जबलपुर। आगामी सोमवार यानी 12 सितंबर को डोल ग्यारस व जलझूलनी एकादशी का व्रत पर्व है। इसका हिंदु धर्म में विशेष महत्व है, पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं । इसी दिन माता यशोदा ने श्रीकृष्ण के जन्म के बाद कुआं पूजन किया था। कहा गया है कि इस व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है। हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पद्मा/कामदा/ जलझूलनी एकादशी आदि नामों के साथ-साथ डोल ग्यारस के नाम से भी प्रचलित है । पुराणों में उल्लेख है कि इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं इसीलिए इसे परिवर्तनी एकादशी भी कहा जाता है ।
चंद्रमा की 11 कलाओं का असर
इस दिन भगवान वामन की श्रद्धा, भक्ति और विधि विधान से पूजा कर उपवास रखें तथा एकादशी व्रत/भगवान वामन की कथा का श्रवण करें । इस दिन चन्द्रमा की ग्यारह कलाओं का प्रभाव सब पर पड़ता है जिससे शरीर की अवस्था और मन में चंचलता आ जाती है । अत: उपवास से शरीर स्वस्थ और पूजन करने से मन नियंत्रण में रहता है । आज के दिन व्रत करने वाले को सिर्फ फलाहार ही करना चाहिए । यह व्रत करने से सुख और सौभाग्य में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी होती है।
माता यशोदा का जलवा/कुआँ पूजन
भगवान कृष्ण के जन्म के ग्यारहवें दिन बाद माता यशोदा ने जलवा/कुआं पूजन किया था जिसे डोल ग्यारस के रूप में मनाया जाता है । आज के दिवस बड़े हर्षोल्लास और धूमधाम से कई जगहों पर जुलूस निकाला जाता है । भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को डोल में विराजमान कराकर उनकी शोभायात्रा निकाली जाती है । विभिन्न समाजों और मंदिरों द्वारा डोलों को सजाया जाता है। इस दिन कुछ गणेश प्रतिमाएं विसर्जन के लिए इसमें सम्मिलित होती है । इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को नौका विहार कराया जाता है और जल विहार उत्सव मनाया जाता है ।
भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा
आज के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा-अर्चना की जाती है। जो भी व्रतकर्ता इस एकादशी को भगवान विष्णु की वामन रूप में पूजा करते हंै उसे ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों के पूजन का फल प्राप्त होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो कमलनयन भगवान की कमल से पूजन करते हैं वे अवश्य भगवान के पास होते हैं । इस व्रत को विधि पूर्वक करने से समस्त पाप नष्ट होते हैं, मोक्ष की प्राप्ति होती है और रोग-शोक दोनों मिट जाते हैं ।
पद्मा/जलझूलनी/परिवर्तनी एकादशी का महत्व
इस एकादशी की संक्षेप में कथा इस प्रकार है कि सूर्यवंश में मान्धाता नामक चक्रवर्ती राजा हुए थे एवं उनके राज्य में सुख-संपदा की कोई कमी नहीं थी जिससे प्रजा सुखी थी। राज्य में पिछले तीन वर्षों से वर्षा नहीं हुई, जिससे प्रजा व्याकुल हो गई तब मान्धाता राजा भगवान नारायण की शरण में जाते हैं और अपनी प्रजा का दुख दूर करने की प्रार्थना करते हंै तो भगवान नारायण उन्हें इस एकादशी का व्रत करने को कहते हंै । इस व्रत को करने से राजा के राज्य में वर्षा होने लगती है और प्रजा के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा राज्य फिर से खुशहाल बन जाता है । भगवान विष्णु ने कहा कि जो भी इस एकादशी को करेगा उसे भूमिदान और गोदान करने के बाद मिलने वाले पुण्यफलों से अधिक शुभ फलों को प्राप्ति होगी ।
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