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Karnataka : मानव-वन्यजीव संघर्ष अब भी बड़ी चुनौती

कर्नाटक ने पिछले एक साल में मानव और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष के पीड़ितों पर 47 करोड़ रुपए से खर्च किए हैं। पिछले एक दशक में, चोट, संपत्ति के नुकसान, मानव मृत्यु, फसल क्षति, मवेशियों की हत्या और स्थाई विकलांगता के मामलों के लिए दी जाने वाली अनुग्रह राशि में 375 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई है।

बैंगलोरJul 18, 2024 / 08:23 pm

Nikhil Kumar

-अनुग्रह राशि में 375 प्रतिशत की बढ़ोतरी

-कोडुगू सर्कल में संघर्ष के 10 हजार से ज्यादा मामले

-बेंगलूरु दसूरे, मैसूरु तीसरे स्थान पर

बेंगलूरु. मानव-वन्यजीव संघर्ष Human-wildlife conflict के मामले घटने के बजाय बढ़ते जा रहे हैं। अनुग्रह राशि में तो साढ़े तीन सौ प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। कोडुगू सर्कल में सबसे अधिक संघर्ष के 10,960 मामले दर्ज किए गए। 8,686 मामलों के साथ बेंगलूरु दूसरे और 6,379 मामलों के साथ मैसूरु तीसरे स्थान पर है।
इन संघर्षों को रोकने के लिए सरकार और वन विभाग ने कई कदम उठाए हैं। लेकिन, अपेक्षित परिणाम नहीं मिले हैं। कई वन्यजीव कार्यकर्ताओं ने सरकार व वन विभाग पर निरर्थक उपायों पर तेजी से खर्च करने के आरोप लगाए हैं। इनके अनुसार दीर्घकालिक उपायों पर ध्यान केंद्रीत करने की तत्काल जरूरत है।
47 करोड़ रुपए से ज्यादा का भुगतान

Karnataka Forest Department (केएफडी) के आंकड़ों के अनुसार कर्नाटक ने पिछले एक साल में मानव और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष के पीड़ितों पर 47 करोड़ रुपए से खर्च किए हैं। पिछले एक दशक में, चोट, संपत्ति के नुकसान, मानव मृत्यु, फसल क्षति, मवेशियों की हत्या और स्थाई विकलांगता के मामलों के लिए दी जाने वाली अनुग्रह राशि में 375 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई है। केएफडी ने वर्ष 2013-14 में अनुग्रह राशि के रूप में 10 करोड़ रुपए से कम का भुगतान किया जबकि 2023-24 में 47.12 करोड़ रुपए का भुगतान हुआ।
दोहरी मार

वन्यजीव कार्यकर्ताओं के अनुसार यह दोहरी मार है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में न तो संघर्ष के मामले कम हुए हैं और न ही अनुग्रह राशि कम हुई है। केएफडी ने 2013-14 में 20 हजार से अधिक संघर्ष के मामले दर्ज किए हैं। इस साल यह संख्या बढ़कर 46 हजार हो गई है। विभाग ने इस वर्ष 2451.68 किलोमीटर के लिए सौर बाड़, तम्बू बाड़, हाथी-रोधी खाइयों और अन्य भौतिक बाधाओं की स्थापना जैसे उपायों पर 16.85 करोड़ रुपए खर्च किए।संघर्ष को कम करने के लिए पिछले कई वर्षों में सौर बाड़ लगाना, हाथी-रोधी खाइयां, रेल बैरिकेड्स आदि जैसे विभिन्न उपाय लागू किए गए हैं। अपेक्षा अनुसार नतीजे नहीं मिले। विभाग निरर्थक उपायों पर तेजी से खर्च कर रहा है।
पारिस्थितिक पहलुओं की समझ के साथ करें उपाय

कर्नाटक वन्यजीव बोर्ड के पूर्व सदस्य जोसेफ हूवर ने कहा कि संघर्ष के मामलों को कम करने के लिए दीर्घकालिक उपाय ही एकमात्र समाधान हैं। इससे अनुग्रह भुगतान में कमी आएगी। अनुग्रह राशि के रूप में दी जाने वाली इतनी बड़ी रकम संरक्षण के लिए अनुकूल माहौल नहीं बनाएगी। मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामलों को कम करने के लिए सरकार या विभाग द्वारा उठाए जा रहे कई कदम पारिस्थितिक पहलुओं की अच्छी समझ के बिना उठाए जा रहे हैं।
…सार्वजनिक धन की बर्बादी

एक अन्य वन्यजीव कार्यकर्ता ने बताया कि विभाग को निजी भूमि खरीदने और सभी महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक वन्यजीव गलियारों को सुरक्षित करने जैसे पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए। हालांकि, जब तक मौजूदा गलियारों को वैधानिक प्रावधानों के साथ सुरक्षित नहीं किया जाता, तब तक उन्हें बचाया नहीं जा सकता। उठाए गए अन्य सभी कदम सार्वजनिक धन की बर्बादी हैं।
नौ गलियारों में से सात को अधिसूचित करे सरकार

हाल ही में, पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय वन्यजीव संस्थान के सहयोग से कर्नाटक में नौ हाथी गलियारों की पहचान की है। मंत्रालय ने सिफारिश की थी कि राज्य वन विभाग नौ गलियारों में से सात को अधिसूचित करे ताकि उन्हें अतिक्रमण और विकास गतिविधियों को रोकने के लिए कानूनी रूप से संरक्षित किया जा सके। शेष दो गलियारों के लिए, मंत्रालय ने अतिक्रमित क्षेत्रों को हटाने, चारा भूखंड स्थापित करने और वाटरहोल बनाने सहित आवास सुधार का सुझाव दिया है।

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