जगदीप ने एक बार अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके जहन में भोपाली भाषा कहां से आई। उन्होंने किस्सा साझा करते हुए कहा कि सलीम-जावेद की फिल्म सरहदी लुटेरा में मैं एक कॉमेडियन (Comedian Jagdeep) का किरदार कर रहा था लेकिन मुझे अपने डॉयलॉग बेहद लंबे लग रहे थे। मैंने डायरेक्टर सलीम (Director Salim) से जाकर कहा कि ये डायलॉग बहुत बड़े हैं तो उन्होंने कहा कि जावेद के पास चले जाओ। जब मैं उनके पास पहुंचा तो एक मिनट में जावेद (Writer Javed) ने उसे पांच लाइन बना दिया। मैं उसके टैलेंट को देखकर हैरान था। वहीं से हमारी दोस्ती की शुरुआत हुई।
जगदीप ने आगे बताया कि हर रोज शाम को हम साथ में बैठते, चाय पीते और शायरियां चलती। इसी बीच जावेद ने भोपाली भाषा में कुछ कहा। मैंने पूछा ये कौन सी भाषा बोल रहे हो। तब उसने बताया कि भोपाल का लहजा है, वहां औरतों ऐसे ही बोलती हैं। तो मैंने कहा मुझे भी कुछ सिखा दो। फिर जब 20 साल बाद शोले बनी तो मुझे रमेश सिप्पी (Ramesh Sippi) ने फोन कर बुलाया और वहीं से ये सफर शुरू हुआ। मेरी पहचान सूरमा भोपाली के रूप में बन (Jagdeep Soorma Bhopali role famous) गई।
वहीं शोले के अलावा जगदीप ने 1988 में आई फिल्म सूरमा भोपाली (Film Soorma Bhopali) में भी सूरमा का किरदार निभाया था। जिसके बाद यही नाम उनकी पहचान बन गया। हालांकि शोले (Sholay) के किरदार ने उन्हें सभी का फेवरेट बना दिया।