शर्मसार करती ऐसी घटनाएं न केवल नैतिकता का उल्लंघन है, बल्कि शिक्षा के बुनियादी सिद्धांतों के विपरीत भी है। ऐसा इसलिए भी कि स्कूल और कॉलेज केवल शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान ही नहीं हैं। वे बच्चों के सामाजिक और नैतिक विकास के लिए भी उत्तरदायी हैं। एक शिक्षक का कर्तव्य है कि वह वक्त-बेवक्त अपने शिष्य वर्ग की जरूरतों को समझे और उनके प्रति सहानुभूति रखे। छात्रा को अपमानित करना न केवल अनुचित था, बल्कि यह उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालने वाला है। साफ जाहिर है कि समाज और शैक्षणिक संस्थानों में मासिक धर्म स्वच्छता और जागरूकता को बढ़ाने के लिए अभी भी बहुत प्रयास करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार को सरकारी और सहायता प्राप्त सरकारी स्कूलों में जाने वाली कक्षा 6 से 12 तक की छात्राओं के लिए मासिक धर्म स्वच्छता नीति तैयार करने के निर्देश दिए थे। उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि वह बालिकाओं की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए पीएमश्री योजना के तहत करीब 535 विद्यालयों में सैनिटरी पैड उपलब्ध करवा रही है।
मासिक धर्म जैसे प्राकृतिक विषय को शर्म या उपेक्षा का कारण नहीं बनने देना चाहिए। शैक्षणिक संस्थानों को सुरक्षित माहौल प्रदान करना चाहिए, जहां छात्राएं अपनी जरूरतों को बिना झिझक व्यक्त कर सकें।