scriptकैसे बन गया पर्माक्राइसिस वर्ष 2022 का खास शब्द | How permacrisis became the key word of the year | Patrika News
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कैसे बन गया पर्माक्राइसिस वर्ष 2022 का खास शब्द

ब्रिटेन के जाने माने अंग्रेजी शब्दकोश कोलिन्स द्वारा इस वर्ष के लिए घोषित वर्ड ऑफ द ईयर -‘पर्माक्राइसिस ‘ लोगों में व्याप्त अनिश्चितता और असुरक्षा की भावना को दर्शाता हैं। इस शब्द का विश्लेषण किया जाए, तो यह परमानेंट और क्राइसिस दो शब्दों से बना लगता है। साफ हैै कि परमानेंट का सीधा-सीधा अर्थ है स्थायी, तो दूसरी और क्राइसिस का अर्थ है संकट। ‘पर्माक्राइसिस ‘ का वर्ड ऑफ द ईयर बनने का भी बड़ा कारण यही है कि दुनिया लगातार स्थायी संकट के दौर से गुजर रही है।

Dec 28, 2022 / 07:39 pm

Patrika Desk

कैसे बन गया पर्माक्राइसिस वर्ष 2022 का खास शब्द

कैसे बन गया पर्माक्राइसिस वर्ष 2022 का खास शब्द

राजेंद्र प्रसाद शर्मा
समसामयिक विषयों पर टिप्पणीकार

ब्रिटेन के जाने माने अंग्रेजी शब्दकोश कोलिन्स द्वारा इस वर्ष के लिए घोषित वर्ड ऑफ द ईयर -‘पर्माक्राइसिस ‘ लोगों में व्याप्त अनिश्चितता और असुरक्षा की भावना को दर्शाता हैं। इस शब्द का विश्लेषण किया जाए, तो यह परमानेंट और क्राइसिस दो शब्दों से बना लगता है। साफ हैै कि परमानेंट का सीधा-सीधा अर्थ है स्थायी, तो दूसरी और क्राइसिस का अर्थ है संकट। ‘पर्माक्राइसिस ‘ का वर्ड ऑफ द ईयर बनने का भी बड़ा कारण यही है कि दुनिया लगातार स्थायी संकट के दौर से गुजर रही है। ‘पर्माक्राइसिस ‘ के पीछे जो कारण समझे जा रहे हैं, उनमें कोविड तो एक प्रमुख कारण है ही, ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से अलग होने का फैसला ब्रेग्जिट, रूस और यूक्रेन के बीच दस माह से भी अधिक समय से चल रहा युद्ध, जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते हालात, दुनिया के विभिन्न देशों के सामने अर्थव्यवस्था का संकट, दुनिया के अनेक देशों में राजनीतिक अस्थिरता के कारण इस दशक के दूसरे साल में ही ‘पर्माक्राइसिस ‘ जैसे हालात हो गए हैं। लोगों को लग रहा है कि संकट का दौर जारी है और इसका कोई समाधान निकट भविष्य में नजर नहीं आ रहा है। दरअसल, कोरोना के बाद से हालात सामान्य हो ही नहीं पा रहे। युद्ध और अर्थव्यवस्था का संकट और उससे भी एक कदम आगे जलवायु परिवर्तन के कारण अनचाहे तूफानों का दौर जारी भी है। समूचे विश्व में निराशा है।
दरअसल, पर्माक्राइसिस का मतलब यह निकल कर आता है कि इस दौर में उभरी समस्याओं का हल नहीं हो पा रहा है और लगभग स्थायी संकट का दौर आ गया है। लाख प्रयासों के बावजूद कोरोना से पूरी तरह से मुक्ति नहीं मिली है, तो रूस-यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा। ब्रिटेन में ब्रेग्जिट और गलत निर्णयों के कारण संकट देखा जा चुका है और ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने के बावजूद अभी हालात ज्यादा अच्छे नहीं लग रहे हैं। कोरोना के बाद संकट का जो दौर आया उसके बाद भी आतंकवाद में कोई कमी नहीं आई है, तो एक-दूसरे देशों के प्रति वैमनस्यता भी कम नहीं हो रही हैै। कोलिन्स द्वारा इस साल सामने लाए गए अन्य शब्दों में ‘पार्टीगेट ‘ का भी जमकर प्रयोग हुआ है। इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन द्वारा कोविड पाबंदियों के बावजूद जन्मदिन की पार्टी करना और उसके बाद के हालात से ‘पार्टीगेट ‘ शब्द चल निकला है। इसी तरह से ‘स्पोट्र्स वाशिंग ‘ शब्द प्रमुख दस शब्दों में शुमार है। कुछ इसी तरह से ‘वार्म बैंक ‘ का चलन भी काफी रहा, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में बदलाव इस कदर होने लगा है कि कहीं सर्दी अधिक तो कहीं गर्मी अधिक। ऊर्जा सकंट के चलते गरीबों को इससे दो चार होना पड़ रहा है। इसी तरह के कई शब्दों का चलन अधिक रहा पर खास बात यह रही कि इस दौरान सामने आए दस प्रमुख शब्दों में से निराशा से आशा का संचार करता एक भी शब्द सामने नहीं आया है। इससे दुनिया के हालात का पता चलता है।
दरअसल, ‘वर्ड ऑफ द ईयर ‘ देश-दुनिया के हालात को व्यक्त करते हैं। यह शब्द मात्र पूरी बात को व्यक्त कर देता है। ‘पर्माक्राइसिस ‘ शब्द भी इसी संकट की तरफ इशारा कर रहा है। दरअसल, यह हमें सोचने को भी मजबूर कर रहा है। विभिन्न देशों के प्रमुखों, अर्थ विज्ञानियों, समाज विज्ञानियों, नीति नियंताओं, पर्यावरणविदों सहित सभी को गंभीर चिंतन और मंथन करने की जरूरत है, ताकि समय रहते हालात को सामान्य किया जा सके। कोविड के कारण स्वास्थ्य संकट हम भुगत चुके हैं। भुखमरी और खाद्यान्न संकट का दौर सामने है। साथ ही आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी सभी कर चुके हैं। ‘पर्माक्राइसिस ‘ विभिन्न तरह की समस्याओं सेे संभलने का संकेत दे रहा है। दुनिया के कर्णधारों को इस संकट से उबरने के लिए एकजुटता के साथ तेजी से काम करना ही होगा।

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