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नोएडा

अगर मुस्लिम हुए एक तो लोकसभा चुनाव में भाजपा से छिन सकती हैं ये सीटें

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 35 फीसदी सीटों पर मुस्लिमों के हाथ में है फैसला

नोएडाJun 04, 2018 / 12:30 pm

sharad asthana

BJP

कैराना उपचुनाव जैसे हालात रहे तो भाजपा से छिन सकती हैं ये सीटें

नोएडा। कैराना और नूरपुर उपचुनाव में गठबंधन की जीत और भाजपा की हार की एक वजह मुस्लिमों की एकतरफा वोटिंग को भी माना जा रहा है। काफी समय बाद ऐसा देखा गया है जब मुस्लिम एक हो गए और उन्होंने किसी प्रत्याशी को जीत दिलाई हो। कैराना में लगभग सभी बड़े दलों ने हाथ मिला लिया था। वहीं, राष्ट्रीय लोक दल के अजित सिंंह काफी कोशिशों के बाद जाट और मुस्लिमों को एकसाथ लाने में सफल भी रहे। इसका परिणाम रालोद उम्मीदवार तबस्सुम हसन की जीत के रूप में मिला। इसके बाद माना जा रहा है कि अगर अगले लोकसभा चुनाव में भी मुस्लिमों की यह एकता कायम रही तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई सीटें भाजपा के खाते से छिन सकती हैं।
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35 फीसदी सीटों पर मुस्लिम निर्णायक

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 35 फीसदी सीटों पर फैसला मुस्लिमों के हाथ में है। यहां के 26 जिलाें की 140 विधानसभा सीटों पर यह मत निर्णायक है। अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोकसभा क्षेत्रों की बात करें तो मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर व मुरादाबाद में मुस्लिमों की संख्या 40 फीसदी है। रामपुर में तो मुस्लिमों की आबादी करीब 50 प्रतिशत है।
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इन जिलों की स्थिति

अगर अन्य क्षेत्रों की बात की जाए तो कैराना में 35 फीसदी मुस्लिमों की आबादी है जबकि मेरठ में 30 प्रतिशत, बागपत व गाजियाबाद में 25 और संभल में 70 फीसदी मुस्लिमों की आबादी बताई जाती है। बसपा स़ुप्रीमो मायावती के पैतृक जिले गौतमबुद्धनगर और बुलंदशहर में आबादी 20 फीसदी से कम है। इस हिसाब से देखा जाए तो गठबंधन होने की स्थिति में मुस्लिमों का एकतरफा मत गैर भाजपा उम्मीवारों को जा सकता है। साथ ही दलित भी उनकी तरफ ही जा सकते हैं। ऐसा होने पर इन सीटों पर भाजपा के लिए 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में मुश्किल खड़ी हो सकती है।
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2007 में बनवाई बसपा की सरकार

2002 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिमों ने आगे बढ़कर वोट डाला था। इसका परिणाम यह रहा कि सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, कैराना, मेरठ, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, रामपुर, अलीगढ़ समेत कई सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशियों ने जीत का स्वाद चखा था। फिर 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव में इस वोट बैंक ने पहले बसपा और फिर सपा की सरकार बनवाई। वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हुआ और 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सरकार बन गई। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में भी इसका असर देखने को मिला। पिछले विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट भी बंट गया था, जिस कारण प्रदेश में भी भाजपा की सरकार आई लेकिन कैराना उपुचनाव में बनी यह स्थिति कायम रही तो इस बार भाजपा को बड़ी मुश्किल हो सकती है।
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