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लोकतंत्र: भय का अभाव

Gulab Kothari Artilcle : जब शिक्षित उम्मीदवार के चुनाव लडऩे की अनिवार्यता हो जाएगी, तब जाकर भ्रष्टाचार के कुछ कम होने की आशा है। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि राजनेता जमकर भ्रष्टाचार करते हैं और बाद में कष्टों से बचने के लिए शासक दल में शामिल हो जाते हैं। कमाई को बांट खाते हैं। लोकतंत्र का चक्र चलता रहता है… लोकतंत्र की जड़ें हिला देने वाले कुछ उदाहरणों के जरिए देश के हालत बयां करता पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विचारोत्तेजक लेख-

Jan 25, 2023 / 07:22 pm

Gulab Kothari

Gulab Kothari Editor-in-Chief of Patrika Group

Gulab Kothari Editor-in-Chief of Patrika Group

Gulab Kothari Artilcle : जीवन के दो स्तर होते हैं-व्यक्तिगत और संस्थागत। इसी प्रकार देश के भी दो स्तर होते हैं-व्यक्तिगत-जहां शासक ही देश का पर्याय है तथा संस्थागत-जैसे भारत में लोकतंत्र का स्वरूप। राजाओं का राज था, वंशानुगत शासन की परम्परा में राजा की इच्छा ही देश का भविष्य बनती रही है। आज भी चीन और रूस इसी श्रेणी में आते हैं। वहां सत्ताधीशों ने उम्रभर कुर्सी पर बने रहने की घोषणा कर रखी है। दोनों ही देशों में जो हो रहा है अथवा सत्ताधीशों के द्वारा जो किया जा रहा है, उसे देखकर सम्पूर्ण विश्व आतंकित है। वहां व्यक्ति ही देशवासियों के भविष्य का निर्णायक है। करोड़ों लोगों का भविष्य एक व्यक्ति की मुट्ठी में है।

दूसरी ओर अमरीका का संस्थागत ढांचा है, जहां व्यक्ति सदा ही कानून से छोटा रहा है। अमरीका के न्याय विभाग ने वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन के घर पर छापा मारा और अहम दस्तावेज बरामद किए। एकाएक विश्वास ही नहीं होता कि दुनिया के शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति के घर पर उनकी ही संस्था छापा मार दे। छापे तब मारे गए जब बाइडन परिवार घर पर नहीं था। बाइडन के उपराष्ट्रपति काल के दस्तावेज एवं सीनेट सदस्यता काल के दस्तावेज भी विभाग ने अपने कब्जे में कर लिए। कुछ दिन पहले भी राष्ट्रपति के घर पर छापा पड़ा था। पिछले वर्ष भी उनके यहां छापा पड़ चुका है।

इसी प्रकार पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ भी कितनी ही जांचें एवं कानूनी कार्रवाई चल रहीं हंै। यह कोई हौंसले वाली सरकार ही कर सकती है। सरकार तो नहीं करेगी, हां-स्वतंत्र संस्थाएं कर सकती हैं। हमारे यहां तो पार्षद ही मोहल्ले का मुख्यमंत्री होता है। उसे न सरकार की चिन्ता, न संस्था की, न किसी कानून की। उसे पता है साल में कितना कमाना है। तब विधायक, सांसद से लेकर मंत्री तक की क्या स्थिति होगी। एक चौथाई सुर, तीन चौथाई असुर, जो जनता को लूटने के लिए ही चुनाव लड़ते हैं।

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लूट की सीमा नहीं होती


हमारे यहां भी लोकतंत्र है। जनप्रतिनिधियों का चुनाव भी होता है। संसद में भी पार्टी के प्रतिनिधि होते हैं और विधानसभा में भी। अत: कोई भी देश या प्रदेश की भाषा नहीं बोलता। केवल दलगत भाषा और व्यवहार ही दिखाई देता है। हमारे यहां चीन और रूस की तरह तानाशाही तो नहीं है। न ही अमरीका की तरह संस्थाएं स्वतंत्र ही हैं। जो बहुमत की सरकार के साथ- वह फायदे में, जो सरकार के विरूद्ध, वो तो मारा गया। हर जगह एक सा स्वरूप है।

हमारे लोकतंत्र में एक बड़ी बाधा है अशिक्षा। अल्प शिक्षित अपराधियों का बोलबाला होने के कारण अफसर ही सरकार चलाता है-ठेकेदार की तरह। ठेके की कीमत चुकाता रहता है। अमृत महोत्सव तो ‘अशिक्षा के लोकतंत्र’ का ही हुआ है। जब शिक्षित उम्मीदवार के चुनाव लडऩे की अनिवार्यता हो जाएगी, तब जाकर भ्रष्टाचार के कुछ कम होने की आशा है। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि राजनेता जमकर भ्रष्टाचार करते हैं और बाद में कष्टों से बचने के लिए शासक दल में शामिल हो जाते हैं। कमाई को बांट खाते हैं। लोकतंत्र का चक्र चलता रहता है। ध्वज लहराता रहता है। कुछ उदाहरण तो लोकतंत्र की जड़ें हिलाने वाले रहे हैं।

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बेचो और खा जाओ


असम के कांग्रेस नेता हिमंत बिस्वा सरमा जल आपूर्ति घोटाले में फंसे थे। भाजपा ने उनके खिलाफ अभियान चलाया। आज वे मुख्यमंत्री हैं। मामला शांत है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येड्डियुरप्पा के विरूद्ध जमीन/खनन घोटाला चला, दोषी पाए गए, सीबीआइ को सबूत ही नहीं मिले। कर्नाटक के ही रेड्डी बन्धु, यूपी में बसपा की मायावती, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे जैसों के विरुद्ध सभी मामले शांत हैं।

राजस्थान के खानमंत्री प्रमोद जैन ‘भाया’ पर कांग्रेस के ही वरिष्ठ विधायक भरत सिंह लम्बे समय से भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे हैं। पेपर लीक मामले में राज्यमंत्री सुभाष गर्ग पर आरोप लगे और जांच जाकर ठहरी-माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष डीपी जारोली पर। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पर रिश्तेदारों को आरपीएससी के माध्यम से नियुक्तियां दिलाने, पदोन्नति दिलाने के आरोप भी दाखिल दफ्तर हो गए। परिवहन मंत्री पर परिवहन विभाग में खूब आरोप लगे। कार्रवाई इतनी हो गई कि उनका विभाग बदल दिया गया। जैसे किसी भ्रष्ट थानेदार का तबादला हो जाता है।

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आस्था से खिलवाड़


मुख्यमंत्री कार्यालय के आइएएस अधिकारी अमित ढाका पर वरिष्ठ अध्यापक भर्ती परीक्षा के पेपर लीक होने के आरोप लगे। भूल गए। आज तक जांच नहीं हुई। मंत्री महेश जोशी के पुत्र पर लगे आरोपों से उसे किसने बचाया? पीडि़ता को ही दिल्ली में जाकर एफआइआर करानी पड़ी। रिश्वत के आरोपी आइएएस विष्णुकान्त का भी मात्र तबादला करके बैठ गए।

आइएएस नीरज पवन को गिरफ्तार किया गया था भ्रष्टाचार के मामले में। सरकार ने अभियोजन की स्वीकृति ही नहीं दी। इसी प्रकार आइएएस निर्मला मीणा के विरूद्ध भी अभियोजन स्वीकृति नहीं दी। एक वरिष्ठ आइएएस अफसर पर एक महिला अधिकारी ने गंभीर आरोप लगाए पर सरकार ने जांच तक नहीं कराई। बाद में राष्ट्रीय महिला आयोग ने प्रसंज्ञान लेकर डीजीपी से रिपोर्ट मांगी।

भाजपा सरकार में कालीचरण सराफ पर बेटे के जरिए धन लेने के आरोपों की जांच तक नहीं हुई। आबकारी आयुक्त रहते ओपी यादव पर कई आरोप लगे। सीएजी और जनलेखा समिति ने भी प्रश्न खड़े किए। आज तक यह मामला ठंडे बस्ते में है।

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लोकतंत्र किसके लिए?


मध्यप्रदेश के एक बड़े नेता का व्यापमं घोटाले में नाम आया, विपक्ष ने खूब आरोप लगाए। बाद में उन्हें सीबीआइ की क्लीन चिट मिल गई। मध्यप्रदेश में ही वर्ष २००५ में करोड़ों रुपए के पैंशन घोटाले में भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय का नाम उस वक्त आया जब वे इंदौर के महापौर थे। सरकार ने जिम्मेदारों पर मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में पिछली सरकार के कार्यकाल में एक उपचुनाव में प्रत्याशी की खरीद-फरोख्त की सीडी सामने आई, इसमें कई नेताओं के नाम थे। जांच हुई, एसआइटी बनी, मामला कोर्ट तक गया लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ।

ये तो कुछ बानगी है। ज्यादातर मामले पुलिस की चतुराई से ही दबा दिए जाते हैं। कोर्ट तक पहुंच भी जाएं तो समन तामील करना तो पुलिस के ही हाथ है। जल महल प्रकरण में, बाद में मैट्रो प्रकरण में (पुरातत्व विभाग) कहीं भी तत्कालीन अधिकारी हृदेश कुमार आइएएस को समन जारी नहीं हुआ, जबकि वे आज तक नियमित सेवा में हैं।

कमोबेश यही हाल अन्य राज्यों में है। अतिक्रमण करने और कराने का विशेषाधिकार तो मानो प्रत्येक जनप्रतिनिधि की विरासत ही है। जनप्रतिनिधि ही जनता के द्रोही होने लगे। उनको अपने देश/प्रदेश की अस्मत को लूटने में अब कोई शर्म नहीं आती। हर सरकार देश को बेचकर अपनी जेबें भरना चाहती हैं। हमें लोकतंत्र को बचाना है, लुटेरे अधिकारियों और नेताओं से देश को मुक्त करना है, तो कुछ नए प्रावधान लाने होंगे। आज ये सब सजामुक्त शासक बन गए-लोकतंत्र के वेष में।

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