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समाजवादी मजदूर सभा के प्रदेश अध्यक्ष राम गोपाल पुरी ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार का श्रम कानूनों को खत्म करने का फैसला न सिर्फ जनविरोधी व मजदूर विरोधी है, बल्कि संविधान की मूल भावना, समता के सिद्धान्त के भी खिलाफ है। लॉकडाउन के कारण लाखों मजदूर अपना रोजगार खोकर भूखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं। ऐसे हालात में सरकार को मदद करने की बजाय श्रम कानूनों को अस्थाई रूप से निलंबित करना न सिर्फ मानवता के खिलाफ है, बल्कि गरीब मजदूरों को पूंजीपतियों के यहां बंधुआ बनाने का षड्यंत्र है।
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समाजवादी मजदूर सभा के महासचिव देवेंद्र सिंह अवाना ने कहा कि मजदूरों के 12-12 घंटे काम करने की अनिवार्यता, शिकायत करने का न कोई प्लेटफॉर्म और न आंदोलन की अनुमति। मालिकान को जब चाहे मजदूर को कारखाने से निकालने की आजादी। लेकिन, मजदूरों के बोलने तक की आजादी छीन ली गई है। यह अध्यादेश न सिर्फ मजदूरों के जीवन में, बल्कि कारखाने के मालिकों के जीवन में भी शांति को प्रभावित करेगा। पार्टी के सचिव हीरालाल ने कहा कि अफसरशाही में सुधार की जगह श्रम कानूनों को स्थगित करना लोकतंत्र की हत्या है। यह अध्यादेश मजदूरों के लिये प्राण घातक हमला है। कोरोना काल में भाजपा सरकार का यह फैसला काला और मानवता को कलंकित करने वाला है। समाजवादी मजदूर सभा इस संकट की घड़ी में मजदूरों के साथ खड़ी है।
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पार्टी नेताओं ने एक स्वर में देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने वाले मजदूरों के भविष्य के साथ खिलवाड़ न करने और उनके बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए निलंबित श्रम कानूनों को तत्काल बहाल करने की मांग की है। यूपी सरकार के इस अध्यादेश की वापसी के लिए समूचे प्रदेश में पार्टी नेताओं ने अपने-अपने घरों में रहकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए श्रम कानूनों को स्थगित करने वाले अध्यादेश की प्रतियां जलाकर विरोध दर्ज किया।