‘राजद्रोह’ और ‘देशद्रोह’ को लोग एक ही मान लेते हैं। मगर इनके अर्थ अलग-अलग हैं, यानी कि जब सरकार की मानहानि या अवमानना होती है तो उसे ‘राजद्रोह’ कहा जाता है और जब देश की मानहानि या अवमानना होती है तो उसे ‘देशद्रोह’ कहा जाता है।
यदि कोई व्यक्ति गवर्नमेंट विरोधी बातें लिखता है या बोलता है, या फिर ऐसी ही बातों का समर्थन करना है, या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करता है या फिर संविधान को नीचा दिखता है तो उस व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124 A के तहत राजद्रोह का केस दर्ज किया जा सकता है। इन सब बातों के साथ ही यह किसी व्यक्ति के द्वारा देश विरोधी संगठन के साथ में किसी तरह का संबंध रखा जाता है या वह ऐसे किसी संगठन का किसी भी तरह से सहयोग करता है तो भी वह राजद्रोह के अंतर्गत आता है।
देश में सरकार को क़ानूनी रूप से चुनौती देना देशद्रोह की श्रेणी में आता है। वैसे आपको बता दें कि सरकार का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध किया जाना या इसके अलावा उसमें बदलाव के लिए मांग किया जाना देश के हर नागरिक का अधिकार होता है। लेकिन गैरकानूनी तरीके से सरकार का विरोध देशद्रोह कहा जाता है। देशद्रोह के लिए किसी भी ऐसे नागरिक को जिम्मेदार माना जाता है जो देश के ख़िलाफ़ किसी भी गतिविधि में शामिल होकर ऐसे किसी संगठन से संपर्क रखता है। साथ ही आतंकी विचारधारा के साथ व्यक्ति या संस्था का साथ देना भी देशद्रोह की श्रेणी में ही माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति देश के खिलाफ होने वाली आतंकवादी गतिविधियों में शामिल है तो IPC की धारा-121 के अंतर्गत उसे सजा दी जाती है।
यदि किसी व्यक्ति को राजद्रोह कानून के अंतर्गत दोषी पाया जाता है तो उसे 3 साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक हो सकती है। सजा के साथ ही उक्त व्यक्ति को जुर्माना भी देना होता है। इसके साथ ही जब कोई व्यक्ति राजद्रोह में दोषी पाया जाता है तो वह कभी किसी सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता है। इसके अलावा उसका पासपोर्ट भी रद्द कर दिया जाता है और उसे जब जरुरत हो तब कोर्ट में हाजिर होना पड़ता है।
IPC की धारा-121 के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति देश के खिलाफ होने वाली आतंकवादी गतिविधियों में शामिल है तो देशद्रोह के अंतर्गत उसे सजा का प्रावधान है। वहीँ यदि कोई व्यक्ति देश के खिलाफ युद्ध जैसे हालात पैदा करता है या युद्ध करता है या फिर लोगों को देश के खिलाफ युद्ध के लिए प्रेरित करता है तो उसे उम्रकैद से लेकर फांसी तक की सजा दी जा सकती है। ऐसे किसी भी क्राइम के लिए उस व्यक्ति को IPC की धारा-121 A के अंतर्गत सजा होती है। सजा की यह अवधि 10 साल से लेकर उम्रकैद तक हो सकती है।
कई बार राजद्रोह कानून को खत्म किए जाने को लेकर सवाल उठते हैं। जुलाई 2019 में केंद्र सरकार ने कहा था कि राजद्रोह कानून या आईपीसी की धारा-124 (ए) को खत्म नहीं किया जा सकता। सरकार ने देश विरोधी लोगों, आतंकी और पृथकतावादी तत्वों से निपटने के लिए राजद्रोह कानून की जरूरत होती है।
ब्रिटिश शासन में ही साल 1870 में राजद्रोह कानून को बनाया गया था यानी की यह 152 साल पुराना कानून है। इस कानून का इस्तेमाल अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत करने और विरोध करने वाले लोगों पर किया जाता था। तब इस कानून के तहत कई लोगों को उम्रकैद की सजा दी गई थी।
IPC की धारा-122 के अंतर्गत यह कहा गया है कि यदि वह देश के खिलाफ युद्ध की नियत रखता है और इसके लिए हथियार जमा करता है या हथियार बनाता है या फिर हथियार छुपाने का काम करता है तो उस व्यक्ति को 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा सुनाई जा सकती है। जबकि जो लोग ऐसे लोगों का साथ देते हैं उन्हें भी धारा-123 के अंतर्गत 10 साल की सजा का प्रावधान है। जबकि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति या राज्यपाल पर हमला करता है तो उसे आईपीसी की धारा-124 के अंतर्गत सजा होती है।
यह भी पढ़ें: क्या है अंग्रेजों के जमाने का राजद्रोह कानून जिसे 75 सालों तक भी नहीं बदला जा सका