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नोएडा

केशव की एंट्री से गरमाई यूपी की सियासत

अब तक सपा-बसपा के बीच का मामला माना जा रहा उत्तर प्रदेश चुनाव अब धीरे-धीरे दिलचस्प होता जा रहा है।

नोएडाApr 10, 2016 / 08:25 pm

Sarad Asthana

keshav prasad morya

keshav prasad morya

नोएडा। अब तक सपा-बसपा के बीच का मामला माना जा रहा उत्तर प्रदेश चुनाव अब धीरे-धीरे दिलचस्प होता जा रहा है। प्रशांत किशोर के यूपी में आने के साथ जो सियासत गरमाती दिख रही थी, केशव प्रसाद मौर्य की भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के साथ और तेज हो गई है।


जोश में आया युवा वर्ग

केशव प्रसाद मौर्य के उत्तर प्रदेश की कमान सम्भालते ही बीजेपी के युवा कार्यकर्ताओं में जोश आ गया है। इन युवा कार्यकर्ताओं का मानना है कि काफी समय के बाद प्रदेश को एक ऐसा नेतृत्व मिला है जिससे युवा खुद को जोड़ पा रहे हैं। ऐसे में यह उम्मीद जरूर बंध गई है कि इस बार भाजपा के खाते में कुछ ऐसा होगा जिससे उसे संतोष रहेगा।


मोदी नाम का होगा फायदा


उत्तर प्रदेश के नवनियुक्त भाजपा अध्यक्ष के पास मोदी सरकार के नाम की जमापूंजी है जिसके बल पर वह चुनावी समर में उतरेंगे। अपनी नियुक्ति के बाद के बयान में उन्होंने यह जाहिर भी किया है कि उनके पास नरेंद्र मोदी के नाम का करिश्माई व्यक्तित्व है जिसके नाम पर प्रदेश की जनता भरोसा कर सकती है।


भाजपा काे है उम्मीदें


उन्हें लोकसभा चुनाव के परिणाम से आशा बंधती दिखाई पड़ रही है। लेकिन क्या बदले माहौल में अब भी मोदी का वो करिश्मा बरकरार है जोकि सिर्फ इसी नाम के सहारे उत्तर प्रदेश का समर जीत दिला सकेगा। यह सवाल जब दिल्ली और बिहार के चुनाव परिणामों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाता है तो ज्यादा उम्मीद बंधती दिखाई नहीं देती। लेकिन जिस तरह मोदी सरकार के मंत्रियों को यूपी की पिच पर जिम्मेदारी दी जा रही है उससे सरकार की मंशा साफ़ दिखाई पड़ती है।


ये है जातिगत गणित


इसके आलावा जो बात भाजपाई खेमे में उम्मीद बांधती नज़र आ रही है वह है भाजपा का जातिगत गणित। भाजपा इस बार पूरी तरह पिछड़े दलित और अति पिछड़े ओबीसी वोट बैंक को साधने की रणनीति पर काम कर रही है। दलित वोट बैंक तक सरकार की इसी बात को पहुंचाने के लिए दलित सांसदों को उनके खेत्र में ख़ास जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। नोएडा में हाल ही में आयोजित रैली में यूपी के दलित सांसदों को तरजीह देने से भी बीजेपी की रणनीति की दिशा समझी जा सकती है।


दलितों पर महरबानी


पार्टी के प्लान के मुताबिक दलित सांसदों को इस बात की जिम्मेदारी दी जा रही है कि वे अपने क्षेत्रों में दलित समुदाय के बीच सरकार के उन कामों की जानकारी दें जो सरकार दलित समुदाय के लिए कर रही है। दलितों के लिए नए उद्यमी तैयार करने की सरकार की नीति से लेकर हर एक विभाग में दलितों के लिए किये जा रहे काम को जनता तक पहुंचाने की बात की जा रही है। इस नीति के तहत ही कुछ दलित चेहरों को पार्टी उभार रही है जिनसे दलित वोट बैंक खुद को जोड़ सके।


केशव के पास है सिक्योर वोट बैंक


खुद केशव प्रसाद मौर्य के आने से बीजेपी की पकड़ ओबीसी वोट बैंक पर सधती हुई दिख रही है। केशव मौर्य खुद पिछड़े वर्ग से आते हैं और अपने क्षेत्र में खासा प्रभाव भी रखते हैं। उनसे जुड़े लोग बताते हैं कि कोइरी और कुर्मी जातियों में उनका अच्छा प्रभाव है। यूपी की जातीय सियासत के बीच हर जाती के अपने नेता हैं।


केवश साबित होंगे तुरुप का पत्ता


लेकिन, कोइरी जाती का कोई ऐसा चेहरा सामने नहीं है जो पूरे समाज को एक साथ लेकर चल सके। इस परिदृश्य में केशव मौर्य भाजपा के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकते हैं। मौर्य के आने से भाजपा का इस वर्ग के वोट पर स्वाभाविक तौर पर दावा बढ़ गया है। इसके आलावा कुछ अन्य पिछड़ी जातियों पर भाजपा रणनीति बना रही है। अगर पार्टी का यह गणित सफल रहा तो भाजपा के लिए यूपी में खुश होने की वजह मिल सकती है।

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