scriptटिकाऊ और समावेशी विकास पर रहे फोकस | fdg | Patrika News
ओपिनियन

टिकाऊ और समावेशी विकास पर रहे फोकस

विकास को टिकाऊ बनाने के लिए इसका समावेशी होना आवश्यक है। जब तक विकास का लाभ देश के सभी वर्गों, जातियों और क्षेत्रों को नहीं मिलेगा तब तक ऐसे विकास का महत्त्व नहीं है। भारत को खासतौर पर सामाजिक सुरक्षा की नीतियों में सुधार लाकर, समावेशी विकास के लिए अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।

जयपुरJul 18, 2024 / 08:52 pm

Gyan Chand Patni

डॉ. महावीर गोलेच्छा
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से प्रशिक्षित स्वास्थ्य एवं सामाजिक नीति विशेषज्ञ
सबकी निगाहें मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले बजट पर टिकी हुई हैं। लोकसभा चुनाव के कारण इस साल दो बार बजट पेश हो रहा है। बता दें कि 1 फरवरी, 2024 को एक अंतरिम बजट पेश किया गया था। आशा की जानी चाहिए कि आगामी बजट में समावेशी विकास पर ध्यान दिया जाएगा। विकास ऐसा होना चाहिए जो भविष्य की पीढिय़ों की क्षमता को नुकसान पहुंचाए बिना वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा करे। साथ ही इस बात का ध्यान रखा जाए कि खाद्य व जल सुरक्षा को बेहतर करने के तरीकों सहित, कम कार्बन उत्सर्जन वाले विकास संबंधी प्रयासों के साथ आर्थिक विकास को उन्नत किया जाए। पर्यावरण के लिए हितैषी तरीके से आधारभूत संरचना को विकसित किया जाए।
विकास को टिकाऊ बनाने के लिए इसका समावेशी होना आवश्यक है। जब तक विकास का लाभ देश के सभी वर्गों, जातियों और क्षेत्रों को नहीं मिलेगा तब तक ऐसे विकास का महत्त्व नहीं है। भारत को खासतौर पर सामाजिक सुरक्षा की नीतियों में सुधार लाकर, समावेशी विकास के लिए अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। हालांकि नौकरियों और राजनीतिक भागीदारी में लिंग आधारित अंतर कम होता जा रहा है, परंतु लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ्य व सुरक्षा के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। फिस्कल नीति का आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। वर्तमान में भारत लोकनिधि में कमी, राष्ट्रीय आय में भारी कमी एवं निजी क्षेत्र में निवेश की समस्याओं से संघर्ष कर रहा है। अब सरकार को राजस्व संरचना को कानूनी एवं संस्थागत सुधारों के द्वारा मजबूत करना चाहिए। साथ ही सब्सिडी पर होने वाले खर्च को प्रभावी बनाने की जरूरत है। इसके अतिरिक्त टैक्स संग्रह को सरल एवं कारगर बनाने लिए संशोधित डायरेक्ट टैक्स कोड को सही तरीके से लागू करना एवं विदेशी निवेशकों को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय कर निर्धारण नियमों में सुधार करने की भी आवश्यकता है।
महंगाई से जनता त्रस्त है। इससे जनता में सरकार के प्रति रोष भी बढ़ता है। इसलिए सरकार को आम जन की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए महंगाई को कम करने के लिए मजबूत योजनाएं एवं नीतियां बनानी होंगी। कृत्रिम रूप से महंगाई बढऩे को सख्ती से रोकना आवश्यक है। कमोडिटीज की फॉरवर्ड ट्रेडिंग पर रोक और दलालों एवं बीच के व्यापारियों के द्वारा अधिक भण्डारण पर नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाकर दामों को नियंत्रित करना होगा। चिंता की बात यह है कि भारत की आर्थिक प्रगति के साथ-साथ भ्रष्टाचार भी तेजी से बढ़ रहा है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार 2023 में भारत का भ्रष्टाचार इंडेक्स में 177 देशों में 93 वां स्थान था। सरकार को भ्रष्टाचार की रोकथाम को प्राथमिकता देना होगा तथा इसके लिए लोकपाल जैसे प्रावधानों को प्रभावी रूप से लागू करवाना, प्रशासन को पारदर्शी एवं जवाबदेही बनाना, ई-गवर्नेंस का अधिकाधिक उपयोग, सिटीजन चार्टर को सख्ती से लागू करवाना एवं सत्ता का विकेंद्रीकरण करना जैसे कदम उठाने पर ध्यान देना होगा।
भारत ने पिछले कुछ दशकों में गरीबी को कम करने के लिए प्रभावकारी कदम उठाए। इसमें सफलता भी मिली है, लेकिन गरीब-अमीर में असमानता तेजी से बढ़ रही है। विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत दुनिया के सबसे ज्यादा असमान वाले देशों में से एक हैै। देश में कुल वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का लगभग 64 प्रतिशत नीचे की 50 प्रतिशत आबादी से आता है, जबकि केवल 4 प्रतिशत हिस्सा शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी से आता है। सरकार को गरीबी एवं असमानता को कम करने के लिए ठोस नीतियां तथा व्यापक सुधार करने की जरूरत है।
गरीबी किन कारणों से होती है तथा अन्य देशों ने इसे दूर करने के लिया क्या उपाय किए हैं, यह बात समझने की आवश्यकता है। सब्सिडी का दुरुपयोग रोकने के साथ जिन्हें वास्तव में इसकी जरूरत है, उन तक सब्सिडी पहुंचाने की जरूरत है। इसके अतिरिक्त वंचित वर्ग को शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाना भी आवश्यक है। प्रतिवर्ष भारत में 3 करोड़ से ज्यादा लोग, मुख्यतया ग्रामीण स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च के कारण आर्थिक रूप से टूट जाते हंै तथा कर्ज में डूब जाते हंै। सरकार ने आयुष्मान भारत योजना के माध्यम से आर्थिक एवं सामाजिक रूप से वंचित आमजन को नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवाएं देने का प्रयास किया है। इस योजना की स्वतंत्र संस्थाओं से समीक्षा करवाकर व्यापक बदलाव करने की आवश्यकता है। इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों तक सेवाओं का विस्तार, ओपीडी सेवाओं पर होने वाले खर्च को शामिल करना, निम्न मध्यम वर्ग का योजना में समावेश, शिकायत निवारण तंत्र को प्रभावी बनाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है। हर वर्ग तक दवा, जांच और उपचार पहुंचाने की जरूरत है। सरकारी चिकित्सा केन्द्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास, मानवीय संसाधनों की कमी को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। इसके लिए स्वास्थ्य पर होने वाले सरकारी खर्च को जीडीपी का 3-4 प्रतिशत करना चाहिए। देश की 66 प्रतिशत आबादी (लगभग 80 करोड़) की उम्र 35 वर्ष से कम है। इस युवा शक्ति का फायदा लेने के लिए भारत को स्किल डेवलपमेंट, डिमांड एवं सप्लाई का सावधानीपूर्वक प्रबंधन करना होगा। भारत को सार्वजनिक-निजी भागीदारी और सामाजिक उद्यमशीलता कार्यक्रमों को विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। इससे देश के युवा वर्ग के लिए ज्यादा से ज्यादा रोजगार सुनिश्चित किया जा सकता है।

Hindi News / Prime / Opinion / टिकाऊ और समावेशी विकास पर रहे फोकस

ट्रेंडिंग वीडियो