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मुख्य मुद्दों पर ‘टीवी डिबेट’ अपनाता रहा है ब्रिटेन

टीवी डिबेट्स के फायदे हैं तो एक चुनौती यह भी है कि जहां एक से अधिक राजनीतिक दल हैं वहां इसका क्रियान्वयन कैसे हो, दो प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों के सामने बाकी दलों को गौण होने से कैसे रोका जाए। ब्रिटेन स्वयं इसका एक उदाहरण है और इसीलिए यहां 3 जून से 26 जून के बीच 6 टीवी डिबेट्स आयोजित की जा रही हैं जिनमें से केवल 2 सबसे बड़ी पार्टी के प्रमुख सुनक और केयर स्टार्मर के बीच हैं, जबकि बाकी डिबेट्स में अलग-अलग पार्टियों को अलग-अलग समय पर मौका दिया जाएगा।

जयपुरJun 21, 2024 / 05:14 pm

Gyan Chand Patni

‘अमरीका बनाम अमरीका’ पुस्तक के लेखक द्रोण यादव का ब्रिटेन के राजनीतिक परिदृश्य पर एक विश्लेषण


चा र जुलाई को ब्रिटेन में चुनाव की तारीख तय है, जब जनता वहां अपनी अगली सरकार का चयन करेगी। हाल ही दो मुख्य पार्टियों कंजर्वेटिव और लेबर के प्रमुख नेताओं के बीच इस चुनाव की पहली टीवी डिबेट हुई जिसके बाद औपचारिक रूप से जनता के बीच कुछ मुख्य चुनावी मुद्दों को रख दिया गया है। ब्रिटेन में चुनावों के दौरान टीवी डिबेट होना एक बिल्कुल नया प्रयोग है जो अमरीकी राष्ट्रपति चुनावों में होने वाली टीवी डिबेट की तर्ज पर ही है। राजनीतिक पार्टियों की विचारधारा और विजन को समझने के लिए टीवी डिबेट एक सरल माध्यम बन रहा है।
अमरीकी चुनावों में पहली टीवी डिबेट 1960 में हुई जब रिपब्लिकन पार्टी के तत्कालीन उपराष्ट्रपति निक्सन और डेमोक्रेटिक पार्टी के तत्कालीन सांसद केनेडी आमने-सामने थे। इसके ठीक 50 साल बाद ब्रिटेन में टीवी डिबेट का पहला प्रयोग हुआ जिसमें लेबर पार्टी के तत्कालीन प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन, कन्सर्वेटिव के डेविड कैमरून और लिबरल डेमोक्रेट्स के निक क्लेग ने भाग लिया। तब से अब तक टीवी डिबेट्स हर चुनाव के साथ नया रूप ले रही हैं और हर बार नए बदलाव के साथ ब्रिटेन की जनता के सामने रखी जा रही हैं। इन डिबेट्स की विशेष बात यह है कि यह कोई बाध्यकारी नियम नहीं है, बल्कि एक नेता द्वारा दूसरे को दी गई चुनौती और फिर सहमति का निष्कर्ष है जो समय के साथ प्रचलन का रूप ले लेता है। अमरीका में भी यही हुआ और ब्रिटेन में भी यही हो रहा है।
ब्रिटेन में 2010 में टीवी डिबेट्स शुरू होने से पहले कई अवसरों पर इसकी चर्चा तो हुई थी, पर कोई नतीजा नहीं निकल सका था। 2010 से पहले कई अवसर ऐसे आए जब चुनावों में पिछड़ रही पार्टी के नेताओं ने अपनी स्थिति सुधारने के लिए टीवी डिबेट्स के माध्यम से सीधी बहस की चुनौती देकर विपक्षी दल को पसोपेश में डालने की कोशिश की, क्योंकि पिछड़ रही पार्टी के पास ऐसे में खोने को कुछ विशेष नहीं होता है। 1964 में लेबर पार्टी के हेरोल्ड विल्सन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री एलेक डगलस होम को इस तरह की सीधी बहस की चुनौती दी थी, जिसको डगलस ने अस्वीकार कर दिया था। आगे जाकर विल्सन चुनाव जीते और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने। 1970 में प्रधानमंत्री विल्सन ने कंजर्वेटिव पार्टी के नेता एडवर्ड हीथ की सीधी बहस की चुनौती अस्वीकार की और एडवर्ड हीथ वह चुनाव जीते। 1979, 1987, 1992 में भी ऐसी ही परिस्थितियां बनीं, जब किसी एक नेता की सार्वजनिक सीधी बहस की चुनौती दूसरे ने नकार दी।
भारत में भी इस बार के लोकसभा चुनाव में टीवी डिबेट की चर्चा तब हुई जब पूर्व न्यायाधीश मदन लोकुर, पूर्व न्यायाधीश अजीत शाह व जाने-माने पत्रकार एन. राम ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर चुनावों के मुख्य मुद्दों पर सार्वजनिक बहस करने का प्रस्ताव रखा। तिरुवनंतपुरम में भी कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भाजपा नेता राजीव चंद्रशेखर की खुली बहस की चुनौती स्वीकार की थी। संभव है आने वाले दशकों में भारत के मतदाताओं को भी ऐसी टीवी डिबेट्स देखने को मिलें।
ब्रिटेन के 2024 के चुनावों की पहली डिबेट में कई मुद्दे जनता के सामने आए, पर मुख्यत: दोनों ही पार्टियों के नेता एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते नजर आए। एक ओर जहां कंजर्वेटिव पार्टी के सुनक लेबर के स्टार्मर के पास ब्रिटेन के लिए कोई योजना न होने का दावा कर रहे थे, वहीं स्टार्मर लगातार कंजर्वेटिव्स के 14 साल के कार्यकाल को निशाना बनाते रहे। स्टार्मर स्वास्थ्य के मुद्दे पर हावी नजर आए, तो सुनक ने लेबर पर सरकार में आते ही टैक्स बढ़ाने का आरोप लगाया। एक वक्त ऐसा भी आया जब सुनक पर स्टार्मर ने यह कह कर हमला बोला कि वे अलग दुनिया के आदमी हैं, पैसे वाले हैं और गरीब की जरूरतों को नहीं समझते हैं। जवाब में सुनक ने अपने माता-पिता के साधारण परिवेश का वर्णन कर अपना बचाव किया। दोनों नेताओं के बीच 26 जून को एक और बहस प्रस्तावित है।
टीवी डिबेट्स के फायदे हैं तो एक चुनौती यह भी है कि जहां एक से अधिक राजनीतिक दल हैं वहां इसका क्रियान्वयन कैसे हो, दो प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों के सामने बाकी दलों को गौण होने से कैसे रोका जाए। ब्रिटेन स्वयं इसका एक उदाहरण है और इसीलिए यहां 3 जून से 26 जून के बीच 6 टीवी डिबेट्स आयोजित की जा रही हैं जिनमें से केवल 2 सबसे बड़ी पार्टी के प्रमुख सुनक और केयर स्टार्मर के बीच हैं, जबकि बाकी डिबेट्स में अलग-अलग पार्टियों को अलग-अलग समय पर मौका दिया जाएगा।

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