नोएडा। रोंगटे खड़े कर देने वाले निठारी कांड के विलेन मोनिंदर पंधेर की डी-5 कोठी भूतिहा बंगले में तब्दील हो चुकी है। करीब दो साल से यहां न कोई आया और न गया। ये लंबे समय से बंद है। चमगादड़ों ने यहां बसेरा बना लिया है। जगह जगह दिखते हैं मकड़ी के मोटे जाले। हां, इस कोठी के सामने से गुजरने वाले अब भी सिहर उठते हैं। हाउस ऑफ हॉरर कही जाने वाली इस कोठी के बारे में जितनी जुबानें, उतने ही किस्से हैं।
बदहाल डी-5 कोठी
सेक्टर 31 में एक कोठी है डी-5। ये लोगों के लिए सामान्य कोठी नहीं बल्कि हाउस हॉरर है। करीब 11 सालों से बंद। न यहां लाइट जलती है। न गेट खुलता है। न कोई नजर आता है। पिछले दस सालों में यहां अगर कुछ हुआ है, तो वो है झाड़ियों का जंगली तरह बढ़ कर बंगले को करीब करीब छिपा लेना। ये कोठी थर-थरा देने वाले निठारी कांड के विलेन मोनिंदर सिंह पंधेर की है यही कोठी में नरपिशाच कहा जाने वाला सुरेंद्र कोली भी रहता था। लोग बताते हैं कि एक जमाने में ये इस इलाके की शानदार कोठियों में एक थी। 11 सालों में ये मनहूसियत और डरावनेपन का प्रतीक बन गई है। इसके पास आते ही एक डर अचानक अंदर आ बैठता है।
भूतिहा बंगला है अब
कहना चाहिए कि एक जमाने की ये शानदार कोठी अगर अब ऐसा बंगला भी है, जो कचरे का ढ़ेर है। घर के अंदर से लेकर बाहर तक बड़ी बड़ी झाडियां फैल गई हैं। दीवारें बदरंग हो चुकी हैं। पेंट और प्लास्टर उखड़ने लगा है। हां, जब कोई नया इस सेक्टर में आता है तो उसे जरूर इसके बारे में बताया जाता है। बच्चे कभी इसके सामने भूलकर भी खेलने नहीं आते।
क्या कहते हैं पड़ोसी
इस बदनाम कोठी के एक तरफ सुप्रीम कोर्ट के वकील का घर है तो दूसरी ओर एक नामी डाॅक्टर का आशियाना। जब वर्ष 2005 में ये चर्चा में आया था तो दोनों से भी पूछताछ की गर्इ थी। लेकिन बाद में यही निष्कर्ष निकला कि वाकई इस कोठी में जो कुछ हो रहा था, उसकी कोई जानकारी उन्हें नहीं थी। पड़ोसी सामान्य तरीके से ही रहते हैं लेकिन तब जरूर असहज हो जाते हैं जब कोई मीडिया वाला इस कोठी के आसपास आ धमकता है। वह उस खौफनाक कांड के बारे में कोई बात भी करना चाहते।
कहां है अब पंधेर
जेल से छूटने के बाद मोनिंदर पंधेर अपनी इस कोठी में रहना चाहता था। उसने वापसी की तैयारी भी शुरू की थी लेकिन जब निठारी के गांववालों को इसका पता लगा तो उन्होंने विरोध आैर धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया। जिसके चलते उसे अपना फैसला बदलना पड़ा। इसके बाद से वह इस कोठी पर नहीं आया। बताया जाता है कि वह चंडीगढ़ में गुमनाम सी जिंदगी गुजार रहा है।
दिलों में अब भी बैठा है खौफ
निठारी कांड के चाहे दस साल से ऊपर हो चले हों लेकिन दिलों में खौफ इस कदर बैठा है कि गांववाले अपने बच्चों को यहां कभी खेलने देने की इजाजत नहीं देते। न आसपास फटकने ही देते हैं। ये मुख्य रास्ते पर है, लिहाजा लोगों को यहां से गुजरना तो पड़ता है लेकिन ज्यादातर लोग रुकना पंसद नहीं करते।
कोठी से क्या आती थीं आवाजें
कुछ समय पहले ही इस कोठी के आसपास से गुजरने वाले लोगों ने कोठी से रोने आैर अजीब आवाजें आने का दावा किया था। यह बात प्रशासन आैर अन्य लोगों के सामने भी आईं लेकिन बाद में जांच के बाद इसे बेबुनियाद पाया गया।
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