कई देशों में यह रुझान देखा गया है कि सिन प्रोडक्ट्स यानी कि दोषपूर्ण उत्पादों (वो उत्पाद, जिनकी लोगों को लत लग जाती है और जन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं) पर टैक्स दो कारणों से लगाया जाता है। पहला कारण है, रेवेन्यू कलेक्शन बढ़ाना क्योंकि इन उत्पादों की लागत से इनकी मांग प्रभावित नहीं होती यानी कीमतें बढ़ने से इनकी खपत में अंतर नहीं आता। दूसरा कारण है, टैक्स लगाकर उन्हें महंगा बनाना ताकि ग्राहक उनकी बजाय सुरक्षित विकल्पों को अपनाने लगें। लेकिन यहाँ पर एक बात गौर करने लायक है कि जीएसटी वाले ज़्यादातर देशों में स्लैब्स और टैक्स दरें काफ़ी कम होती हैं।
एश्लर लॉ में पार्टनर पिंगल खान ने बताया कि विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, 2023 में भारत में कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक (सीएसडीएस) पर लगाया जाने वाला 40% का टैक्स सबसे अधिक टैक्स दरों में से एक था। इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देशों में ज़्यादा शुगर वाले उत्पादों पर ज़्यादा टैक्स लगता है, तथा कम शुगर वाले उत्पादों पर कम टैक्स लगता है। ग्राहक अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए कम शुगर वाले उत्पादों की ओर जा रहे हैं, जिससे कम शुगर वाले पेय का नया बाज़ार विकसित हो रहा है। लेकिन शुगर वाले हर पेय पर एक सा टैक्स लगाने से उत्पादक कम शुगर वाले उत्पाद बनाने के लिए इन्वेस्टमेंट और इनोवेशन नहीं करेंगे। इसलिए टैक्स संरचना में परिवर्तन से ये उत्पादक कम शुगर वाले उत्पाद बनाने की ओर प्रेरित होंगे। इससे नई नौकरियां उत्पन्न होंगी और सरकार को ज़्यादा राजस्व मिलेगा। इससे इनोवेशन भी बढ़ेगा और लोगों का स्वास्थ्य भी सुरक्षित होगा।
टोबैको इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित डब्लूएचओ डेटा के मुताबिक भारत में सिगरेट पर लगने वाला टैक्स प्रति व्यक्ति जीडीपी प्रतिशत में दुनिया की सबसे अधिक टैक्स दरों में एक है। भारत के तम्बाकू बाज़ार में सिगरेट उद्योग का हिस्सा 1982 में 21% था जो 2023-24 गिरकर लगभग 10% तक पहुंच गया। टीआईआई हैंडबुक के अनुसार सरकार को गैरकानूनी और नकली सिगरेट्स से हर साल 21,000 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होता है। जहां कम टैक्स दरें नियमों की अनुपालना बढ़ाती हैं, वहीं ज़्यादा टैक्स दरें टैक्स चोरी को बढ़ाती हैं। इसलिए 35% की टैक्स स्लैब से टैक्स संरचना और ज़्यादा कठिन बनेगी।