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बेचो और खा जाओ

Gulab Kothari Artilcle: अहम प्रश्न यह है कि क्या नेताओं – अफसरों के सारे भ्रष्ट कर्म रद्द नहीं हो जाने चाहिए और इनमें लिप्त नेता-अधिकारी-कर्मचारी सजा के पात्र नहीं हैं? शासन-प्रशासन की कारगुजारियों पर केंद्रित पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख-

Dec 23, 2022 / 05:40 pm

Gulab Kothari

Gulab Kothari Editor-in-Chief of Patrika Group

Gulab Kothari Editor-in-Chief of Patrika Group

Gulab Kothari Artilcle: राजनीति की चौसर ही ऐसी है-किसी का पत्ता कटता है, किसी को पट्टा मिलता है। वर्तमान सरकार में पत्ता कटने की चर्चा बनी हुई है और जमीनों के पट्टे काटने की कथाएं भी अनगिनत हैं। यहां तक कि कुछ मामलों में तो न्यायालयों के स्थगन आदेशों के बावजूद पट्टे काट दिए गए। अवैध रूप से बसे लोगों के नाम पट्टे जारी हो गए। फर्जी दस्तावेज बना-बनाकर पट्टे काट दिए। कागजों में बंद कॉलोनियों के पट्टे काट दिए। ये कैसी वोट की राजनीति हुई? क्या जमीन सरकार की निजी सम्पत्ति है? क्या उच्च न्यायालय तक के आदेश इस सीमा तक दरगुजर हो सकते हैं? क्या अवैध कार्यों को सम्मानित किया जाना जनता का अपमान नहीं? क्या फर्जी दस्तावेज सरकार से छिपे होते हैं? अब अहम प्रश्न यह है कि क्या ये सारे भ्रष्ट कर्म रद्द नहीं हो जाने चाहिए और इनमें लिप्त नेता-अधिकारी-कर्मचारी सजा के पात्र नहीं हैं?

जयपुर में लोहामण्डी की जमीन पर उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश के बावजूद पट्टे जारी कर दिए। शहर के पर्यावरण क्षेत्र (इकॉलोजिकल जोन) में पुरानी तारीखों में पट्टे कट रहे हैं। क्रेताओं को मूल पत्र के स्थान पर फोटो कॉपी देकर कब्जे दिलाए जा रहे हैं। टोंक रोड, सचिवालय नगर में फर्जी आवंटन-पत्र, मुहाना गृह निर्माण सहकारी समिति के नाम पट्टे जारी हुए हैं। अनुपम विहार पार्क (पृथ्वीराज नगर) में जेडीए की नाक के नीचे भू-माफिया दीवार नहीं बनने दे रहे। सुविधा क्षेत्र की लूट है।

सागवाड़ा में पार्षदों ने (तीन) पट्टे लिए और सांसद के नाम कर दिए। कलक्टर मौन है। बांसवाड़ा में सभापति/सचिव के जाली हस्ताक्षर से नकली पट्टे जारी हुए। पुलिस अधीक्षक तक बात पहुंची भी। राज तालाब थाने ने अज्ञात व्यक्ति के नाम मामला दर्ज किया और इतिश्री हो गई।

बाड़मेर में आरक्षित जमीन पर नगरपालिका आयुक्त द्वारा चार पट्टे काटे गए। बाड़मेर में तो माता हिंगलाज मंदिर के पास, अतिक्रमण हटाने के नाम से जिस जमीन पर जेसीबी चलाई गई थी, उसी का पट्टा जारी कर दिया गया। यहीं पर इन्दिरा नगर में कोर्ट में मुकदमा चलते हुए भी नगरपालिका ने तीन पट्टे काट दिए। यहां कोर्ट में स्वयं नगरपालिका ही पक्षकार भी है। पट्टे किसी अन्य नाम से जारी किए गए।

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कोटा में फर्जी दस्तावेज से पट्टे काटने के दर्जनभर मामले आमने आए। अनन्तपुरा में सरकारी जमीन पर पार्षद पति ने रिश्तेदार के नाम फर्जी कागजों से पट्टा जारी करवा दिया। देवली अरब रोड पर मन्दिर माफी की जमीन पर पट्टे जारी कर दिए।

जयपुर में तो कच्ची बस्तियों को राजनेता ही बसाते रहे हैं। जिनकी सरकार होती है, वे ही शहर के बड़े लुटेरे बन जाते हैं। सबसे बड़ा उदाहरण है दिल्ली बाईपास-झालाना क्षेत्र का। कच्ची बस्तियों की लम्बी कतार बस गई। दो सौ फीट की सड़क पर एक सौ फीट तक पक्के निर्माण हो चुके, उच्च न्यायालय की समितियां कई बार रिपोर्टस दे चुकीं। परिस्थितियां जस की तस हैं। क्या बिगाड़ लिया किसी ने इनका?

क्या सारे तंत्र को नंगा कर देने के लिए यह उदाहरण काफी नहीं है? दूसरा उदाहरण निम्स विश्वविद्यालय, दिल्ली रोड। कोई न्यायालय के आदेश देख ले, सरकार की कार्रवाई देख ले। निर्माण (अवैध) ध्वस्त करने के स्थान पर सरकार हजारों वर्गमीटर जमीन सस्ते दामों पर बांटने में जुटी है। रामगढ़ बांध जैसा ही हाल है। क्या सरकार के लिए न्यायपालिका अस्तित्व में है? या हाथी के दांत दिखाने के!

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जमीन देश की है। आने वाली पीढिय़ों की विरासत है। आज जिस प्रकार औरतों के जिस्म के टुकड़े कर करके अट्टहास हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा टुकड़े धरती मां के जिस्म के सरकार कर रही है। अवाप्त करती है, नीलाम करती है-कन्याओं की तरह।

दावतें उड़ाती है। कल के लिए क्या बचेगा, इनकी चिन्ता नहीं है। इनको तो यही उपलब्धि लगती है कि बेचो और खा जाओ। कल हम तो देखने को रहेंगे नहीं। हमारा कालाधन भी कौन खाएगा हमको क्या मालूम। हां, इतना निश्चित है कि जो भी भोगेंगे, उसे तो खा ही जाएगा।

इस अनर्थ को होने से या तो न्यायपालिका रोक सकती है, जो इन वर्षों में तो रोक नहीं पाई, या फिर जनता ही रोक सकती है। जो मौन भी हो गई, स्वार्थी एवं संवेदनाहीन होती जा रही है। नेता, अब जनता के लिए आन्दोलन नहीं करते-जनता के हित को टालकर ही काम करते हैं। आज इन्होंने कितने जल स्रोत चाट लिए। तालाबों को खा गए, चारों ओर अतिक्रमण कर रखे हैं। जनता के सेवक हैं!

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