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विकास के नाम पर अंधेरी सुरंग में फंस रहे शहर

नालियों या दूसरे जल निकास मार्गों के लुप्त होने मे नगरीय नियोजन एवं प्रशासन की लापरवाही प्रमुख कारण है। दिल्ली की घटना के पश्चात भी समग्र प्रशासन बेसमेंट में चल रहे कोचिंग संस्थानों और लाइब्रेरी की खोज में लग गया जबकि मूल कारण जल निकास की अनुपलब्धता है।

जयपुरJul 31, 2024 / 09:36 pm

Gyan Chand Patni

डॉ. विवेक एस. अग्रवाल
संचार और शहरी स्वास्थ्य विशेषज्ञ
पिछले दिनों दिल्ली के एक कोचिंग संस्थान में पानी भरने से ३ विद्यार्थियों की मौत से पूरे देश में कोहराम मच गया है। यह हादसा गंभीर चिंता का विषय है और भविष्य में इससे भी भयंकर त्रासदियों को लेकर आगाह भी कर रहा है। ये मौतें दिल्ली में हुई हैं, इसलिए सभी का ध्यान आकृष्ट हो गया और कारणों पर चिंतन बहस भी प्रारंभ हो गई। वास्तविकता यह है कि शहरों के अनियोजित और बेतरतीब विकास के कारण देश के विभिन्न स्थानों पर अनेकानेक लोग मृत्यु का ग्रास बन जाते हैं। तेजी से बढ़ते शहरीकरण, बढ़ती शहरी आबादी और उसके परिपे्रक्ष्य में सीमित सुविधाओं के कारण लोगों का जीवन खतरे में है। गंभीरता से देखा जाए तो तथाकथित शहरी विकास एक अंधेरी सुरंग की ओर अग्रसर है, जिसके दुष्परिणाम हर वर्ग को भुगतने पड़ेंगे।
शहरी विकास का दायरा सीमित हो गया है। यह विकास भवन निर्माण, सड़क निर्माण, पर्यावरण संरक्षण के नाम पर उद्यान या पौधरोपण तक सीमित हो गया है। यह विकास कहीं भी रहवासियों के लिये सुकून नहीं दे रहा। वैसे वे भी इस विनाशोन्मुखी कवायद के बराबर के हिस्सेदार हैं क्योंकि नियम-कानूनों की अवहेलना करने में उन्हें भी गौरव की अनुभूति मिलती है। किसी भी विकास की अवधारणा के मूल में आधारभूत सुविधाओं का प्रावधान एवं निर्माण प्रथम कदम होता है लेकिन वर्तमान में तो पहले भवन निर्माण हो जाते हैं। तत्पश्चात सुविधाएं विकसित करने का कार्य होता है। मूलभूत आवश्यकताओं में पानी, बिजली, मल-कूड़ा निस्तारण, सड़क तथा पर्यावरण संरक्षण आवश्यक अवयव हैं, जिनके बिना जीवन प्राय: असंभव हो जाता है। मुश्किल यह है कि विकासकर्ताओं की प्राथमिकता आवासीय या व्यावसायिक निर्माण रहता है, क्योंकि इससे राजस्व जुड़ा हुआ है। दुर्भाग्यवश आवश्यक सुविधाओं का विकास अलग-अलग किया जाता है। समन्वय के लिए उत्तरदायी नगरीय निकाय समस्त कार्यों को निजी क्षेत्र के भरोसे छोड़कर मुक्त हो जाते हैं।
यह भी सही है कि अधिकारों के प्रति जागरूकता तो शैक्षिक स्तर के उन्नयन के साथ बढ़ती जा रही है लेकिन कत्र्तव्यों से अब भी अधिसंख्य जनता विमुख ही है। दिल्ली की घटना की प्रथम दृष्टिया रिपोर्ट में तलघर में पानी भरने के लिए मुख्य रूप से जल निकास की व्यवस्था न होने को दोषी पाया गया है। तथाकथित रूप से हो रहे शहरी विकास की यह सबसे बड़ी विकृति है। शहरों के गंदे अथवा वर्षा जल को प्रवाहित करने के लिए नालियों की आवश्यकता होती है। लगभग सभी शहरों में नालियां गुम सी गईं और जल प्रवाह की व्यवस्था तहस नहस हो गई।
सीमेंट और कंक्रीट से बनाई जा रही सड़कों ने इस समस्या को बढ़ाया है। उनके साथ जल निकास की व्यवस्था न होने से पानी अपना रास्ता जिधर जगह मिलती है, उधर ही बना लेता है। शायद दिल्ली की दुर्घटना में यही हुआ हो। पूर्व में भी शहरों में आई बाढ़ का मूल कारण जल निकास की व्यवस्था का न होना ही रहा है। जल की प्रकृति है कि नैसर्गिक रूप से तय मार्ग न मिलने पर वह जहां भी स्थान मिलता है वेग से कटाव करते हुए अपना रास्ता बना लेता है और यही अधिकांश हादसों में हुआ भी है। जल और विशेष तौर पर वर्षा जल में वेग के साथ कटाव क्षमता भी अधिक होती है। इसलिए उसके निकास के लिए व्यवस्थित रूप से उपयुक्त नालियों के निर्माण की आवश्यकता है। इसका एक अभिनव उदाहरण है। सन् 2000 के आसपास ठाणे, कल्याण, नागपुर के नगरीय प्रशासन द्वारा सड़क निर्माण को समेकित रूप से क्रियान्वित किया गया, जिसमें आवश्यकतानुरूप वर्षा जल निकासी एवं संग्रहण की व्यवस्था की गई। परिणामस्वरूप सड़क काफी लंबी अवधि तक यथावत बनी रही और जल भराव नहीं हुआ।
नालियों या दूसरे जल निकास मार्गों के लुप्त होने मे नगरीय नियोजन एवं प्रशासन की लापरवाही प्रमुख कारण है। दिल्ली की घटना के पश्चात भी समग्र प्रशासन बेसमेंट में चल रहे कोचिंग संस्थानों और लाइब्रेरी की खोज में लग गया जबकि मूल कारण जल निकास की अनुपलब्धता है। इससे सबक लेते हुए नगर नियोजकों को उत्तरदायित्व भाव से बसावट से पूर्व आधारभूत सुविधाएं विकसित करने पर बल देना चाहिए ताकि त्रासदियों की पुनरावृत्ति न हो। साथ ही नगरीय प्रशासन को निकास व्यवस्था को ठीक करने के लिए प्राथमिकता से कार्य करना चाहिए। इसके बिना शहर और शहरी सुरक्षित नहीं रह सकते।

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