scriptभ्रष्टाचार, मानव स्वभाव और सभ्यता के लिए चुनौती | Corruption, a challenge to human nature and civilization | Patrika News
ओपिनियन

भ्रष्टाचार, मानव स्वभाव और सभ्यता के लिए चुनौती

अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक दिवस: लोकतंत्र जीवंत रहता है तब भी भ्रष्टाचार पर काफी कुछ अंकुश संभव है
 

Dec 09, 2022 / 05:27 pm

Patrika Desk

corruption.jpg
अरुण कुमार त्रिपाठी
लेखक और शिक्षक
……………………………..

भ्रष्टाचार को मिटाना जितना कठिन है उतना ही कठिन है उसे परिभाषित करना। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने इसकी जो परिभाषा दी है, उसके अनुसार समाज की ओर से आपको जो शक्तियां दी गई हैं उनका निजी हित में या निजी लाभ के लिए दुरुपयोग करना भ्रष्टाचार है। अब यहां पर समाज को परिभाषित करना, निजी हित को परिभाषित करना और शक्तियों को परिभाषित करना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। जिन लोगों को शक्ति संपन्न माना जाता है उनमें लोकसेवक, राजनेता और अन्य अधिकारीगण शामिल होते हैं। पर भ्रष्टाचार करने में निजी संस्थाएं और व्यक्ति भी शामिल हो सकते हैं। निजी कंपनियां, सरकारी कंपनियों के लिए भ्रष्टाचार करती हैं और सरकारी कंपनियां निजी कंपनियों के लिए भ्रष्टाचार करती हैं। कभी दोनों यह काम मिलकर करते हैं।
उदारीकरण के दौरान यह प्रक्रिया तेज हो गई है। इसीलिए जो भ्रष्टाचार कभी दस-बीस करोड़ का होता है, आज कई लाख करोड़ का होता है। यह सारी चीजें कानून द्वारा परिभाषित होती हैं और इसीलिए कानून का राज भ्रष्टाचार को रोकने और मिटाने में सबसे कारगर हथियार माना जाता है। पर कानून का राज अपने आप में न तो कोई स्थिर प्रक्रिया है और न ही वह अकेले काम करता है। उसके साथ सतत जागरूकता और नैतिकता निहायत जरूरी है। वही जागरूकता और नैतिकता प्राचीन काल में धर्म कही जाती थी। माना जाता था कि जब धर्म मिटने लगा तो कानून की आवश्यकता पड़ी। मानवीय स्वभाव और सभ्यता की इन्हीं चिंताओं के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 31 अक्टूबर 2003 को भ्रष्टाचार विरोधी संयुक्त राष्ट्र संधि के प्रस्ताव को पारित किया और उस पर 188 पक्षों ने हस्ताक्षर किए। उसी के साथ तय हुआ कि 9 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक दिवस के रूप में मनाया जाएगा। वह प्रस्ताव साफ तौर पर कहता है कि भ्रष्टाचार पूरी दुनिया के लिए बड़ी चुनौती है। वह शांति और स्थिरता के लिए खतरा है। उसके कारण तमाम तरह के विवाद और टकराव होते हैं।
भ्रष्टाचार के कारण ही संसाधनों का गैर-कानूनी और गैर वाजिब इस्तेमाल होता है और गरीबी बढ़ती है, पर्यावरण संकट पैदा होता है और स्थायी विकास के लक्ष्य को हानि पहुंचती है। भ्रष्टाचार के कारण किसी का हक मारा जाता है, किसी को नौकरी नहीं मिलती, किसी का दमन होता है और किसी का जीवन तबाह हो जाता है। इसलिए भ्रष्टाचार व्यक्ति से लेकर व्यवस्था तक को कभी घुन की तरह तो कभी विस्फोटक की तरह नष्ट करता है। यह अच्छी बात है कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशन के करप्शन इंडेक्स पर भारत लगभग एक दशक से 85-86 नंबर पर ठहरा हुआ है। यानी भारत में भ्रष्टाचार बढ़ा नहीं है। यह इंडेक्स 180 के स्केल पर लिया जाता है और जिस देश की स्थिति शून्य पर है वह बहुत ईमानदार देश और जिसकी स्थिति 180 पर है वह सबसे भ्रष्ट देश माना जाता है। दुनिया में डेनमार्क, न्यूजीलैंड और फिनलैंड सबसे ऊपर के पायदान पर हैं यानी सबसे ईमानदार देश हैं। चीन 66वें नंबर पर है यानी हम से बेहतर है। जबकि सीरिया, सोमालिया और सूडान सबसे आखिरी पायदान पर हैं यानी वे बेहद भ्रष्ट देशों की सूची में हैं। इससे साबित होता है कि भ्रष्टाचार कथित समाजवादी देशों में है तो पूंजीवादी देशों में भी है। उसका संबंध संस्थाओं की क्षमता और व्यक्ति की नैतिकता से साथ पारदर्शिता और मौलिक अधिकारों से भी है। पारदर्शिता नहीं रहेगी तो कैसे पता चलेगा कि भ्रष्टाचार कहां हो रहा है और कैसे यह विश्वास होगा कि जांच करने वाली एजेंसियां निष्पक्ष तरीके से जांच कर रही हैं।
यही वजह है कि एक लोकतांत्रिक देश जहां पर सूचना का अधिकार है, नागरिकों के मौलिक अधिकार हैं, स्वतंत्र मीडिया है और स्वतंत्र न्यायपालिका है वहां भ्रष्टाचार से लडऩे और उसकी सफाई करने की ज्यादा गुंजाइश होती है। अगर पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं का दमन होगा तो भ्रष्टाचार से लडऩे की हिम्मत कौन करेगा। इन संस्थाओं की सक्रियता राष्ट्रीय स्तर से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जरूरी हैं। निश्चित तौर पर संयुक्त राष्ट्र की सक्रियता इस मामले में बेहद कारगर हो सकती है। पर रेमंड डब्ल्यू. बेकर (अमरीकी बिजनेसमैन) का शोध बताता है कि आतंकवाद, तस्करी, प्राकृतिक संसाधनों का अवैध दोहन, यह सब मिलकर वित्तीय पूंजी का निर्माण करते हैं और उनसे पश्चिम के समृद्ध देशों की तरक्की होती है। इसलिए यह मानना होगा कि मनुष्य की सत्ता और धन की अति आकांक्षा और पूंजी के विस्तार की प्रक्रिया भ्रष्टाचार की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय निर्मिति करती है।
https://www.dailymotion.com/embed/video/x8g66mb

Hindi News / Prime / Opinion / भ्रष्टाचार, मानव स्वभाव और सभ्यता के लिए चुनौती

ट्रेंडिंग वीडियो