जीवन कहीं ओर चलता है, कानून का डंडा कहीं ओर। कानून बनाने वाला आज भी अंग्रेजों की तरफ देखता है। देशवासियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह उसका विषय नहीं है। कितने नए मुकदमे बढ़ जाएंगे, कितना जनमानस आंदोलित होगा, कोर्ट के सामने क्या रखा जाएगा, फरियादी के कुछ समझ में आएगा या नहीं, इनमें से किसी भी विषय पर चर्चा नहीं होती। पैराकारों का अपना कारोबार चलता है। फरियादी घर बेचता हुआ मर जाता है।
शास्त्र हों या इतिहास, हमारी न्याय व्यवस्था तो ऐसी नहीं थी। आज व्यवस्था भारी है, इंसान गौण हो गया। अस्पतालों में मरीजों से ज्यादा बिलों पर ध्यान होता है। अस्पतालों में मरीज हों या दफ्तरों में फरियादी, कहीं भी भारत दिखाई नहीं पड़ता। चारों ओर आज भी अंग्रेज बैठे हैं। यही शिक्षा नीति की उपलब्धि है। इसी कारण हर साल गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) जीने वालों संख्या बढ़ रही है। वे भारतीय हैं।
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सांसद-विधायक जनता के प्रतिनिधि कहां रहे? पैसे देकर टिकट खरीदने के आरोप लगते हैं। पांच साल में इस रकम को वसूल करना और अगले चुनाव की तैयारी करना, हार जाएं तो अगले पांच साल की व्यवस्था-यही उद्देश्य दिखने लगा है। जाति, धर्म, क्षेत्रीयता में देश के टुकड़े कर अपना व्यापार करना ही राजनीति बनती जा रही है। जो मंत्री बने वे उद्योगपति हो गए। भारतीय संस्कृति का कोई प्रतिनिधि नजर नहीं आता। पगड़ी-साफा का राजनीति से कोई अर्थ नहीं रह जाता। इसे संस्कृति का मुखौटा कह सकते हैं।
शिक्षा में न ज्ञान हैं न भारतीय विज्ञान की अवधारणा हैं, न यह तथ्य ही समाहित है कि हम भी (शरीर) अन्य जीवों-पेड़-पौधों आदि की तरह प्रकृति द्वारा उत्पन्न होते हैं। आत्मा अमर है, न मरता है, न ही पैदा किया जा सकता है। हर युग में सुर-असुर साथ रहते हैं। शिक्षा में आसुरी शक्तियों से संघर्ष करने की क्षमता का विकास होना चाहिए। आज पशु की तरह पेट से बंधा व्यक्ति ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की कैसे सोच सकता है! आज की शिक्षा नौकर बनाती है, दूसरों के लिए, परतंत्र रहकर जीना सिखाती है, डिग्री का अन्य उपयोग ही नहीं है।
यह देश आज भी शिक्षा से नहीं चल रहा। विदेशी विचारधारा से राष्ट्रीय चिंतन दूर होता जा रहा है। देश में, विदेशी कंपनियां ही व्यापार-उद्योग- तकनीक पर हावी हैं। कानून ही जब देश के दर्शन के विपरीत बनेंगे, शिक्षा भी विदेशी ज्ञान पर आधारित होगी, तब देश में तो ‘विदेश’ ही विकसित होगा। माटी बंजर होती ही चली जाएगी। बेरोजगारी, बीपीएल, महंगाई और भ्रष्टाचार ही विकास के पर्याय होंगे।
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