दिव्यांगों का दर्द देखना हो तो मंगलवार को जिला अस्पताल आइए। यहां आप को सिविल सर्जन कक्ष के सामने सहायता केंद्र से लेकर अस्पताल के ए-ब्लाक में हड्डीरोग, नेत्र, आंख, कान, नाक, गला और मानसिक विभाग में ओपीडी तक पहुंचने के लिए दिव्यांग फर्श पर घिसटते नजर आएंगे। हैरानी की बात तो यह कि दिव्यांगों के घिसटने की दर्द देखकर सोचने पर विवश हो जाएंगे। लेकिन यहां डॉक्टर्स और स्वास्थ्य कर्मचारियों के सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
सिस्टम के दर्द से कराह रहे दिव्यांग जिला अस्पताल का मेडिकल बोर्ड बिखरा हुआ है। बोर्ड के सदस्यों को खोजने दिव्यांग फर्श पर घिसट रहे। दिव्यांगों को प्रमाण पत्र के लिए प्रक्रिया को पूरी करने में दिव्यांगता से ज्यादा मेडिकल बोर्ड का सिस्टम दर्द दे रहा है। जिला अस्पताल में मेडिकल बोर्ड का कमरा नंबर 10 है। यही कक्ष सिविल सर्जन का है। सिविल सर्जन डॉ कौशल इंदौरान मीटिंग गए थे। इनकी जगह मेडिकल बोर्ड की जिम्मेदार डॉ भूषण पांडेय को गई है। पांडेय कक्ष-10 में बैठने की बजाए ए-ब्लाक के प्रथम मंजिल पर शिशु रोग विभाग में बैठे मरीज देख रहे थे। ओपीडी से निकलने के बाद वह बी ब्लाक में चाइल्ड केयर यूनिट में बैठे थे। दिव्यांगों को वहां तक चक्कर लगाना पड़ा।
हड्डी रोग विभाग की ओपीडी में कतार में परेशान रहे दिव्यांग सिविल सर्जन कक्ष से दिव्यांग हड्डी रोग विभाग में पहुंचने के लिए पुराने भवन की गैलरी से ए ब्लाक की गैलरी से होते हुए ग्राउंड फ्लोर में पहुंचे। ओपीडी में डॉ आदित्य जाधव मरीजों के बीच दिव्यांगों का चेकअप कर रहे थे। यहां तक पहुंचे मरीजों को 300-350 मीटर फर्श पर घिसटना पड़ा। ओपीडी में मरीजों के कतार में लंबे समय से तक खडे रहने पर दिक्कत हुई।
शिशु, नेत्र, मानसिक विभाग तक पहुंचने में छूट रहा पसीना शिशु रोग विभाग में पहुंचने दिव्यांग को करीब 400 मीटर की गैलरी में घिसटना पड़ा। एक-ब्लाक में शिशु रोग विभाग तक पहुंचने सीढ़ी और लिफ्ट के जरिए जैसे-तैसे पहुंचे। इसी तरह ईएनटी विभाग में दिक्कत हुई। बोर्ड में इएनटी विभाग के एचओडी डॉ सुनील बाजोलिया की जगह एसआर डॉ सुमित और डॉ अनमोल ओपीडी में बैठे थे। नेत्र विभाग में भी परेशान होना पड़ा। नेत्र रोग विभाग में डॉ आनंद ओंमकर, डॉ दीप शिखा। मानसिक रोग विभाग में डॉ संजय इंग्ले समेत अन्य विभागों में चिकित्सकों की ड्यूटी लगाई गई है।
ऐसे समझें परेशानी जिला अस्पताल में मेडिकल बोर्ड के सदस्यों को बैठने के लिए कक्ष-10 निर्धारित है। इसी कमरे में सिविल सर्जन का कार्यालय चलता है। कक्ष के सामने हेल्पलाइन सेंटर बना है। मेडिकल बोर्ड में हड्डी, नेत्र, नाक, कान, गला, मेडिसिन, पीडियाटिक, गायनी और मानसिक विभाग के चिकित्सकों को एक साथ बैठकर दिव्यांगों का चेकअप करना है। लेकिन बोर्ड के डॉक्टर अलग-अलग ओपीडी में बैठते हैं। मरीजों को हेल्पलाइन सेंटर से ओपीडी में पहुंचने के लिए ए व बी ब्लाक की ओपीडी में बैठे डॉक्टर्स के पास पहुंचने में 200 से 400 मीटर एरिया में दिव्यांगों को फर्श पर घिसटना पड़ रहा है। प्रभारी सिविल सर्जन का दावा है कि दिव्यांगों को बैठने के लिए गैलरी में कुर्सियां लगी हैं। व्हीलचेयर का इंतजाम किया गया है।
फर्श पर घिसट रहे ये दिव्यांग, परिजन भी हुए परेशान पंधाा के गुडी खेड़ा निवासी विजय सराठे दोनों पैर से दिव्यांग है। लाठी के सहारे अस्पताल पहुंचे। सहायता केंद्र पर आवेदन पंजीयन के बाद हड्डी रोग विभाग में पहुंचने फर्श पर घिसटते रहे। बाद में कर्मचारी ने व्हीलचेयर से पहुंचाया। जामली कला के सेवक राम सावले के बाएं अंग में लकवा मार दिया है। प्रमाण पत्र के लिए आठ माह से परेशान हैं। तलवडि़या निवासी बेनीराम गुर्जर दोनों पैर से दिव्यांग, जमीन पर बैठकर चलते हैं। बेटे के साथ पहुंचे थे। सहायता केंद्र पर पहुंचे। यहां से हड्डी रोग, मानसिक रोग, शिशु रोग विभाग भेज दिया गया। व्हीलचेयर नहीं मिली। परिसर में फर्श पर घिसटते नजर आए।
वर्जन….डॉ ओपी जुगतावत, सीएमएचओ, जिला अस्पताल में मेडिकल बोर्ड के बैठने की व्यवस्था करनी चाहिए। इसकी व्यवस्था बनाने की जिम्मेदार सिविल सर्जन की है। यदि ऐसा नहीं है तो इसकी जांच कराएंगे। इस संबंध में सिविल सर्जन से बात भी करेंगे।
वर्जन…
डॉ संजीव दीक्षित, प्रभारी सिविल सर्जन…डॉक्टर की कमी है। इस लिए एक साथ बैठने की बजाए ओपीडी में व्यवस्था बनाई गई है। मेडिकल बोर्ड कक्ष के पास दिव्यांगजनों के बैठने के लिए कुर्सी और व्हीलचेयर की व्यवस्था की गई है। इसके बाद भी यादि किसी को दिक्कत हो रही है तो भविष्य में इसकी व्यवस्था बनाई जाएगी।-