बताया जाता है कि नोएडा में इस सियासी अभिशाप की शुरुआत 1988 से तब हुई जब नोएडा में वीर बहादुर के हटने के बाद नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने। वह भी नोएडा के सेक्टर-12 स्थित नेहरू पार्क का उद्घाटन करने वर्ष 1989 में आए थे। उसके कुछ समय बाद वह भी मुख्यमंत्री पद से हटा दिए गए। समय-समय पर हुए मध्यवर्ती चुनाव में नारायण दत्त तिवारी, कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव सभी के नोएडा आने के बाद इसी तरह से कुर्सी चली गई।
मुलायम सिंह और मायावती की कुर्सी जाने पर अखिलेश ने बनाई दूरी वर्ष 1994 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव नोएडा सेक्टर-40 खेतान पब्लिक स्कूल का उद्घाटन करने आए। उन्होंने मंच से कहा कि वह इस मिथक को तोड़ कर जाएंगे, जो मुख्यमंत्री नोएडा आता है, उनकी कुर्सी चली जाती है। इसके कुछ दिन बाद ही उनको भी मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा। वर्ष 2000 में जब नोएडा के डीएनडी फ्लाईओवर का उद्घाटन हुआ तो तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने नोएडा आने के बजाय दिल्ली आए। 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने नोएडा में दलित प्रेरणा स्थल का उद्घाटन करने पहुंची और 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा। यही कारण है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव अपने कार्यकाल में एक बार भी नोएडा नहीं आए।
5 साल में 19 बार आए सीएम योगी नोएडा आने पर मुख्यमंत्रियों की कुर्सी चली जाती है, ये बात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अच्छी तरह से जानते थे, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने इस राजनीतिक अभिशाप को नहीं माना। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने 5 साल के कार्यकाल 19 बार गौतम बुद्ध नगर जिले में आ चुके हैं। उन्होंने इस बात का बार-बार ऐलान भी किया कि वह इस अंधविश्वास को नहीं मानते हैं और इसे तोड़ के रहेंगे। नोएडा के मिथक को तोड़कर अब भाजपा 2022 में दोबारा से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाने जा रही है।