यहां भारी पड़ सकती हैं गुर्जरों की अनदेखी
भाजपा मौका भुनाने में नाकाम, सपा ने पहले ही चली चाल
सौरभ शर्मा. नोएडा। वेस्ट यूपी में गुर्जर वोट बैंक काफी मायने रखता है। ये एक एेसा वोट बैंक हैं अगर एकतरफा किसी पार्टी के कैंडीडेट को मिल जाए तो जीत आैर हार के मायने बदल जाते हैं। विधानसभा चुनावों में सभी राजनीतिक पार्टियों की नजरें वेस्ट यूपी खासकर इस वोट बैंक पर रहेंगी। कुछ पार्टियों ने इस पर पहले से ही डाेरे डालने शुरू कर दिए हैं। तो कोर्इ रणनीति तैयार करने में जुटा है। तो कोर्इ इस वोट बैंक को पहले से ही अपनी जागीर समझा हुआ है तो कोर्इ इस बात की जुगत में है कि आखिर किस तरह से इस वोट को बिखेरा जाए। वैसे अगले चुनावों में इस वोट बैंक की खास भूमिका रहने वाली है।
वेस्ट में गुर्जरों का गणित
वेस्ट यूपी में गुर्जरों के गणित की बात करें तो आधा दर्जन जिलों में गुर्जरों का बोलबाला है। सबसे ज्यादा गुर्जरों की संख्या यूपी का शो विंडो कहे जाने वाले गौतमबुद्घनगर में ही है। यहां पर करीब 3 लाख गुर्जर वोटर रहते हैं। उसके बाद नंबर सहारनपुर का है। यहां गुर्जरों की ढार्इ लाख वोट हैं। वहीं मेरठ-हापुड़, अमरोहा आैर गाजियाबाद लोकसभा सीटों की बात करें तो डेढ़-डेढ़ लाख गुर्जर वोटर्स हैं। वहीं मुजफ्फरनगर में गुर्जरों वोटरों की संख्या सवा लाख है। इस तरह वेस्ट यूपी के इन जिलों में गुर्जर वोटर्स की संख्या करीब 14 लाख है।
भाजपा के हाथों से फिसला मौका
गुर्जर वोटों को मनाने या अपनी आेर खींचने का मौका वैसे तो कोर्इ पार्टी नहीं छोड़ रही है, लेकिन भाजपा की आेर से एक बड़ी चूक हो गर्इ है। वो ये है कि पीएम मोदी ने वेस्ट के गुर्जरोें को लुभाने की कोशिश ही नहीं की। उन्हें लगता हैै कि गुर्जर वोटर्स ने जिस तरह से लोकसभा चुनावों में उनका साथ दिया था, इस विधानसभा चुनावों में भी देंगे, लेकिन इस बार एेसा संभव नहीं होता दिखार्इ दे रहा है। गुर्जर नेता बाबू हुकुम सिंह को मंत्रिमंडल में आने के पूरे आसार थे। गुर्जरों को भी पूरी आस थी कि वेस्ट के गुर्जर सांसद को मौका मिलेगा, लेकिन एेसा नहीं हुआ। मोदी ने वेस्ट यूपी के गुर्जरों को अपने खिलाफ सा कर लिया है। जब इस बारे में वेस्ट यूपी में पार्टी के मीडिया प्रभारी आलोक सिसोदिया से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इससे कोर्इ दिक्कत नहीं होने जा रही है। मंत्रिमंडल में हमारे पास गुर्जर सांसदों को जिम्मेदारी पहले से दी हुर्इ है। नेता तो नेता ही होता है।
सपा मार चुकी है बाजी
इस मामले में समाजवादी पार्टी पहले ही बाजी मार चुकी है। पार्टी पहले ही समझ चुकी थी गुर्जराे को लुभाने की काफी आवश्यकता होगी। इसलिए प्रदेश के सबसे हार्इटेक जिले गौतमबुद्घनगर के गुर्जर नेता को राज्यसभा का रास्ता तय करा दिया है। 2009 के लोकसभा चुनावों में डाॅ. महेश शर्मा को 15 हजार वोटों से हराने वाले सुरेंद्र सिंह नागर को गुर्जरों का बड़ा नेता माना जाता है। 2014 में उन्होंने सपा की आेर लोकसभा का चुनाव लड़ा। इस बार वो डाॅ. महेश शर्मा से हार गए, लेकिन पार्टी ने उनपर विश्वास जताते हुए राज्यसभा सांसद बना दिया है, ताकि गुर्जराें में उनकी पैंठ आने वाले चुनावों में अच्छे से जम जाए।
ये दोनों कर रहीं तलाश
वहीं बात कांग्रेस आैर बसपा की करें तो ये दोनों पार्टियां भी गुर्जरों को लुभाने की पूरी कोशिश में जुटी हुर्इ हैं। जहां बात बसपा की है तो पार्टी के पास मलूक नागर जैसा गुर्जर नेता मौजूद है। वैसे पिछले कुछ समय से वो राजनीति की लाइमलाइट में नहीं हैं, लेकिन मायावती के काफी करीबी आैर पार्टी से काफी सालों से जुड़े हुए हैं। कांग्रेस की आेर से अभी तक तलाश जारी है। वेस्ट यूपी की सियासी चाल फेंकने के लिए हर तरह का पत्ता मौजूद हैं, लेकिन गुर्जर कार्ड की तलाश में पार्टी को अभी तक भटकना पड़ रहा है। मुमकिन है कि जल्द ही कांग्रेस के पास भी यह पत्ता मौजूद होगा।
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