कबीर माया मोहिनी,,,
जैसे मीठी खांड,,,,,,
कबीर दास जी का यह दोहा माया मोह से परे मनुष्य की लालसा को ध्यात्म की ओर परिवर्तित करता है।
लेख “आहुति मन” की विशुद्ध भारतीय दर्शन परंपरा का सार्थक विस्तार है। पति के प्रति पत्नी का समर्पण, पिता के प्रति पुत्र,पुत्री का समर्पण इसी उदात्त भाव का परिचायक। इससे हमें जीवन के प्रति उदात्त, स्वीकार्यता, और कर्म के पति आस्था का संदेश मिलता है।
आलोक दुबे, समाजसेवी, इन्दौर
कॉलम शरीर ही ब्रह्मांड में प्रति शनिवार पढ़ती हूं। आज के लेख में बहुत अच्छी बात लिखी है कि भारतीय विवाह संस्कार में यह तथ्य अदृश्य रूप में प्रतिष्ठित है कि पत्नी के कर्म पति को अर्पित हो जाते हैं। ये दो आत्माओं के मिलन को ही तो दर्शाता है। विवाह जीवन का भीतर की ओर गति का प्रवेश काल है।
सुनंदा गावंडे, साहित्यकार, बुरहानपुर
मानव जीवन की समस्त समस्याओं की जड़ मन है। ये इच्छाओं के वशीभूत होकर हमें सत्मार्ग से कुमार्ग की ओर ले जाता है। मन को जिसने भी नियंत्रित कर लिया वह जग जीत लेता है। उसकी सफलता में आने वाली समस्त बाधाएं स्वत: ही दूर हो जाती हैं। वहीं दूसरी ओर जिसका मन यहां वहां निरंतर भागता रहता है, वह कभी भी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाता है। ऐसे में मन को एकाग्र करने का सबसे अच्छा जरिया योग ध्यान और अध्यात्म है। इससे व्यक्ति स्वयं के भीतर की शक्तियां पहचानने लगता है। खुद को नियंत्रित कर सकता है।
पायल चौरसिया, मनोविज्ञानी, जबलपुर
अग्नि को ब्रह्म और सोम को सुब्रह्म कहा जाता है। इंसान रूपी जीव पूर्व जन्मों के संस्कारों, कर्मफलों आदि के साथ स्थूल शरीर की ओर गति करता है। सृष्टि सृजन में भी पुरुष और स्त्री का क्रमश: बराबर का ही योगदान रहता है। किसी भी आहुति में प्रकृति के ये दोनों रूप शामिल दिखाई देते हैं। हालांकि इस लेख में कही गई बात भी माया का समझ पाना पुरुष के वश की बात नहीं है, काफी हद कई मायनों में सटीक बैठती है।
जीएम हिंगे, ज्योतिषाचार्य, ग्वालियर
अर्धनारीश्वर स्वरूप प्रधानभूत तत्त्व की दृष्टि है। अग्नि पुरुष और सोम स्त्री से यह विश्व निर्मित है। ब्रह्म और सुब्रहा का मिलन प्रवाह जीवन तत्त्व है। आलेख आहुति मन की हमें अपने अंतरंग में ले जा रहा है। आत्म शांति की ओर अंदर जाने के क्रम में यह तत्त्व चेतना उद्घाटित होती है। शरीर के माध्यम से आत्मा बुद्धि-बल चिंतन से शांति मार्ग की ओर बढती है। एक बेहतरीन और अनुकरणीय आलेख गुलाब कोठारी ने अपने धर्म अध्ययन के उपरांत वेद, उपनिषद और भी श्रेष्ठ अध्ययन माला का आनंद लेते हुए लिखा है।
डाॅ.नलिन निर्मल, लेखक, सागर
प्रत्येक मानव का शरीर अर्द्धनारीश्वर होता है। स्त्री में देवी शक्ति, माया शक्ति का गुण सूक्ष्म है जिसके माध्यम से वह शरीर, बुद्धि, मन को संचालित करते हुए अपने भीतर के आवेश, क्रोध, ईर्ष्या को बड़ी सहजता एवं माधुर्यता से प्रकट करती है। स्त्री के भीतर उसकी दृढ़ता व उसका लक्ष्य ही उसकी सूक्ष्म देवी शक्ति, माया शक्ति होते हैं, जिसके बलबूते अपने परिवार का दायित्व पूरा करती है। इसलिए स्त्री को हर पुरुष की सफलता में परिवार में संस्कार की जननी कहा गया है। स्त्री की माया व शक्ति को समझ पाना पुरुष के वश की बात नही है।
रवि जैन, ज्योतिषी, रतलाम
यह लेख स्त्री पुरुष को अच्छी तरह परिभाषित करने वाला है। संसार में ब्रह्मा को पाने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है जो स्त्री में निहित है। प्यार से क्रोध को जीता जा सकता है, लेकिन क्रोध से प्यार को नहीं जीत सकते। नारी सौम्य होती है। पुरुष अग्नि होता। सौम्य से अग्नि को बुझाया जा सकता है। स्त्री पुरुष को तो शांत करती ही है। वही ब्रह्मा में भी शांत मन से निहित हो जाती है।
पंडित विशाल कुमार मिश्रा, बैतूल
इस लेख में सच ही लिखा है कि स्त्री जो कि जन्मदाता है तथा जीवन भर पुरुष का ख्याल रखती है, वह बाहर से कोमल है लेकिन भीतर से पुरुष से भी कठोर होती है। भारतीय संस्कार में पत्नी के कर्म के फल पति को मिलते हैं। भारतीय संस्कार में पत्नी एक पालक के रूप में होती है जो की पति और बच्चों दोनों को पालती है। उनकी सेवा तथा उनका ख्याल रखती है।
देवानंद विश्वकर्मा, व्यापारी, अनूपपुर