेल में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।
निर्भया को मिले इस न्याय के लिए स्वयं उसकी हिम्मत की बड़ी भूमिका है, कि वारदात के बाद मरनासन्न अवस्था में भी उसने साहसपूर्वक बयान दर्ज कराए। इसके अतिरिक्त, उसके माता-पिता की हिम्मत की भी दाद देनी होगी, जिन्होंने सामाजिक विडंबनाओं और वर्जनाओं को तोड़कर अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए हरसंभव मोर्चे पर न सिर्फ स्वयं को तैनात रखा बल्कि, संघर्ष किया।
कानून की उदारता का इस्तेमाल

निर्भया की मां का यह कहना गलत नहीं है कि कानून की उदारता का अपराधियों ने एक तरह से मजाक बना दिया। किसी निरपराध को सजा न हो, इस सोच के साथ, अपराधी को बचाव का हरसंभव मौका देने के महान कानूनी प्रावधानों का शातिराना इस्तेमाल करते हुए अपराधियों और उनके परिजनों ने वैसी ही ढीठता दिखाई, जैसी महिलाओं, बच्चों या अपने से कमजोर किसी व्यक्ति के साथ अपराध करते समय एक अपराधी की मानसिकता होती है।
मानसिकता का सवाल

याद कीजिए 2015 में बनी बीबीसी-4 की डॉक्युमेंटरी फिल्म ‘इंडियाज डॉटर’ (भारत की बेटी) को, जिसमें निर्भया का एक अपराधी मुकेश सिंह कहते हुए दिखता है कि ‘यदि उस लड़की ने विरोध न किया होता और जो हो रहा था होने देती तो बच जाती।’ हमारी सामाजिक नैतिकता को आईना दिखाने वाली इस फिल्म में मुकेश के वकील भी घटना के लिए पीड़ित को ही दोषी मानते हुए यह कहते पाए जाते हैं कि महिलाएं फूल जैसी कोमल और हीरे जैसी कीमती होती है। लिहाजा उन्हें संभाल कर रखना उनके परिवार की जिम्मेदारी है।

समझा जा सकता है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपना करिअर बनाने दिल्ली आई 23 साल की वह युवती कैसे ऐसे लोगों के चंगुल में फंस जाती है जो यह मानते थे कि रात नौ बजे के बाद ‘शरीफ लड़कियां’ घर के बाहर नहीं निकलतीं। इसीलिए, 16 दिसंबर 2012 की रात को चलती बस में इंसान की शक्ल में छह दरिंदों ने जो किया उसे देश कभी भूल नहीं पाया। पर क्या वाकई आपराधिक मानसिकता वाले किसी शख्स पर इस फांसी का कोई असर होगा? लंबी न्याय प्रक्रिया के बाद जो बात सबसे ज्यादा खलने वाली है, वह है किसी अपराधी या उसके परिजन का पश्चाताप सामने न आना।
लंबी कानूनी प्रक्रिया का नुकसान

इस मामले के एक अपराधी राम सिंह ने जेल में आत्महत्या कर ली थी। एक अन्य को अपराध के समय नाबालिग होने के कारण फांसी की सजा नहीं दी गई। अन्य चारों अपराधियों मुकेश सिंह, विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर और पवन गुप्ता को अपेक्षाकृत कम समय में (13 मार्च 2013 को) सजा सुनाए जाने के बावजूद फांसी देने में सात साल लगे। इस दौरान अपराधियों ने लगातार यही कोशिश की कि उन्हें ही प्रताड़ित समझा जाए। कानून को चकमा देने की हरसंभव कोशिश भी की।
अपने कर्मों पर शर्मिंदगी नहीं

अदालत में वकील की दलीलों तक तो यह ठीक है, पर उससे बाहर किसी अपराधी के परिजन की तरफ से ऐसा कोई बयान नहीं आया, जिससे समझा जा सके लिए उन्हें निर्भया के प्रति भी कोई संवेदना है। यह जानने के बावजूद कि इस प्रकरण में निरपराध साबित होना संभव नहीं है, मौत की सजा के बावजूद, अपने कर्मों पर शर्मिंदा न होना, इंसाफ के तकाजे का अधूरा छूट जाना है।
संभावित बलात्कारियों से ज्यादा खतरा

याद रखने वाली बात यह है कि समाज को घोषित बलात्कारियों से ज्यादा खतरा ऐसे लोगों से है जो मौका मिलते ही बलात्कारी होने की संभावनाओं से भरे हैं। क्या उन पर इस फांसी का कोई असर होगा? निर्भयाकांड से पहले तक उसके अपराधी भी देश के लाखों युवाओं जैसे थे। ‘इंडियाज डॉटर’ में एक बलात्कारी यह स्वीकार करता है कि इस घटना से पहले उसका किसी से यौन संबंध नहीं था। उसकी प्रेम स्मृतियों में वर्षों पहले की एक लड़की भी थी जिसे उसने हड़बड़ी में चूमने की कोशिश की थी और जो घबराकर भाग गई थी।
बड़े सवाल पर विचार का समय

महिला अपराधों में सख्त सजा के प्रावधानों के बावजूद अपराधियों का आत्मावलोकन के लिए विवश न होना एक बड़ी वजह है, कि ऐसे अपराध खत्म होने की बजाय बढ़ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ का यह सवाल विचारणीय है कि क्या फांसी की सजा से ऐसे अपराध कम हो जाएंगे? निर्भयाकांड के बाद बलात्कार के मामलों में दोषियों को फांसी की सजा देने के मामले तेजी से बढ़े हैं। पर बलात्कार की घटनाओं में इससे कोई कमी नहीं आ रही है। निर्भया को न्याय दिलाने के बाद अब इस बड़े सवाल पर विचार करने का समय है।

Hindi News / Prime / Opinion / निर्भया को न्याय तो मिला, इंसाफ का तकाजा अभी बाकी

ट्रेंडिंग वीडियो