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जैविक नैनो कीटनाशक खेती को देगा नई दिशा: सब्जियों को खराब होने से बचाएगा, खरपतवार और कीटों का करेगा खात्मा

फसलों में उपयोग करने से शुगर, कैंसर और हाई ब्लडप्रेशर जैसी बीमारियां होंगी दूर डॉ. हरिसिंह गौर विवि के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के शोधकर्ताओं ने विकसित किया सागर. डॉ. हरिसिंह गौर विवि के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के शोधकर्ताओं ने जैविक नैनो कीटनाशक विकसित कर लिया है। यह जैविक नैनो कीटनाशक चार वर्षों की मेहनत के बाद बनाया […]

सागरJul 27, 2024 / 01:32 am

नितिन सदाफल

डॉ. हरिसिंह गौर विवि के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के शोधकर्ताओं ने विकसित किया जैविक नैनो कीटनाशक

डॉ. हरिसिंह गौर विवि के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के शोधकर्ताओं ने विकसित किया जैविक नैनो कीटनाशक

फसलों में उपयोग करने से शुगर, कैंसर और हाई ब्लडप्रेशर जैसी बीमारियां होंगी दूर

डॉ. हरिसिंह गौर विवि के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के शोधकर्ताओं ने विकसित किया

सागर. डॉ. हरिसिंह गौर विवि के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के शोधकर्ताओं ने जैविक नैनो कीटनाशक विकसित कर लिया है। यह जैविक नैनो कीटनाशक चार वर्षों की मेहनत के बाद बनाया है। अगर सरकार की ओर से सहायता मिलती है तो इसे जल्द ही नैनो यूरिया की तरह बाजार में उतारा जा सकता है। जिसका मूल्य रसायनिक पेस्टीसाइड की तुलना में लगभग तीन से चार गुना कम होगा। खास बात यह है कि खेती में इसका इस्तेमाल करके पानी में घुलनशीलता और जैव उपलब्धता को बढ़ा सकते हैं। फसलों में रोग, खरपतवार और कीटों के नियंत्रण में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं।
इस कीटनाशक के संश्लेषण में टेरपिनोल लोडेड जीन (प्रोटीन) नैनोकणों का उपयोग किया जाता है। जीन नैनो कणों के भीतर टेरपिनोल का एनकैप्सुलेशन सब्जी की फसल को सुरक्षा देता है। साथ ही पर्यावरण प्रदूषण को भी कम करता है। वहीं इसके इस्तेमाल से सिंथेटिक रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग खेती में कम हो जाएगा। शुगर, कैंसर और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारी भी कम हो जाऐंगी।
ऐसे किया शोध

बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सहायक प्रो. डॉ चंद्रमा प्रकाश उपाध्याय के निर्देशन में पीएचडी शोधार्थी अभिषेक पाठक नवीन अत्याधुनिक नैनो तकनीक का उपयोग किया। जिसमें आशाजनक परिणाम मिले हैं। नैनो कीटनाशक की संश्लेषण की प्रक्रिया कठिन है, लेकिन विभिन्न परीक्षणों और प्रयोगों के कारण वैज्ञानिक इस नैनो कीटनाशक का एक सरल और सस्ता फॉर्मूला बनाया। जो कृषि क्षेत्र में उपयोग के लिए प्रभावी है। इसका प्रयोग करने के बाद आलू और टमाटर जैसी अन्य सब्जियों में कम संक्रमण पाया गया है। कृषि में नैनोपेस्टीसाइड तकनीक से फसल की उपज में वृद्धि भी दिखाई दी है।
पर्यावरण को नहीं होगा नुकसान

इस परियोजना के निदेशक डॉ. चंद्रमा प्रकाश उपाध्याय ने बताया कि हमारा लक्ष्य है कि हम नैनो प्रौद्योगिकी के प्रयोग के माध्यम से किसानों को पर्यावरण के अनुकूल विकल्प प्रदान कर सकें। उन्होंने बताया कि किसान सब्जियों की फसलों में हानिकारक रोगजनकों को नियंत्रित करने के लिए सिंथेटिक रासायनिक कीटनाशकों का बड़े पैमाने पर उपयोग करते हैं। ये रसायन मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं। विशेष रूप से किसानों को इन कीटनाशकों के दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ता है, जो उपभोक्ताओं द्वारा भोजन के दुष्प्रभावों से कहीं अधिक होता है। सिंथेटिक कीटनाशकों के प्रतिकूल प्रभावों पर बहुत से शोध हुए हैं जिसमें कैंसर और तंत्रिका संबंधी विकार जैसी स्वास्थ्य समस्याएं शामिल हैं। इन चुनौतियों को दृष्टिगत रखते हुए हमारी प्रयोगशाला ने जैविक नैनो कीटनाशक विकसित किया है जो खतरा पैदा करने वाले कीटनाशकों के विकल्प के रूप में हैं।

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