वन विभाग ने मरू राष्ट्रीय उद्यान में गोडावण सहित अन्य वन्य जीवों की गत 30 अप्रेल को गणना की, तब यहां 42 गोडावण मिले। वन्यजीवों की गणना प्रति वर्ष मई एवं दिसम्बर में होती है। वर्ष 1981 में की गई शीतकालीन गणना अनुसार यहां 54 गोडावण थे। मरू उद्यान की 17025 हैक्टेयर जमीन पर क्लोजर्स बनाए गए हैं जिनका मकसद बहु जैव विविधता संरक्षण एवं गोडावण को प्रजनन के लिए रिक्त स्थान उपलब्ध कराना रहा है।
मरू राष्ट्रीय उद्यान वन्यजीव संरक्षण क्षेत्र में करीब 50 हजार की आबादी व चार लाख के करीब पशुधन है। सदियों से इंसान, मवेशी व वन्यजीव जंतु साथ-साथ पलते रहे हैं। लेकिन अब अन्य जीव जंतुओं की तरह गोडावण पर भी संकट खड़ा होता दिख रहा है। क्षेत्र में अनियोजित तरीके से बढ़ रही पवन चक्कियों और हाई वोल्टेज ट्रांसमिशन प्रणाली के कारण गोडावण ने परम्परागत रूट छोड़ दिया है। इस रूट पर कई बार गोडावण हाई वोल्टेज ट्रंासमिशन लाइन के शिकार हो जाते है।
गोडावण सहित दूसरे जीव जंतु क्षेत्र के परिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करते हैं। थार के प्रतीक गोडावण को संकट से उबारने के लिए मरू राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में निवासियों, वन्यजीव व प्रकृति के बीच संतुलन रखने के प्रयासों की जरूरत है। लेकिन यदि पेड़-पौधे, घास आदि को संरक्षित एवं संवद्र्धित करने के प्रयास नहीं किए गए तो वन्यजीव जंतु एवं स्थानीय मवेशी इस इलाके में कैसे बच सकेंगे। मरू उद्यान क्षेत्र में स्थित ओरण-गोचर के साथ-साथ गैर कृषि जमीन पर रेगिस्तानी क्षेत्र की वनस्पतियों को पुनर्जीवित करने व उद्यान क्षेत्र के बाहर की परिधि में भी 100-150 किलोमीटर रेंज में ओरण-गोचर को संरक्षित करने की जरूरत है।
मरू उद्यान क्षेत्र के बाहर पोकरण आदि इलाकों में 150 गोडावण होने की संभावना है। सरकार सभी का साथ लेकर संरक्षण एवं संवद्र्धन करेगी तो थार का स्वरूप भी बचेगा और गोडावण सहित अन्य वन्य जीव जंतु अपना कुनबा बढ़ा पाएंगे। इको टूरिज्म भी तभी सफल होगा, जब टिकाऊ रोजगार देने में थार का यह क्षेत्र सक्षम हो पाएगा।