मणिमहेश झील: आस्था में मानसरोवर झील के तुल्य
मणिमहेश का अर्थ होता है शिव का आभूषण और किंवदंतियों में इस झील की उत्पत्ति से जुड़ी कई लोक कथाएं प्रचलित हैं। ऐसी ही एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने देवी पार्वती से शादी करने के बाद झील का निर्माण किया था।
मणिमहेश झील: आस्था में मानसरोवर झील के तुल्य
संजय शेफर्ड
ट्रैवल राइटर और ब्लॉगर हिमाचल हमेशा से ही मेरी सबसे पसंदीदा जगहों में रहा है। खासकर, यहां की दूरदराज स्थित घाटियां और उसमें बसे गांव तो मुझे सदैव ही अच्छे लगे हैं। यही कारण है कि जब कभी भी घूमने का मन करता, अपना बैकपैक पीठ पर उठाता और बिना ज्यादा कुछ सोचे-समझे ही हिमाचल के किसी गांव की तरफ निकल पड़ता। मणिमहेश झील यात्रा का प्लान भी कुछ ऐसे ही बना था। बस झील देखने का मन हुआ और निकल पड़ा। मणिमहेश का अर्थ होता है शिव का आभूषण और किंवदंतियों में इस झील की उत्पत्ति से जुड़ी कई लोक कथाएं प्रचलित हैं। ऐसी ही एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने देवी पार्वती से शादी करने के बाद झील का निर्माण किया था।
इसी तरह एक और पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मांड के तीनों देवता यानी कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव का यहीं पर निवास स्थान है। मान्यता है, कि शिव का स्वर्ग मणिमहेश, विष्णु का स्वर्ग धन्चो के पास स्थित झरना और ब्रह्मा का स्वर्ग भरमौर के पास स्थित एक टीला है। यह झील हिंदू आस्था में मानसरोवर झील के तुल्य महत्त्व रखती हैं। इस जगह के बारे में जानकर मुझे अच्छा लगा और इसे और जानने की उत्सुकता का ही नतीजा था कि दिल्ली से बस पकड़कर शिमला पहुंचा और फिर चंबा। मणिमहेश झील समुद्र तल से लगभग 4000 मीटर की ऊंचाई पर चंबा जिले के भरमौर क्षेत्र में स्थित है। इस झील के पास जाने के लिए सैलानियों को 13 किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर तय करनी पड़ती है। समुद्र तल से अत्यधिक ऊंचाई के कारण सर्दियों के मौसम में यहां पर भारी बर्फबारी होती है और मणिमहेश की यात्रा बंद रहती है।
गर्मियों का मौसम इस जगह पर जाने के लिए काफी अनुकूल होता है और ज्यादातर लोग इसी दौरान यात्रा करना पसंद करते हैं, पर सर्दी में भी इस जगह पर लोग जाना पसंद करते हैं। यह एक तीर्थ स्थल के रूप में काफी प्रसिद्ध है। यहां पर भादो के महीना में कृष्ण अष्टमी के दौरान मेला लगता है और मणिमहेश के लिए यात्रा निकाली जाती है।
इस जगह की यात्रा में मौसम के साथ-साथ कई अन्य तरह की चुनौतियां भी आती हैं, जिनका सामना आपको करना ही करना पड़ता है। यात्रा पर निकलने से पहले अपने साथ गर्म कपड़े, भोजन एवं पानी अवश्य रख लें, क्योंकि यहां काफी ज्यादा ठंड पड़ती है। आस-पास खाने-पीने की व्यवस्था भी नजर नहीं आती। यह ट्रैक काफी कठिन और चुनौतियों से भरा हुआ है। इसलिए ट्रैकिंग के समय आप कभी भी अकेले नहीं निकलें, अपने साथी या ट्रैकिंग गार्ड के साथ ही निकलें। मणिमहेश झील यात्रा के लिए तभी निकलें, जब आप पूर्ण रूप से शारीरिक और मानसिक रूप से फिट हों। यदि थोड़ी भी दिक्कत है, तो यहां की यात्रा न करें, क्योंकि आपको काफी ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
मेले के दौरान यदि आप यात्रा कर रहे हैं, तो सुविधाओं के लिहाज से थोड़ी सहूलियत मिल जाती है, लेकिन इस दौरान यहां काफी भीड़ रहती है। मैं इस जगह पर पहले भी जा चुका था। इसलिए रास्ते में आने वाली तमाम तरह की चुनौतियों का अंदाजा पहले से था।
मणिमहेश जाने के लिए एक नहीं कई मार्ग हैं। कुछ लोग लाहौल और स्पीति से कुट्टी दर्रे से होकर जाना पसंद करते हैं। कुछ लोग हसदर-मणिमहेश मार्ग से यानी हडसर गांव से तेरह किलोमीटर के ट्रैकिंग करके जाते हैं। इस मार्ग से मणिमहेश झील जाने में दो दिन का समय लग जाता है। मणिमहेश की यात्रा जल्दी करनी है और आपको इतनी लंबी ट्रैकिंग पसंद नहीं है, तो यहां पर जाने के लिए आपको हेलिकॉप्टर की सुविधा भी मिल जाएगी।
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