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जन आंदोलन और जागरूकता से ही संभव है खाद्य सुरक्षा

स्वस्थ और निरोग बने रहने की लिए लोगों को ताजा हरी सब्जियां, फल खाने की सलाह दी जाती रही है। आज जिस तरह से नालों के गंदे पानी में सब्जियों को उगाया जा रहा है तथा फल-सब्जियों को इंजेक्शन के जरिए पकाया जाता है, वह स्वास्थ्य के साथ गंभीर खिलवाड़ है।

जयपुरJul 02, 2024 / 09:07 pm

Gyan Chand Patni


राजेन्द्र राठौड़ पूर्व नेता प्रतिपक्ष, राजस्थान विधानसभा
पुरानी कहावत है- जैसा खाए अन्न, वैसा रहे मन। यानी, अन्न की प्रकृति हमारे व्यक्तित्व को गढ़ती है। खाद्य सुरक्षा हमारे जीवन का अहम हिस्सा है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि हमारे द्वारा किया जाने वाला भोजन सेहतमंद और सुरक्षित हो। हर किसी को पौष्टिक भोजन प्राप्त हो जिससे स्वास्थ्य खराब न हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, दूषित खानपान की वजह से दुनिया भर में प्रतिदिन तकरीबन 16 लाख लोग बीमार होते हैं। टाइफाइड जैसी गंभीर बीमारी तो दूषित भोजन और प्रदूषित जल से ही होती है जिसका सबसे ज्यादा शिकार बच्चे होते हैं। यह बात भी किसी से छिपी हुई नहीं है कि खान-पान की चीजों में आजकल मिलावट के रूप में लोगों को धीमा जहर परोसा जा रहा है। मुनाफाखोरी और व्यापारिक प्रतिस्पर्धा की होड़ में जनता की सेहत के साथ खिलवाड़ कर दूध, मावा, घी, पनीर, मसाले, फल-सब्जियां सहित खाने-पीने की लगभग हर चीज में मिलावट देखी जा सकती है। खाद्य पदार्थों में मिलावट, नकली ब्रांड और घटिया गुणवत्ता के मामले लगातार सामने आ रहे हैं ।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत देश के गरीब और वंचित वर्गों को सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है। वहीं भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और सुरक्षा की निगरानी करता है। खाद्य विभाग के अधिकारी अनसेफ, सब स्टैंडर्ड, मिसब्रांड की जांच के लिए फूड सैंपल एकत्रित करते हैं लेकिन ज्यादातर मामलों में दोषियों के खिलाफ सिर्फ जुर्माना होता है, क्रिमिनल केस नहीं चलाया जाता। हम जो खाद्य सामग्री बाजार में शौक से खा रहे हैं, वह स्वास्थ्य के लिहाज से सुरक्षित है या नहीं, कहा नहीं जा सकता। लोगों में जागरूकता का अभाव देखा जा सकता है। खाने में पेस्टिसाइड, हानिकारक बैक्टीरिया आदि को जांचने के लिए माइक्रोबायोलॉजी लैब भी हमारे देश में पर्याप्त संख्या में नहीं हैं।
स्वस्थ और निरोग बने रहने की लिए लोगों को ताजा हरी सब्जियां, फल खाने की सलाह दी जाती रही है। आज जिस तरह से नालों के गंदे पानी में सब्जियों को उगाया जा रहा है तथा फल-सब्जियों को इंजेक्शन के जरिए पकाया जाता है, वह स्वास्थ्य के साथ गंभीर खिलवाड़ है। दूषित पानी से उगने वाली सब्जियों में लेड, सल्फर, जिंक, क्रोमियम और निकिल घुले होते हैं। डिटरजेंट और कास्टिक जैसी हानिकारक चीजें भी पानी के जरिए सब्जियों-फसलों में जा रही हैं। इससे किडनी, लीवर के रोग जैसे हेपेटाइटिस, पीलिया, टाइफाइड, उल्टी-दस्त जैसी घातक बीमारियां घर कर रही हैं। आजकल खाद्य बाजार एवं मंडियों में खाद्य प्राधिकरण के नियमों की खुली अवहेलना की जा रही है।
मंडियों में घातक कैल्शियम कार्बाइड से आम व अन्य फल पकाए जा रहे हैं। इससे फलों में आर्सेनिक और फास्फोरस के साथ एसिटिलीन का निर्माण होता है जो नर्वस सिस्टम पर बुरा असर डालती है तथा चक्कर, अल्सर, कैंसर, एलर्जी के साथ किडनी और लीवर से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। खाद्य पदार्थों की बर्बादी भी खाद्य सुरक्षा में बाधा है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2030 तक खाने की बर्बादी को रोकने का संकल्प लिया है। भारत की संस्कृति में भोजन जूठा छोडऩा या उसका अनादर करना पाप माना जाता है क्योंकि अन्न को देवता तुल्य माना गया है। लेकिन आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपने संस्कार-संस्कृति भूल गए हैं। इस ओर लौटना होगा।
कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए मोटे अनाज का इस्तेमाल बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। मोटे अनाज के उत्पादन में कम पानी की जरूरत पड़ती है। इनकी खेती में यूरिया और दूसरे रसायनों की जरूरत भी नहीं पड़ती। जैविक खेती से तैयार फसलें, फल व सब्जियों इको फ्रेंडली होने के कारण इनकी मांग देश-विदेश में साल-दर-साल बढ़ रही है। इसलिए आज बड़ी संख्या में किसान जैविक खेती को अपना रहे हैं। खेती के क्षेत्र में यह एक नई क्रांति कही जा सकती है। देश-दुनिया को खाद्य संकट से उबारने के लिए हमें एक उत्प्रेरक के रूप में स्वयं से शुरुआत करनी होगी। हमें एक जनआंदोलन खड़ा कर खाने की बर्बादी एवं खाद्य पदार्थों में मिलावट को रोकना होगा। तभी हम आजादी के अमृतकाल से लेकर शताब्दी वर्ष तक ‘स्वस्थ भारत-समृद्ध भारत’ का सपना साकार कर सकेंगे।

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