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‘वागड़ की तरक्की के लिए क्षेत्रीयता की सोच और दायरे लांघने होंगे’

केरल के पूर्व मुख्य सचिव डॉ. विश्वास मेहता से पत्रिका की खास बातचीत

डूंगरपुरJul 23, 2024 / 10:41 am

Varun Bhatt

केरल के पूर्व मुख्य सचिव डॉ. विश्वास मेहता से पत्रिका की खास बातचीत

केरल के पूर्व मुख्य सचिव डॉ. विश्वास मेहता से पत्रिका की खास बातचीत

– केरल के पूर्व मुख्य सचिव डॉ. विश्वास मेहता से पत्रिका की खास बातचीत

– डूंगरपुर निवासी रिटायर्ड आईएएस पहुंचे अपने गृहनगर

वरुण भट्ट डूंगरपुर. केरल सरकार के पूर्व मुख्य सचिव (रिटायर्ड आईएएस) डॉ. विश्वास मेहता सोमवार को डूंगरपुर पहुंचे। यहां बॉलीवुड प्लेबैक सिंगर मुकेश कुमार की 100वीं जयंती पर आयोजित संगीत संध्या में प्रस्तुति देने से पूर्व सर्किट हाउस में राजस्थान पत्रिका से उन्होंने विशेष बातचीत की। इस दौरान शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास से जुड़े मुद्दों पर विभिन्न सवालों के जवाब दिए। उन्होंने प्रशासनिक सेवा के साथ संगीत से जुड़ाव के अब तक के सफर को भी बयां किया। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश…
पत्रिका- केरल और राजस्थान में शिक्षा-चिकित्सा में क्या और कितना अंतर महसूस करते हैं?

जवाब- शिक्षा-चिकित्सा व्यवस्था के लिहाज से दोनों ही राज्यों में बहुत अंतर हैं। केरल में कभी किसी को स्कूल-कॉलेज जाने के लिए कहने की जरूरत नहीं पड़ती हैं। वहां शिक्षा पहली प्राथमिकता है। यही कारण है कि शिक्षा में केरल अग्रणी रहा है। वहां गरीब से गरीब परिवार भी संघर्ष कर अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देगा। केरल में महिला वर्ग के इर्द-गिर्द पूरा समाज चलता है। जहां स्त्री के विभिन्न रूपों मां, बहन, पत्नी, बेटी को महत्व मिलता है। वे ही बच्चों को पढ़ाकर परिवार को आगे ले जाती हैं। एक तरह से परिवार की मुखिया महिलाएं ही हैं। आजादी से पहले से ही शिक्षा-स्वास्थ्य को लेकर केरल में काम शुरू हो गया था, जिस वजह से दोनों क्षेत्रों में केरल हमेशा आगे रहा। अब राजस्थान में भी धीरे-धीरे इन क्षेत्रों में प्रगति हुई है, बदलाव आ रहा हैं, लेकिन कुछ जगह अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने का बड़ा कारण जागरूकता का अभाव भी है। केरल में शिक्षा व साक्षरता का ही प्रभाव है कि वहां कुछ भी गलत होने पर लोग जवाब मांगते हैं।
पत्रिका- डूंगरपुर आपकी जन्म भूमि हैं, उसे लेकर क्या कहेंगे?

जवाब- डूंगरपुर हमारी जन्म भूमि है। किस्मत भले शिक्षा-सरकारी सेवाओं के लिए कहीं भी ले गई हो, लेकिन लौटकर आना यहीं पर हैं। हमने कभी भी जमीन छोड़ी नहीं है। मैं जब आईएएस रहा, तब भी तीन से चार दिन के लिए यहां आता था। घर पर पानी की समस्या होने पर हैंडपंप पर पानी लेने भी जाया करता था। कुर्सी-गाड़ी से क्या मोह रखें। जीवन में गिरने का डर उसे होता है, जो जमीन छोड़ देता हैं। हमें हमारे मूल को कभी भी नहीं छोडऩा चाहिए, क्योंकि अंत में हमको लौटकर वहीं आना पड़ता है। कारण रहा कि जब भी जन्मभूमि के लिए कोई भी बेहतर करने का अवसर मिला, तो शांत रहकर काम किया। मेडिकल कॉलेज व वागड़ महोत्सव इसके उदाहरण हैं।
पत्रिका- वागड़ को आज भी पिछड़ा कहा जाता हैं, क्यों हालात ज्यादा नहीं बदल पाए?

जवाब- यह सच है कि स्थानीय लोगों को उनका हक नहीं मिला। जिस गति से उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढऩा चाहिए था, वो नहीं बढ़ पाए, लेकिन हर व्यक्ति पहले इस बात पर मंथन करे कि उसने अपनी जमीन के लिए क्या किया है। क्या कभी यहां की कमियों, चुनौतियों, मजबूती पर हमने खुलकर बात की। महज पिछड़ेपन की बात करने से काम नहीं चलेगा। यह सोचकर बैठे रहना भी नहीं चाहिए कि जिला कलक्टर या नेता ही सबकुछ कर देंगे। हमें यह भी सोचना होगा कि कभी शॉर्ट या लॉंग टर्म प्लान बनाया या नहीं। हर बात चुनावी मुद्दा बनकर चुनाव के साथ ही समाप्त हो जाती हैं। समस्या की बात करने के साथ ही उसके समाधान के लिए प्लानिंग के साथ क्रियान्वयन पर फोकस जरूरी है। क्षेत्रीय विचारधारा से उन्मुक्त दूरदर्शिता होनी चाहिए।
पत्रिका- प्रशासनिक सेवाओं के साथ संगीत का दामन कैसे थाम लिया?

जवाब- सबकी अपनी अपनी हॉबी होती हैं। मुझे संगीत की विधा ईश्वर ने दी। पंद्रह वर्ष की उम्र से गीतकार मुकेश कुमार के गीतों से लगाव शुरू हो गया था, जो अब तक बना हुआ है। 1996 में मैं वायनाड़ में कलक्टर बना तो उस दौरान ‘वायनाड़कार्निवाल’ का आयोजन हुआ। वहां पहली बार आर्केस्ट्रा के साथ गाना गाया था। म्युजिक लवर्स क्लब वर्ष, 2000 से शुरू किया, जिसमें लाइव म्युजिशियन के साथ प्रस्तुति का शुरू हुआ सिलसिला आज तक चल रहा है। एक बार तो मैंने खुद के म्युजिक सिस्टम के लिए साढ़े सात लाख रुपए की कार भी बेच दी थी।
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पत्रिका- अपने कॅरियर में बतौर एक सफल आपका युवाओं के लिए क्या संदेश है?

जवाब- हर आदमी शॉर्टकट चाहता है। यदि दुख देखा ही नहीं है तो सुख की अनुभूति कैसे होगी। हमेशा सुख ही सुख मिल रहा है तो दुख होने पर कैसे पता चलेगा कि सुख व दुख में अंतर क्या है? पिता के संघर्ष की अनुभूति कर हम आगे बढ़ते हैं तो निश्चित तौर पर लक्ष्य तक पहुंच सुनिश्चित होती है।

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