यह भी पढ़ें- OMG जब अंतिम संस्कार के बाद जिंदा घर लौटी महिला को देख उड़ गए सभी के होश शादी से पहले दूल्हे को घोड़ी पर ही क्यों बिठाया जाता है? इसको लेकर सभी के मन में एक सवाल जरूर उठता है, लेकिन उत्तर किसी के पास नहीं है। पंडित राजेश शर्मा बताते हैं कि बहुत कम लोग ऐसे हैं जो शादी वाले दिन दूल्हे को घोड़ी पर बिठाने की परंपरा से वाकिफ होंगे। हिन्दुओं में प्राचीन समय से ही विवाह के दौरान दूल्हे को घोड़ी पर बिठाने का रिवाज है। उन्होंने बताया कि त्रेतायुग में भगवान श्री राम और सीता जी के स्वयंवर के दौरान भी घोड़ी का ही इस्तेमाल किया गया था। इसके अलावा द्वापर युग में भगवान श्री
कृष्ण भी रुक्मिणी को अश्व पर ही हरण करके लाए थे। इसके बाद दोनों विवाह के पवित्र बंधन में बंधे थे। तभी से विवाह के मौके पर घोड़ी के इस्तेमाल की परंपरा शुरू हुई। पंडित शर्मा बताते हैं कि इसके अलावा अश्व को लेकर कई कथाएं और कहानियां है। वे कहते हैं कि अश्व के कारण ही बड़े-बड़े युद्ध जीते गए हैं। इसलिए घोड़ी को उत्पत्ति तो घोड़े को शौर्य का प्रतीक माना जाता है।
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सूर्य और उनकी चार संतानें यम, यमी, तपती और श्नैश्चर की उत्पत्ति हुई तो उस समय सूर्य की पत्नी रूपा ने घोड़ी का ही रूप धारण किया था। बस इन्हीं पौराणिक मान्यताओं के कारण घोड़ी को विवाह में महत्वपूर्ण स्थान मिला। वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार घोड़ी बुद्धिमान, चतुर और दक्ष होती है। उसे सिर्फ स्वस्थ और योग्य व्यक्ति ही नियंत्रित कर सकता है। दूल्हे का घोड़ी पर आना इस बात का प्रतीक है कि घोड़ी की बागडोर संभालने वाला पुरुष, अपने परिवार और पत्नी की बागडोर भी अच्छे से संभाल सकता है। इसी के चलते दूल्हे को घोड़ी पर बैठाकर बारात ले जाने की परंपरा प्रचलन में आई है।