Zakir Hussain: विश्व विख्यात तबला वादक और पदम विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन को भोपाल से गहरा लगाव था। वह करीब आधा दर्जन बार विभिन्न कार्यक्रमों में भोपाल आ चुके थे। आखिरी बार वह छह साल पहले भारत भवन बहुकला केंद्र के मुक्ताकाशी मंच पर तबले की प्रस्तुति दी थी।
2006 में उन्हें मप्र सरकार की तरफ से कालीदास सम्मान से नवाजा गया था। राजधानी के वरिष्ठ तबला वादक पं. किरण देशपांडे कहते हैं वह ऐसे संगीतज्ञ थे जिनकी लय और ताल ने भाषा और संस्कृति की सीमाओं को तोड़कर सात समंदर पार तक लोगों को जोडऩे का काम किया।
गजब का सेंस ऑफ ह्यूमर और हाजिर जवाबी उस्ताद जाकिर हुसैन में गजब का सेंस ऑफ ह्यूमर और हाजिर जवाबी थी। एक बार सुरेश तांतेड़ जी ने उन्हें रवींद्र भवन में अली अकबर खां साहब के साथ संगत करने बुलाया था। इस कार्यक्रम में जाकिर जी ने एनाउंसर के साथ ऐसी लिपङ्क्षसग कि दर्शक समझ ही नहीं पाए कि युवती एनाउंस कर रही है या फिर फिर जाकिर साहब। दर्शकों ने इस मौके पर खूब तालियां बजाईं। इसी कार्यक्रम में जाकिर जी ने बैनर्जी बंधुओं के साथ ऐसी संगत की श्रोताओं का ध्यान अन्य वाद्ययंत्रों को छोड़ तबले पर ही टिक गया।
रेलगाड़ी की आवाज व घोड़े की टाप से ऑडियंस को करते थे इनवॉल्व
जाकिर हुसैन को कभी रिहर्सल की जरूरत नहीं पड़ी। वे सोलो इतना अच्छा बजाते थे कि मंच पर आते ही ऑडियंस को मुी में कर लेते थे। शास्त्रीय संगीत लोगों को समझ में आए, इसके लिए वे स्टोरी बनाते थे। तबले पर हिरण की चाल, रेलगाड़ी की आवाज, घोड़े के टाप की आवाज, शिव के डमरू की आवाज निकालते और श्रोताओं को इनवॉल्व कर लेते थे।
तबले को नृत्य, गान और उड़ान दी
उस्ताद महान कलाकार थे। उनके निधन से हमने एक शाश्वत आत्मा को खोया है, एक ऐसे संगीतज्ञ को जिसकी युवा उत्साह और आनंदमय कला ने तबले को नृत्य, गान और उड़ान दी। उनका संगीत केवल एक प्रस्तुति नहीं था; यह एक गहरा अर्पण था-ऊर्जा, अपार आनंद और उस जुनून से परिपूर्ण जो दिव्यता को छू लेता है। उनके स्वर और लय उन सभी के हृदयों में सदा गूंजते रहेंगे, जिन्होंने उन्हें सुनने का सौभाग्य पाया है।
कुछ गलत बजाऊं तो ताली बजा देना…
2 मार्च 2019 को उस्ताद जाकिर हुसैन भोपाल आए थे। तब उन्होंने भारत भवन में प्रस्तुति दी थी। इस दौरान उन्होंने दर्शकों से कहा था-कुछ तालियां बचाकर रखो। कुछ गलत बजाऊं तो ताली बजा देना। तब उस्ताद ने डेढ़ घंटे की परफॉर्मेंस में घुंघरू, डमरू, बुलेट बाइक और ट्रेन का साउंड निकाला था। उस्ताद तबले से ही शंख और डमरू, हिरण की मनमोहक चाल और बारिश की बूंदों जैसी आवाज निकालने में भी माहिर थे।
दिल जीतने वाली सादगी
पं. किरण देशपांडे बताते हैं- जब मैं 21-22 साल का तब जाकिर हुसैन से मुबंई में रू-ब-रू होने का मौका मिला था। तबला वादकों के कार्यक्रम में तब 13-14 साल के जाकिर ने जो प्रस्तुति थी दी वह आज भी मन मस्तिष्क में है। उनकी विनम्रता और सादगी दिल जीतने वाली थी। संगीत का उनका ज्ञान, लोगों से बात करने का अंदाज और विनम्रता हर किसी का भी दिल जीत लेने वाली थी।