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जापान-दक्षिण कोरिया-ताइवान से ले सकते हैं सीख

भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र का लक्ष्य हासिल करने के लिए सतत विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धी उद्योगों पर फोकस करना मुख्य बिन्दु हैं। भारत इन पहलुओं से अंतर्दृष्टि हासिल कर सकता है। जैसे-प्रगतिशील सरकारी सुधार, विनिर्माण-आधारित विकास और प्रदर्शन-आधारित नवाचारों से उद्योगों को प्रोत्साहन देकर।

जयपुरAug 13, 2024 / 09:25 pm

Gyan Chand Patni

त्रिदीप भट्टाचार्य
एडलवाइस एसेट मैनेजमेंट लिमिटेड के मुख्य निवेश अधिकारी इक्विटी
भारत को स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा गया है। अपनी विकास यात्रा में तेजी से प्रगति करने के लिए जापान, द. कोरिया और ताइवान से महत्त्वपूर्ण सीख ली जा सकती है। जापान के आर्थिक करिश्मे की बात करें। उसका उत्थान उसकी रणनीतिक नीतियों, प्रौद्योगिक नवाचारों और सामाजिक प्रतिबद्धताओं में निहित है। 20वीं सदी की शुरुआत में औद्योगिकीकरण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पुनर्निर्माण ने रिकवरी के लिए मंच तैयार किया। 1950 और 1962 के दशक में जापान ने निर्यात-उन्मुख औद्योगिकीकरण की राह अपनाई जिसमें विश्व के अग्रणी समूहों के साथ मिलकर उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का विनिर्माण शामिल था। शिक्षा, अनुसंधान एवं विकास और काइजेन (जापानी शब्द जिसका अर्थ है बेहतरी के लिए निरन्तर सुधार) पर जोर देते हुए जापान ने कुशल कार्यबल का ढांचा विकसित किया। 1970 और 1980 के दशक में, जापान में प्रौद्योगिकी और ढांचागत निवेश के जरिए जीडीपी में तेज वृद्धि हुई और उच्च-गुणवत्ता वाला जीवन-स्तर देखा गया। 1990 के आर्थिक ठहराव के बावजूद, जापान ने अपनी वैश्विक आर्थिक भूमिका को बनाए रखा। तीव्रतम आर्थिक विकास वृद्धि के दौरान उसकी प्रति व्यक्ति जीडीपी दस गुना बढ़ गई।
साउथ कोरिया में आर्थिक बदलाव की बात की जाए तो देश ने रणनीतिक योजनाओं, उद्यमी कर्मशीलता और नवाचार के माध्यम से गरीबी से निकलते हुए आर्थिक उत्कृष्टता हासिल की। कोरियाई युद्ध के बाद, इस देश ने तेज गति से औद्योगिकीकरण और आर्थिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित किया। 1960 और 1970 के दौरान पंचवर्षीय योजनाओं के तहत निर्यात-उन्मुख औद्योगिकीकरण को प्राथमिकता दी गई। सरकार के सहयोग से भारी उद्योगों जैसे स्टील और जहाज निर्माण को बढ़ावा मिला। विविधता और टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट के जरिए आर्थिक विकास में चार चांद लगाए। 1980 और 1990 के दशक में, हाईटेक इंडस्ट्रीज की अवधारणाओं को अपनाते हुए दक्षिण कोरिया इलेक्ट्रॉनिक्स और आइटी क्षेत्र में अगुवा बन गया। एशियाई वित्तीय जैसी चुनौतियों के बावजूद रणनीतिक सुधारों ने मजबूत रिकवरी की और सफल आर्थिक बदलाव का प्रदर्शन किया। 1960-1990 के दौरान प्रति व्यक्ति जीडीपी में पचास गुना से अधिक सुधार हुआ और कोस्पी इंडेक्स 1983 से 1990 तक औसतन सात गुना तक बढ़ गया।
ताइवान की तकनीकी प्रगति पर ध्यान दिया जाए तो रणनीतिक नीतियों, तकनीकी पर फोकस और उद्यमशीलता लचीलेपन की छाप उसकी आर्थिक वृद्धि पर स्पष्ट दिखती है। द्वितीय विश्वयुद्ध और चीन के सिविल वार के बाद, ताइवान ने भूमि सुधारों, ढांचागत और शिक्षा के जरिए अपनी इकोनॉमी का पुनर्गठन किया। 1950 और 1960 के दशक में, टेक्सटाइल में निर्यात-उन्मुख रणनीति अपनाते हुए तेजी से औद्योगीकीकरण किया गया। 1970 और 1980 के दशक तक, ताइवान का उच्च तकनीक उद्योगों की ओर रुझान रहा। 1980 में सिंचू साइंस पार्क स्थापित करते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर क्षेत्र को प्रोत्साहन दिया गया। 1960 से 1990 कर प्रति व्यक्ति जीडीपी में पचास गुना सुधार हुआ और 1966 से 1990 तक टाइएक्स इंडेक्स औसतन 45 गुना बढ़ा।
भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र का लक्ष्य हासिल करने के लिए सतत विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धी उद्योगों पर फोकस करना मुख्य बिन्दु हैं। भारत इन पहलुओं से अंतर्दृष्टि हासिल कर सकता है। जैसे-प्रगतिशील सरकारी सुधार, विनिर्माण-आधारित विकास और प्रदर्शन-आधारित नवाचारों से उद्योगों को प्रोत्साहन देकर। भारत ने पहले ही विनिर्माण पर फोकस, उद्योगों में पीएलआइ जैसी योजनाएं अपनाई हैं। प्रति व्यक्ति जीडीपी में भी सार्थक वृद्धि हुई है। हाल के बजट में भी, बजट आवंटन में विनिर्माण क्षेत्र को तरजीह दी गई है। इसके बावजूद लगातार सफलता सुनिश्चित करने के लिए, भारत को कम से कम एक दशक तक ‘नीतिगत निरंतरता’ बनाए रखनी चाहिए और विश्वस्तर पर विकसित होने वाले प्रतिस्पर्धी उद्योगों पर फोकस करते रहना चाहिए। नवाचार को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। ध्यान रहे, आर्थिक विकास के दौरान जापान, दक्षिण कोरिया और ताइवान के शेयर बाजारों में शानदार वृद्धि देखी गई। भारत को भी शेयर बाजार को प्रोत्साहित करना चाहिए।

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