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Patrika opinion संसदीय मर्यादा का ध्यान रखने की बड़ी जिम्मेदारी

आखिर पांच दिन के गतिरोध के बाद संसद के शीतकालीन सत्र की कार्यवाही को लेकर सत्ता पक्ष व प्रतिपक्ष में सुलह हो गई। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की पहल पर कांग्रेस समेत विपक्ष की संविधान पर चर्चा की मांग को सरकार ने मान लिया है। इसे सुखद संकेत कहा जा सकता है क्योंकि संसद के […]

जयपुरDec 02, 2024 / 09:51 pm

Sanjeev Mathur

आखिर पांच दिन के गतिरोध के बाद संसद के शीतकालीन सत्र की कार्यवाही को लेकर सत्ता पक्ष व प्रतिपक्ष में सुलह हो गई। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की पहल पर कांग्रेस समेत विपक्ष की संविधान पर चर्चा की मांग को सरकार ने मान लिया है। इसे सुखद संकेत कहा जा सकता है क्योंकि संसद के शीतकालीन सत्र में पहले पांच दिन में सिर्फ 50 मिनट ही कामकाज हो पाया।
यह तस्वीर यह सवाल करने के लिए काफी है कि आखिर हमारा संसदीय लोकतंत्र किस दिशा में जा रहा है। हंगामा और शोरगुल अकेले इसी सत्र में हुआ हो ऐसा नहीं है। बीते दो दशकों में हंगामा और बहिर्गमन एक तरह से संसद का पर्याय बन चुके हैं। फिर चाहे विपक्ष में कांग्रेस रहे, भाजपा या कोई और। गत 25 नवंबर से शुरू हुआ संसद सत्र 20 दिसंबर तक चलना है। इस दौरान सदन में 16 विधेयक पेश किए जाने हैं जिनमें से 11 पर चर्चा होनी है। सत्र के पहले दिन से सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध बना हुआ था। विपक्ष अदाणी, मणिपुर व संभल हिंसा पर चर्चा की मांग को लेकर अड़ा हुआ था।
लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का हक है। लेकिन हमारी संसदीय प्रणाली में हंगामा और कार्यवाही बाधित करने को जगह भला क्यों होनी चाहिए? हमारे सांसदों को चुनने वाले करोड़ों मतदाताओं के मन में हर बार एक ही सवाल उठता है कि आखिर संसद अपनी भूमिका पर खरी क्यों नही उतर पाती। संसद किसी एक पार्टी की नहीं बल्कि सबकी है। लोकसभाध्यक्ष ने ठीक ही कहा कि ‘सहमति-असहमति लोकतंत्र की ताकत है लेकिन देश चाहता है कि संसद चले।’ चिंता इस बात की भी है कि हर बार संसद सत्र की शुरुआत से पहले होने वाली सर्वदलीय बैठक में सभी दल संसद चलाने पर सहमत तो होते हैं लेकिन इस पर अमल शायद ही कभी हो पाता हो? इसके लिए दोषी किसको ठहराया जाए? सत्तापक्ष और विपक्ष लोकतंत्र में एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और दोनों को अपनी-अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। मुद्दों पर टकराव पहले भी होता था, संसद में व्यवधान भी पड़ता था लेकिन फिर भी महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर दोनों पक्ष एक-दूसरे की बात सुनते थे। लेकिन अब लगता है मानों शोरगुल मचाना ही सांसदों का काम रह गया हो।
शीतकालीन सत्र में अब मात्र 16 दिन बचे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि आगामी दिनों में सदन की कार्यवाही बिना बाधा के चलेगी। सांसद जब अपने अधिकारों को लेकर सजग रहते हैं तो उनकी बड़ी जिम्मेदारी दायित्वों के निर्वहन बोध और संसदीय मर्यादा बनाए रखने की भी है।

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