जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ अनुराग भार्गव ने बताया कि जिस किसी ने मिलावटी मिठाइयां खाई हैं उसे पेट दर्द, डायरिया, मरोड़, पेट में भारीपन, एसिडिटी और अपच जैसी समस्याएं हो सकती हैं। मिलावट करने वाले मावे में घटिया किस्म का सॉलिड मिल्क मिलाते हैं। ऐसे मावे से बनी मिठाइयों से किडनी और लिवर पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है। इतना ही नहीं, इससे कैंसर, फूड प्वाइजनिंग, उल्टी और डायरिया जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं।
ऐसे करें असली-नकली की पहचान -अगर दूध में मिलावट की पहचान किया जाए तो वह आसान है। इसके लिए थोड़े से दूध में बराबर मात्रा में पानी मिलाएं। अगर उसमें झाग आए तो समझ लें कि इसमें डिटर्जेंट की मिलावट है।
-सिंथेटिक दूध की पहचान करने के लिए दूध को हथेलियों के बीच रगड़ें, इस दौरान अगर साबुन जैसा लगे तो दूध सिंथेटिक हो सकता है। साथ ही सिंथेटिक दूध गर्म करने पर हल्का पीला हो जाता है।
-मिलावटी मावे की पहचान के लिए फिल्टर पर आयोडीन की दो से तीन बूंदे डालें। अगर फिल्टर यह काला पड़ जाए तो समझ लें कि मावा मिलावटी है। इस अलावा मावे को उंगलियों के बीच मसलें। अगर दाने जैसे लगें तो वह मिलावटी मावा है।
– मिलावटी घी की पहचान करने के लिए इसमें कुछ बूंदें आयोडीन टिंचर की मिला दें। अगर घी का रंग नीला हो जाए तो ये मिलावटी हो सकता है। बता दें कि अक्सर घी में आलू या शकरकंद की मिलावट की खबरें आती रहती हैं।
-मिठाईयों पर चढ़े चांदी के वर्क को जलाने से अगर वह स्लेटी रंग का जला हुआ कागज बन जाए तो उसमें मिलावट है।
ये हैं सजा के प्रावधान मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री करने वाले दुकानदार या प्रतिष्ठान मालिक को 6 माह से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। इसके साथ ही खाद्य पदार्थ असुरक्षित पाए जाने पर जुर्माना और सजा, दोनों का प्रावधान भी है। यदि असुरक्षित खाद्य पदार्थ खाने से किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो संबंधित विक्रेता को आजीवन कारावास के साथ मृतक के परिवारवालों को 10 लाख रुपये भी देने पड़ सकते हैं।
लखनऊ भेजा जाता है सैंपल जिला खाद्य सुरक्षा अभिहित अधिकारी संजय शर्मा ने बताया कि होली के मद्देनजर 15 जनवरी से अब तक रेस्तरां और मिठाइयों की दुकानों से 35 नमूने लिए गए हैं। इन सभी नमूनों को जांच के लिए लखनऊ की सरकारी लैब भेजा जाता है। रिपोर्ट में इनके मानक के मुताबिक न आने पर मामला एडीएम प्रशासन कोर्ट में चलता है। एडीएम कोर्ट में सिर्फ जुर्माना लगाया जा सकता है। इसके बाद रिपोर्ट में अगर हानिकारक तत्व पाए जाते हैं तो मामला एसीजेएम कोर्ट में चलता है। यहां सजा और भारी जुर्माना तक लगाया जाता है।