अनारकली का साहस
बहुत दिन पहले की बात है। एक राजा था, उसका नाम राजा विक्रम था। वो बहुत अच्छा राजा था। एक दिन उसके दरबार में एक औरत आई। उसका नाम अनारकली था। वो बहुत बहादुर थी और बहुत सुंदर साड़ी पहनी हुई थी। सब लोग उसे हैरानी से देखने लगे। राजा ने कहा, तुम कौन हो और यहां क्यों आई हो? अनारकली बोली, महाराज, हमारे गांव का जमींदार बहुत बुरा है। उसने गरीब किसानों की जमीन छीन ली है। लोग रो रहे हैं, उनके पास घर नहीं है। मैं आपके पास न्याय मांगने आई हूं। सारे दरबार वाले चुप हो गए।
राजा ने पूछा, क्या सबूत है तुम्हारे पास? अनारकली ने एक कागज निकाला। उसने कहा, ये देखिए महाराज, यह सबूत है कि जमीन हमारी है। राजा ने कागज को ध्यान से देखा और गुस्सा हो गया। उसने तुरंत जमींदार को बुलाया और उसकी डांट लगाई। फिर राजा ने आदेश दिया कि किसानों को उनकी जमीन वापस मिलेगी। सब लोग तालियां बजाने लगे। राजा ने अनारकली से कहा, तुम बहुत बहादुर हो, साहसी हो। उसके बाद अनारकली बहुत खुश हुई और गांव लौट गई। सब किसानों ने उसका धन्यवाद किया। कहानी से सीख मिलती है कि डरें नहीं। सच्चाई की हमेशा जीत होती है।
-गीत रघुवंशी, उम्र-7वर्ष
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………. राजदरबार का नृत्य
एक समय की बात है, एक भव्य राज्य में एक न्यायप्रिय और कलाप्रेमी राजा का शासन था। राजा का दरबार हर दिन विभिन्न कलाओं के प्रदर्शन से जीवंत रहता था। एक दिन दरबार में प्रसिद्ध नर्तकी सुगंधा को आमंत्रित किया गया। सुगंधा अपनी सुंदर वेशभूषा और मोहक नृत्य के लिए दूर-दूर तक जानी जाती थी। जैसे ही वह दरबार में पहुंची। उसके कदमों की लय ने सन्नाटा तोड़ दिया। सफेद और गुलाबी रंग की सजी हुई साड़ी में उसकी शोभा देखते ही बन रही थी। उसके आभूषण और चाल में ऐसी गरिमा थी कि सभी दरबारी उसे मंत्रमुग्ध होकर निहार रहे थे।
राजा अपनी राजसी गद्दी पर बैठे सुगंधा के नृत्य को देख रहे थे। उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, मानो कला का यह रूप उन्हें किसी और दुनिया में ले गया हो। राजा के बगल में खड़े अंगरक्षक ने भी यह दृश्य देखकर अपनी चौकसी को भूलते हुए नृत्य की ओर ध्यान लगा लिया। सुगंधा ने अपनी कला का ऐसा प्रदर्शन किया कि पूरा दरबार तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा। राजा ने उसे सोने की मुद्राएं और उपहार देकर सम्मानित किया। इस तरह कला ने एक बार फिर दरबार को जीवंत कर दिया और राजा ने घोषणा की कि यह राज्य सदा कलाकारों का आदर करेगा। यह घटना इतिहास में हमेशा के लिए कला और संस्कृति के प्रति समर्पण का प्रतीक बन गई।
-राम कौशिक, उम्र-9वर्ष
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………. महल महक उठा
बहुत समय पहले एक राज्य था। जिसका नाम सुगंधपुर था। वहां के राजा वीरसिंह अपनी अनोखी चीजों के शौकीन थे। उनके पास सोने के बर्तन, मोतियों की माला और खास चीजें थीं। लेकिन एक चीज उन्हें सबसे ज्यादा पसंद थी-खुशबू। पूरे राज्य में खुशबू का जादू चलता था। एक दिन एक सुंदर लड़की जिसका नाम फू लकुमारी था, राजा के महल पहुंची। वह हल्के गुलाबी फूलों वाली साड़ी पहने थी और उसकी खुशबू पूरे महल में फैल गई। राजा के सेवक भी हैरान थे। उन्होंने कभी ऐसी महक न देखी थी। राजा ने पूछा, यह कौन सी खुशबू है? तुमने कौनसा इत्र लगाया है?
फू लकुमारी मुस्कुराई और बोली, महाराज, यह इत्र नहीं है। यह मेरे गांव के फूलों की खुशबू है। मेरे गांव के फूलों में जादू है। राजा को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने फूलकु मारी से कहा, क्या तुम हमें वह फूल ला सकती हो? फू लकु मारी ने हां कर दी। वह दूसरे दिन गांव से कई फू ल लेकर आई। जैसे ही फूल महल में रखे गए, पूरी महल महक उठी। राजा बहुत खुश हुआ और उन्होंने फूलकु मारी को इनाम में ढेर सारी सोने की मुद्राएं दीं। उस दिन से सुगंधपुर और भी प्रसिद्ध हो गया। लोग दूर-दूर से आते और कहते, सुगंधपुर के राजा और फू लकु मारी के फू लों की महक में जादू है।
-अद्विता पांडे, उम्र-8वर्ष
………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………. स्त्री का महत्त्व
विराट नगर में भोजराज नाम का एक राजा रहता था। राजा अपने पुरुष होने पर बहुत अहंकार करता था। वह स्त्रियों को लाचार और कम बुद्धिमान समझता था। वह रोज अपने दरबार में चापलूस मंत्रियों के सामने स्त्रियों की निंदा करता था। राजा के चापलूस मंत्री भी राजा को खुश करने के लिए राजा की बातों की प्रशंसा करते थे। एक दिन राजा शिकार करने के दौरान घोड़े से गिरकर घायल हो गया। राजा के शरीर पर बहुत सारे घाव हो गए। अपने घाव का इलाज करवाने के लिए राजा ने हकीम से अपना उपचार करवाया परंतु कोई लाभ नहीं हुआ।
रानी ने सलाह दी कि गांव के बाहर एक वैद्यमाता रहती हैं। वो आपके घाव का उपचार कर सकती है। राजा यह बात सुनकर बहुत क्रोधित हो गया, परंतु कोई और उपाय नहीं होने के कारण राजा को वैद्यमाता को अपने महल में बुलाना पड़ा। वैद्यमाता बहुत गुणी और बुद्धिमान थीं। वैद्यमाता ने अपनी औषधियों से राजा के घाव का उपचार किया। जल्द ही राजा ठीक हो गया। राजा का अहंकार चूर-चूर हो गया। उसने मान लिया कि स्त्रियां भी बुद्धिमान होती हैं और गुणों से सपन्न होती हैं। उसने वैद्यमाता को राज्य में राज्यवैद्य का पद देकर सम्मानित किया।
-वन्दना जांगिड़, उम्र-9वर्ष
………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………. चतुर बुढिय़ा और राजा
बहुत समय पहले की बात है। एक राज्य का राजा न्यायप्रिय होने के साथ-साथ अपनी जिद्दी आदतों के लिए भी मशहूर था। उसे अपने दरबार में लोगों के विचित्र किस्से सुनना बहुत पसंद था। एक दिन राजा ने घोषणा की कि जो कोई भी सबसे अनोखी कहानी सुनाएगा, उसे पुरस्कृत किया जाएगा। एक बुद्धिमान बुढिय़ा दरबार में आई। वह अपने सीधे-सादे कपड़ों में थी और उसकी चाल में आत्मविश्वास झलक रहा था। राजा ने उसे देखकर हंसते हुए कहा, तुम क्या अनोखी कहानी सुना सकती हो? बुढिय़ा ने मुस्कुराते हुए कहा, राजा साहब, मेरी कहानी सुनने के बाद आपको मानना पड़ेगा कि यह सबसे अनोखी है।
बुढिय़ा ने कहानी शुरू की, मेरे गांव में एक कुआं है, जिससे अगर पानी निकाला जाए तो सोना बन जाता है। लेकिन उसकी शर्त यह है कि जो पानी निकालेगा, वह बात करते समय झूठ बोलेगा। राजा को इस बात पर हैरानी हुई। बुढिय़ा आगे बोली, मैंने खुद उस कुएं का पानी निकाला और आप यकीन मानिए। आज मैं यहां उसी पानी से बनी यह कहानियां सुनाने आई हूं । राजा हंस पड़ा और बोला, यह तो झूठ है। बुढिय़ा चतुराई से बोली, यही तो शर्त थी, महाराज। आपने खुद मेरा सच मान लिया। राजा उसकी बुद्धिमानी से खुश हुआ और इनाम में उसे सोने की मुद्राएं दे दीं। बुढिय़ा की समझदारी की चर्चा पूरे राज्य में होने लगी।
-कृतार्थ भंडारी द्वारा, उम्र-12वर्ष
………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………. राजा के साथ हादसा
एक गांव में एक किसान रहता था, वह बहुत गरीब था। उसकी एक पत्नी थी, जिसका नाम उमा था और उस किसान का नाम रामू था। उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उसने वहां के राजा से मदद लेनी चाही परंतु उसके गांव के राजा जी 2 साल के लिए अपने बेटे के यहां चले गए थे और अपना राज्य अपने छोटे भाई को 2 साल के लिए देखभाल के लिए सौंप गए। रामू को जब यह बात पता चली तो वह बहुत दुखी हुआ। उसने सोचा क्यों ना मैं उनके भाई से मदद मांग लूं। वहां उमा गई और राजा जी से कहा- हे महाराज आप बड़े दानी है आप मुझे थोड़े से सिक्के दे दें। मैं आपको 6 माह बाद लौटा दूंगी क्योंकि मेरे घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। उस पर राजा ने कहा कि तुम कहती हो कि तुम्हारे घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, तो तुमने सोने के गहने क्यों पहन रखे हैं?
उमा ने कहा महाराज मैं झूठ नहीं बोल रही। मैं नाटक भी नहीं कर रही। मेरे पति जो किसान हैं, वह अपनी फसल को बेचने के बाद जितने भी पैसे आते हैं वे उनसे मुझे आभूषण खरीद कर देते हैं। हमारे पास इतने पैसे तो नहीं कि हम सोने के आभूषण खरीद सकें तब राजा ने उमा पर तरस खाकर उसे कु छ सिक्के दे दिए और कहां छह माह बाद तुम मुझे सिक्के लौटा देना। उमा के जाने के बाद वहां खड़ा एक सिपाही बोला, महाराज अब वह औरत वापस नहीं आएगी। मुझे यह लगता है कि वह औरत आपको झूठ बोलकर आपसे सिक्के ले गई है। अब उन सिक्कों को भूल जाना ही बेहतर होगा। समय बीता, तो राजा को भी यह लगा कि वह औरत वापस नहीं आएगी। उस सैनिक ने लगता है सही कहा था। इस बीच जो राजा अपने बेटे के यहां गए थे। वह वापस आ गए। उनके छोटे भाई ने उनसे पूछा आप तो 2 साल के लिए गए थे। आप इतनी जल्दी कैसे आ गए। उन्होंने कहा, वहां मेरा मन नहीं लगा। राज्य का मोह मुझे यहां खींच लाया। अब उनका छोटा भाई जो पहले सेनापति था, वापस से सेनापति हो गया। उसने सिक्के और औरत वाली बात राजा को बताई। एक दिन वह औरत वापस आई और सिक्के लौटा दिए। कहा, महाराज अगर आप उस दिन मेरी मदद ना करते, तो हमारी इतनी अच्छी फसल न होती और हमें इतना मुनाफा ना हुआ होता। आपकी वजह से ही हमारी आर्थिक स्थिति में सुधार आया है। इसलिए ही मैं सिक्के लौटा पाई हूं। शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए। आपकी एक मदद से लोगों का पूरा जीवन बदल सकता है।
-आईना शर्मा, उम्र-11वर्ष
………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………. रानी का अहंकार
एक बार की बात है, एक राजा अपने दरबार में बैठा था। उसके सामने एक खूबसूरत सी महिला खड़ी थी। राजा उस महिला को देखकर बहुत प्रभावित हुआ। महिला ने राजा से कहा, महाराज, मैं आपकी रानी बनना चाहती हूं। राजा ने कहा, ठीक है, तुम मेरी रानी बन सकती हो। राजा और महिला ने शादी कर ली। लेकिन कु छ दिन बाद राजा को लगा कि उसकी रानी बहुत ही अहंकारी है। वह अपने आपको राजा से भी ऊपर समझती है।
राजा को यह बात बिल्कु ल भी पसंद नहीं आई। एक दिन राजा ने अपनी रानी से कहा, तुम्हें पता है कि तुम बहुत ही अहंकारी हो। तुम अपने आपको मुझसे भी ऊपर समझती हो। लेकिन मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि मैं ही इस राज्य का राजा हूं। मैं ही सब कुछ तय करता हूं। राजा की बात सुनकर रानी बहुत ही शर्मिंदा हुई। उसने राजा से माफी मांगी और कहा कि वह अब कभी भी अहंकार नहीं करेंगी। राजा ने रानी को माफ कर दिया। उसके बाद, रानी बहुत ही विनम्र हो गई। वह राजा की हर बात मानती थी। राजा और रानी बहुत ही खुश होकर रहे।
-मोनिशा मीना, उम्र-13वर्ष
…………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….. सुधा और पुष्पा की कहानी
सुरसुरी नगर में राजा वीर दुबे रहते थे। उनका एक सहायक था जिसका नाम पुष्पा था। एक दिन राजा ने पुष्पा को कहा, राज्य में जाओ और मेरे लायक ताकतवर और शर्मीली लड़की ढूंढ कर लाओ। पुष्पा, ठीक है महाराज। पुष्पा राज्य में राजा के लिए लड़की ढूंढने चला गया। उसे सुधा नाम की एक अच्छी लड़की दिखी। पुष्पा को उससे पहली नजर में प्रेम हो गया। पुष्पा ने सुधा से कहा राजा ने तुम्हें उनके दरबार में बुलाया है।
सुधा को भी पुष्पा पसंद आ गया था और पुष्पा मन ही मन सोच रहा था कि काश मेरा विवाह इस लड़की से हो जाए। वह दोनों अपने मन में बाते लेके चले गए। दरबार के भीतर सुधा राजा के सामने आई। राजा ने पूछा, तुम्हारा नाम क्या है? लड़की ने कहा, सुधा। लड़की समझ चुकी थी कि राजा ने उसे शादी के लिए बुलाया है। लड़की ने डरते हुए राजा से कहा, राजा जी मैं तो आपकी बेटी की उम्र की हूं। मैं आपसे शादी कैसे कर सकती हूं। राजा वीर दुबे हंसते हुए बोले, बेटा मैंने तुम्हें मुझसे शादी करने के लिए नहीं बुलाया बल्कि पीछे जो मेरा भाई जैसा सहायक खड़ा है। उससे शादी करने के लिए बुलाया है। पुष्पा का चेहरा खिल उठा। वह उस दिन के बाद से और ज्यादा राजा का खयाल रखने लगा। कहानी से शिक्षा मिलती है कि हमें अपने सहायकों और साथियों की खुशी का भी ध्यान रखना चाहिए।
-जीशान पटेल, उम्र-13वर्ष
…………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….. रानी रूपमती की बुद्धिमानी
एक बार की बात है। राजा विक्रमादित्य के राज्य में एक चतुर और सुंदर रानी थी। रानी का नाम था रूपमती। रूपमती न केवल सुंदर थी, बल्कि वह बहुत ही बुद्धिमान और दयालु भी थी। एक दिन राजा विक्रमादित्य को एक दूर के राज्य में युद्ध करने जाना पड़ा। राजा ने रानी रूपमती को राज्य की देखभाल करने का जिम्मा सौंपा। रानी रूपमती ने बड़ी कुशलता से राज्य का संचालन किया। उन्होंने न्यायपूर्ण तरीके से शासन किया और लोगों की समस्याओं को सुना। राज्य के लोग रानी रूपमती से बहुत खुश थे। कु छ समय बाद एक दुष्ट जादूगर ने राज्य पर हमला कर दिया।
जादूगर बहुत शक्तिशाली था और उसके पास कई जादुई शक्तियां थीं। जादूगर ने राज्य के लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया। रानी रूपमती ने जादूगर का सामना करने का फैसला किया। उन्होंने अपने सैनिकों को इक_ा किया और जादूगर से युद्ध करने के लिए तैयार हो गईं। युद्ध बहुत भयंकर था। जादूगर ने अपनी जादुई शक्तियों का इस्तेमाल किया और रानी रूपमती के सैनिकों को हराने की कोशिश की। लेकिन रानी रूपमती बहुत बहादुर थीं। उन्होंने जादूगर के सभी हमलों का सामना किया और अंत में उसे हरा दिया। रानी रूपमती की जीत से राज्य के लोग बहुत खुश हुए। उन्होंने रानी रूपमती की बहादुरी और बुद्धिमत्ता की प्रशंसा की। रानी रूपमती ने राज्य के लोगों को सुरक्षित रखा और उन्हें जादूगर के आतंक से मुक्त किया। जब राजा विक्रमादित्य युद्ध से वापस लौटे, तो उन्हें रानी रूपमती की बहादुरी के बारे में पता चला। राजा विक्रमादित्य बहुत खुश हुए और उन्होंने रानी रूपमती को सम्मानित किया। रानी रूपमती एक आदर्श रानी थीं। वह बहादुर, बुद्धिमान और दयालु थीं। कहानी से शिक्षा से मिलती है कि समस्या कितनी भी बड़ी क्यों न हो, समाधान होता ही है और हिम्मत इसके लिए बेहद जरूरी है।
-रहीमा फिरदौस अंसारी, उम्र-11वर्ष
…………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….. कला का सम्मान
एक बार की बात है। किसी राजा के दरबार में एक संगीतकार था। वह शानदार संगीत बजाता था। उसकी कला से राजा बहुत प्रसन्न थे, लेकिन वह संगीतकार खुद को बहुत बुद्धिमान समझता था और दूसरों की सलाह पर ध्यान नहीं देता था। एक दिन राजा के दरबार में एक नृत्यांगना आई। वह अपनी अद्भुत नृत्य कला से सबका दिल जीतने लगी। संगीतकार ने सोचा कि उसकी कला के बिना नृत्यांगना कुछ नहीं कर सकती। अहंकार में उसने कहा, मेरे ढोल और संगीत के बिना यह नाच भी नहीं सकती। यह सुनकर नृत्यांगना मुस्कुराई और कुछ सोचने लगी।
अगले दिन नृत्यांगना ने राजा से अनुमति लेकर बिना किसी वाद्ययंत्र के नृत्य प्रस्तुत किया। उसने अपनी भावनाओं और मुद्राओं के जरिए ऐसा नृत्य किया कि हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया। राजा ने उसकी सराहना की और संगीतकार से कहा, कला का सम्मान जरूरी है, लेकिन अहंकार विनाश की ओर ले जाता है। हर किसी की कला का अपना महत्त्व है। संगीतकार को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने विनम्रता से माफी मांगी। उस दिन के बाद वह दूसरों की कला का सम्मान करने लगा और अहंकार को त्याग दिया। हमें सीख मिलती है कि अहंकार नहीं करना चाहिए।
-नेहल जैन, उम्र-13वर्ष