कैसे बना था हमारा राष्ट्रीय ध्वज? किसने किया था तिरंगा डिजाइन?
भारत का झंडा देश के लोगों के बीच एकता, शांति, समृद्धि और विकास को दर्शाता है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तीन रंगों से मिलकर बना है। लेकिन कभी आपने सोचा कि भारतीय तिरंगे को बनाया किसने है? वह कौन है जिसने पहली बार भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर तिरंगे को डिजाइन किया होगा? तिरंगे में शामिल रंगों का क्या मतलब है?
बीड में तिरंगा लगाते समय हुआ हादसा I प्रतीकात्मक फोटो
तिरंगा मतबल देश की आन बान और शान। तिरंगे कितना महत्वपूर्ण है ये एक भारतीय बखूबी जानता है। हर साल हम स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस को लाला किसे से लेकर देशभर के सरकारी कार्यालयों और कई अन्य जगहों पर अपना राष्ट्रीय ध्वज फहराकर लोग भारत माता और तिरंगे को सलामी देते हैं। भारत को आजाद हुए 75 साल पूरे हो गए हैं। इस उत्सव को भारत सरकार आजादी के अमृत महोत्सव के तौर पर मना रही है। इस बार के खास स्वतंत्रता दिवस के जश्न को और धूम धाम से मनाने के लिए भारत सरकार ने ‘हर घर तिरंगा’ अभियान की शुरुआत की है। मगर क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे तिरंगे को किसने डिजाइन किया था? इस बात को बहुत कम लोग ही जानते हैं कि इसे डिजाइन करने का श्रेय किसे जाता है। दरअसल, देश के राष्ट्रध्वज को डिजाइन बनाया था आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकैया ने।
2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के भटलापेनुमरु (अब मचलीपट्टनम) गांव में जन्मे पिंगली वेंकय्या ने तिरंगा डिजाइन किया था। उनके माता-पिता हनुमंतारायुडु और वेंकटरत्नम्मा थे। कैया तेलुगु ब्राह्मण परिवार के थे और उनके पिताजी हमेशा से ही चाहते थे कि पिंगली गांव के साथ-साथ देश का नाम भी रोशन करें। पिंगली वेंकैया ने प्रारंभिक शिक्षा भटाला पेनमरू और मछलीपट्टनम से प्राप्त करने के बाद 19 साल की उम्र में मुंबई चले गए थे। वहां जाने के बाद उन्होंने सेना में नौकरी कर ली, जहां से उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेज दिया गया। वहां उन्होंने एंग्लो-बोअर युद्ध में हिस्सा लिया और उसी दौरान उनकी महात्मा गांधी से मुलाकात हुई।
महात्मा गांधी से हुई इस मुलाकात के बाद पिंगली में बदलाव आया और उस स्वदेश वापस आ गए। फिर वह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। उन्होंने ब्रिटिशों की गुलाबी के खिलाफ आवाज उठाते हुए स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। वहीं भारत लौटने के बाद उन्होंने देश के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण के लिए खुद को समर्पित कर दिया। 1916 में पिंगली वेंकैया ने एक ऐसे झंडे के बारे में सोचा जो सभी भारतवासियों को एक धागे में पिरोकर रखें। उनकी इस पहल को एस.बी. बोमान जी और उमर सोमानी जी का साथ मिला और इन तीनों ने मिल कर “नेशनल फ्लैग मिशन” की स्थापना की।
पिंगली वेंकैया ने साल 1916 से 1921 तक करीब 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वज का अध्ययन किया, जिसके बाद उन्होंने 31 मार्च 1921 को भारत का राष्ट्रीय ध्वज डिजाइन किया था। उस समय के तिरंगे और आज के तिरंगे में थोड़ा फर्क है। तब तिरंगे में लाल, हरा और सफेद रंग हुआ करता था। वहीं चरखे के चिन्ह को इसमें जगह दी गई थी। लेकिन 1931 में एक प्रस्ताव पारित होने के बाद लाल रंग को हटाकर उसकी जगह केसरिया रंग कर दिया गया। 1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफ़ेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया।
भारत को आजादी मिलने से पहले संविधान सभा ने जून 1947 में राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता वाली समिति को भारत के राष्ट्रीय ध्वज की परिकल्पना प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी दी। समिति के सुझाव के अनुसार चरखे की जगह अशोक स्तम्भ के धम्म चक्र को ध्वज पर जगह दी गयी। तिरंगे में मौजूद तीनों रंगों का अपना विशेष महत्व है। केसरिया रंग साहस और बलिदान का प्रतीक है। सफेद रंग शांति और सच्चाई को दर्शाता है। वहीं हरा रंग संपन्नता का प्रतीक है। जब तिरंगा डिजाइन किया गया था, तब लाल और हरे रंग को हिंदू- मुस्लिम का प्रतीक और सफेद रंग को अन्य धर्मों के प्रतीक के तौर पर प्रस्तुत किया गया था। तिरंगे में सफेद रंग पर नीले रंग में सम्राट अशोक के धर्म चक्र चिन्ह के तौर पर बना है। अशोक चक्र का कर्तव्य का पहिया कहा जाता है।
देश को तिरंगा देने वाले पिंगली की मौत बेहद गरीबी में हुई। बताया जाता है कि देश के राष्ट्रध्वज की कल्पना को हकीकत बनाने वाले पिंगली के जीवन का आखिरी दौर झोपड़ी में गुजरा। 4 जुलाई 1963 को उनका निधन एक झोपड़ी में रहते हुए हुआ था। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि देश की आन-बान और शान के प्रतीक तिरंगे को डिजाइन करने वाले पिंगली को उनकी मौत के बाद लोगों ने भूला दिया। उनके निधन के 46 साल बाद 2009 में पहली बार उनके नाम पर डाक टिकट जारी करके उन्हें सम्मान दिया गया था। जिसके बाद लोगों को पता चला कि भारत का तिरंगा जिन्होंने डिजाइन किया था वो पिंगली वेंकैया ही थे।