जब परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) 1970 से प्रभावी है, तो नई संधि की जरूरत क्यों महसूस हुई? पांच दशक के दौरान एनपीटी का कितना पालन हुआ? अगर एनपीटी पर दस्तखत करने वाले अमरीका तथा रूस ने परमाणु हथियारों की होड़ को लेकर संयम बरता होता, तो शायद आज अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य कुछ और होता। दुनिया में 1945 के बाद जो दो हजार से ज्यादा ज्ञात परमाणु परीक्षण हुए, उनमें से 85 फीसदी अमरीका और रूस ने किए। अमरीका के 1,332 और रूस के 715 परमाणु परीक्षणों पर ज्यादा हल्ला नहीं हुआ। भारत के चंद परमाणु परीक्षण पर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की भृकुटियां तन जाती हैं।
दरअसल, भारत की परमाणु नीति का मकसद कई साल तक सामाजिक-आर्थिक विकास रहा। परमाणु शक्ति का इस्तेमाल ऊर्जा उत्पादन में होता रहा। लेकिन कुछ साल से पड़ोसी चीन और पाकिस्तान के रुख को देखते हुए वह अपनी इस शक्ति के विकल्पों को खुला रखना चाहता है। किसी अंतरराष्ट्रीय संधि में शामिल होकर वह अपने सामरिक हितों की अनदेखी नहीं कर सकता। इसीलिए भारत इस बात पर जोर दे रहा है कि परमाणु हथियारों पर अंकुश और पूर्ण निरस्त्रीकरण के लिए क्षेत्रीय नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोशिशें होनी चाहिए। चीन ने 1964 में अपना पहला परमाणु परीक्षण कर दक्षिण एशिया में जो सामरिक असंतुलन पैदा किया, उसके बाद ही भारत को 1974 में पहला परमाणु परीक्षण करना पड़ा था। अब जबकि पाकिस्तान भी परमाणु क्लब में है, भारत के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि से बढ़कर है।